उपनिषद संस्कृत में लिखे गए प्राचीन हिंदू ग्रंथ हैं। इसमें प्राचीन भारत की दार्शनिक और आध्यात्मिक शिक्षाएं हैं। वैदिक धार्मिक कर्मकांडों से इतर उपनिषदों में कर्म, पुनर्जन्म, धर्म (कर्तव्य), और मोक्ष (मुक्ति) जैसी महत्वपूर्ण अवधारणाओं को समझने का प्रयास किया गया है। उपनिषद आत्मज्ञान के महत्व को स्थापित करते हैं। पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए उपनिषदों में आत्म-साक्षात्कार और आध्यात्मिक विकास के महत्व पर जोर दिया गया है। मानव जीवन के आध्यात्मिक और बौद्धिक विकास में उपनिषदों की भूमिका अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। उपनिषद क्या है, उपनिषद के अर्थ क्या हैं, उपनिषद कितने हैं इत्यादि उपनिषद से जुड़े विषयों को इस आलेख में समझने का प्रयास किया गया है।
उपनिषद क्या हैं?
आध्यात्म विद्या से पूर्ण ग्रन्थों को उपनिषद कहा जाता है। उपनिषदों को वेदों के अन्तिम भागों में अवस्थित देखने के कारण उन्हें वेदान्त भी कहा गया है। उपनिषदोंं को ब्रह्मविद्या का समुद्र माना जाना है।
उपनिषद का अर्थ
उपनिषद अध्यात्म विद्या का चरमोत्कर्म है। आत्मा को ब्रह्म-रूप से प्रतिष्ठित करने वाले स्थिर ज्ञान को उपनिषद कहा जाता है। उपनिषद शब्द के अर्थ के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है। जहाँ तक उपनिषद शब्द की व्युत्पति का प्रश्न है, उपनिषद ‘सद्’ धातु में ‘उप’ और ‘नि’ उपसर्ग तथा क्विप् प्रत्यय लगने से बना है।
उप+नि+सद् + क्विप प्रत्यय = उपनिषद
‘सद्’ धातु का अर्थ है ‘बैठना’। जब इसमें ‘नि’ उपसर्ग लगता है तो इसका अर्थ हो जाता है किसी प्रयोजन विशेष के लिए बैठना। ‘उप’ उपसर्ग का अर्थ है – समीप। इस प्रकार उपनिषद का अर्थ है किसी विशेष प्रयोजन के लिए समीप बैठना।
‘सद्’ धातु के अन्य अर्थ विशरण (नाश होना), गति (प्राप्ति) तथा अवसादन (शिथिल होना) भी हैं। शंकराचार्य ने उपनिषद की व्याख्या करते हुए ‘सद्’ धातु के इन अर्थों के साथ भी संगति की है।
- नाश होना के अर्थ में – उपनिषदोंं के अनुशीलन से अविद्या आदि का विनाश होने के कारण ही इस विद्या को उपनिषद कहते हैं।
- प्राप्ति के अर्थ में – ब्रह्म की प्राप्ति कराने वाली होने के कारण ही ब्रह्म विद्या को उपनिषद कहते हैं।
- शिथिल होना के अर्थ में – इनके द्वारा जन्म एवं जरावस्था आदि के दुख शिथिल पड़ जाते हैं, इस कारण इसे उपनिषद कहते हैं।
उपनिषदों की संख्या कितनी है?
उपनिषदों की संख्या निश्चित नहीं है। धर्म और दर्शन को आधार बनाकर रचे गए उपनिषदों की संख्या वर्तमान समय में 200 से भी अधिक है। लेकिन इनमें अधिकांश उपनिषद परवर्ती उपनिषद हैं। कुछ विद्वान उपनिषदों की संख्या 108 बताते हैं। प्रमुख तथा प्रामाणिक उपनिषद 12 हैं, जिन पर शंकराचार्य तथा रामानुजाचार्य जैसे वेदान्तविदों के भाष्य उपलब्ध हैं। अन्य सभी गौण उपनिषद माने जाते हैं। इन 12 उपनिषदों का संक्षिप्त परिचय एवं उनकी विषय-वस्तु को जानने के लिए आप निम्न आलेख देख सकते हैं –
उपनिषदों के नाम एवं उनका संक्षिप्त परिचय
प्रमुख उपनिषद कितने हैं?
ऐसे तो उपनिषदों की संख्या 200 से भी ज्यादा हैं परंतु प्रमुख तथा प्रामाणिक उपनिषद 12 हैं, जिन पर शंकराचार्य तथा रामानुजाचार्य जैसे वेदान्तविदों के भाष्य उपलब्ध हैं। 12 उपनिषदों के नाम इस प्रकार हैं –
- ईशावास्य उपनिषद
- केन उपनिषद
- कठ उपनिषद
- प्रश्न उपनिषद
- मुण्डक उपनिषद
- माण्डूक्य उपनिषद
- तैत्तिरीय उपनिषद
- ऐतरेय उपनिषद
- छान्दोग्य उपनिषद
- बृहदारण्यक उपनिषद
- कौषीतकी उपनिषद
- श्वेताश्वतर उपनिषद
उपनिषद के रचयिता कौन हैं?
उपलब्ध उपनिषद प्रमुख रूप से ब्रह्मज्ञानी ब्राह्मणों द्वारा अपने शिष्यों को दिये गये उपदेश हैं। इसलिए इसके कोई रचयिता नहीं हैं। हालांकि कुछ लोग उपनिषदों को ईश्वर की रचना मानते हैं। वहीं कुछ विद्वान उपनिषदों की रचना का श्रेय वेदव्यास को देते हैं।
उपनिषदोंं की रचना कब हुई?
उपनिषदोंं का रचनाकाल 1000 ई.पू. से 300 ई.पू. स्वीकार किया जा सकता है। हालांकि कुछ लोग उपनिषदों को ईश्वर रचित मानते हैं और इसका रचनाकाल सृष्टि के प्रारंभ से जोड़ते हैं। मुख्य 12 उपनिषदों के अतिरिक्त कई गौण उपनिषद भी हैं जिनकी रचना परवर्ती काल में की गई है।
उपनिषद को और किस नाम से जाना जाता है?
वेदांत – उपनिषद वैदिक संहिताओं का ही अंग हैं। वैदिक संहिताओं में चारों वेद (ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद), ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यक और उपनिषद शामिल हैं। वैदिक संहिताओं का अंतिम भाग होने के कारण उपनिषदों को वेदांत कहा जाता है।
प्रस्थानत्रयी – प्रस्थानत्रयी में उपनिषद, श्रीमद्भागवत गीता एवं ब्रह्मसूत्र शामिल हैं। इन तीनों को सामूहिक रूप से प्रस्थानत्रयी कहा जाता है। इन तीनों ग्रंथों में प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों प्रकार के मार्गों का तात्विक विवेचन किया गया है।
ब्रह्मविद्या – उपनिषदों का मूल उद्देश्य ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति है। ब्रह्म ज्ञान का माध्यम होने के कारण उपनिषदों की विद्या को ब्रह्मविद्या भी कहा जाता है। ब्रह्मविद्या के अतिरिक्त इसे पराविद्या, मोक्षविद्या, शान्तिविद्या, श्रेष्ठ विद्या और आर्य-संस्कृति का मूलाधार आदि कई संज्ञाएँ दी गयी हैं।
रहस्य विद्या – उपनिषदों का अध्ययन गुरु के द्वारा शिष्यों को एकांत में कराया जाता था, इस कारण उपनिषदों को रहस्य विद्या भी कहा जाता है।
उपनिषदों का अनुवाद किसने किया?
उपनिषद मूल रूप से संस्कृत में लिखे गए हैं। बाद के कालों में उपनिषदों का अनुवाद अन्य दूसरी भाषाओं में किया गया। शाहजहां के सबसे बड़े बेटे दारा शिकोह ने 1657 में उपनिषदों का संस्कृत से फारसी में अनुवाद ‘सिर्र-ए-अकबर’ नाम से करवाया था।
अंकेतिल डुपेरों ने शिकोह द्वारा संस्कृत से फारसी में अनुदित उपनिषदों का 1801-02 में लैटिन और फ्रेंच में अनुवाद किया। आगे चलकर ‘सिर्र-ए-अकबर’ का जर्मन भाषा में अनुवाद किया गया। लैटिन, फ्रेंच और जर्मन में उपनिषदों के अनुवाद के यूरोप में लोकप्रिय होने के बाद इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया गया।
उपनिषद से जुड़ी जानकारी के लिए आप इन आलेखों का भी अध्ययन कर सकते हैं –
उपनिषदों के नाम एवं उनका संक्षिप्त परिचय
उपनिषदों का महत्व और शिक्षाएं
उपनिषदों का विवेच्य विषय