त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का रहस्य

शेयर करें/

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का रहस्य और गौतम ऋषि की तपस्या12 ज्योतिर्लिंगों में से आठवां ज्योतिर्लिंग त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग है, जो महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित है। यह एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जहाँ ब्रह्मा, विष्णु और महेश एकसाथ विराजते हैं। तीन नेत्रों वाले भगवान शिव के यहाँ विराजमान होने के कारण इस जगह को त्र्यंबक (तीन नेत्रों वाले) कहा जाता है। त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर तीन पहाड़ियों के बीच स्थित है, जिनमें ब्रह्मगिरी, नीलगिरि और कालगिरी शामिल हैं। ब्रह्मगिरी को शिव का स्वरूप माना जाता है। 

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर नासिक के त्र्यंबक नामक स्थान पर ब्रह्मगिरि पर्वत के पास स्थित है। इसी पर्वत से गोदावरी नदी निकलती है। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्मगिरि पर्वत के ऊपर जाने के लिए चौड़ी-चौड़ी सात सौ सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। इन सीढ़ियों पर चढ़ने के बाद रामकुण्डऔर लक्ष्मणकुण्डमिलते हैं और शिखर के ऊपर पहुँचने पर गोमुख से निकलती हुई भगवती गोदावरी के दर्शन होते हैं। जिस प्रकार उत्तर भारत में प्रवाहित होने वाली पवित्र नदी गंगा का विशेष आध्यात्मिक महत्त्व है, उसी प्रकार दक्षिण में प्रवाहित होने वाली इस पवित्र नदी गोदावरी का विशेष महत्त्व है। इस नदी को गौतमी गंगाकहकर पुकारा जाता है।

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीनकाल में त्र्यंबक गौतम ऋषि की तपोभूमि थी। गौतम ऋषि अपनी धर्मपत्नी अहिल्या के साथ रहते थे। एक समय वहाँ कई वर्षों तक वर्षा बिल्कुल नहीं हुई। सब जगह सूखा पड़ने के कारण जीवधारियों में बेचैनी हो गई। जल के अभाव में पेड़-पौधे सूख गये, पृथ्वी पर महान संकट टूट पड़ा। आख़िर जीवन को धारण करने वाला जल कहाँ से लाया जाये? उस समय मनुष्य, मुनि, पशु, पक्षी तथा अन्य जीवनधारी भी जल के लिए भटकते हुए विविध दिशाओं में चले गये।

उसके बाद गौतम ऋषि ने छ: महीने तक कठोर तपस्या करके वरुण देवता को प्रसन्न किया। ऋषि ने वरुण देवता से जब जल बरसाने की प्रार्थना की तो उन्होंने कहा – मैं देवताओं के विधान के विपरीत वृष्टि नहीं कर सकता, किन्तु तुम्हारी इच्छा की पूर्ति हेतु तुम्हें अक्षयजल देता हूँ। तुम उस जल को रखने के लिए एक गड्ढा तैयार करो।

वरुण देव के आदेश के अनुसार गौतम ऋषि ने एक हाथ गहरा गड्ढा खोद दिया, जिसे वरुण ने अपने दिव्य जल से भर दिया। उसके बाद उन्होंने परोपकार परायण ऋषि गौतम से कहा  महामुने! यह अक्षयजल कभी नष्ट नहीं होगा और तीर्थ बनकर इस पृथ्वी पर तुम्हारे ही नाम से प्रसिद्ध होगा। इसके समीप दान-पुण्य, हवन-यज्ञ, तर्पण, देव पूजन और पितरों का श्राद्ध, सब कुछ अक्षय फलदायी होंगे। उसके बाद उस जल से गौतम ऋषि ने बहुतों का कल्याण किया, जिससे उन्हें सुख की अनुभूति हुई।

इस प्रकार वरुण देवता से अक्षय जल की प्राप्ति के बाद गौतम ऋषि आनन्द के साथ अपने नित्य नैमित्तिक कर्म, यज्ञ आदि सम्पन्न करने लगे। जल की सुलभता से वहाँ विविध प्रकार की फ़सलें, अनेक प्रकार के वृक्ष तथा फल-फूल लहलहा उठे। इस प्रकार जल की सुविधा और व्यवस्था को सुनकर वहाँ हज़ारों ऋषि-मुनि, पशु-पक्षी और जीवधारी रहने लगे। कर्म करने वाले बहुत से ऋषि-मुनि अपनी धर्मपत्नियों, पुत्रों तथा शिष्यों के साथ रहने लगे।

एक बार कुछ ब्राह्मणों की स्त्रियाँ जो गौतम ऋषि के आश्रम में आकर निवास करती थीं, जल के सम्बन्ध में विवाद हो जाने पर अहिल्या से नाराज हो गयीं। उन्होंने गौतम को नुकसान पहुँचाने हेतु अपने पतियों को उकसाया। उन ब्राह्मणों ने गौतम का अनिष्ट करने हेतु गणेश जी की आराधना की। गणेश जी के प्रसन्न होने पर उन ब्राह्मणों ने उनसे कहा – आप ऐसा कोई उपाय कीजिए कि यहाँ के सभी ऋषि डाँट-फटकार कर गौतम को आश्रम से बाहर निकाल दें। गणेश जी ने उन सबको समझाया कि तुम लोगों का ऐसा करना उचित नहीं है। गणेश जी के समझाने पर भी वे ऋषि दूसरा वर लेने के लिए तैयार नहीं हुए और अपने पहले वाले दुराग्रह पर अड़े रहे।

शिवपुत्र गणेश अपने भक्तों के अधीन होने के कारण, उनके द्वारा गौतम के विरुद्ध माँगे गये वर को स्वीकार कर लिया और कहा कि उसे मैं अवश्य ही पूर्ण करूँगा। गौतम ने अपने खेत में धान और जौ लगाया था। गणेश जी एक अत्यन्त दुबली-पतली और कमजोर गाय का रूप धारण कर उन खेतों में जाकर फसलों को चरने लगे। उसी समय संयोगवश दयालु गौतम जी वहाँ पहुँच गये और मुट्ठी भर खर-पतवार लेकर उस गौ को हाँकने लगे। उन खर-पतवारों का स्पर्श होते ही वह दुर्बल गौ कांपती हुई धरती पर गिर गई और तत्काल ही मर गयी।

वे ब्राह्मण और उनकी स्त्रियाँ छिपकर उसे देख रही थीं। गाय के धरती पर गिरते ही सभी गौतम ऋषि के सामने आकर बोल पड़े अरे , गौतम ने यह क्या कर डाला? गौतम ऋषि भी आश्चर्य में डूब गये। उन्होंने अहिल्या से दु:खपूर्वक कहा  देवि ! यह सब कैसे हो गया और क्यों हुआ? लगता है, ईश्वर मुझ पर कुपित हैं। अब मैं कहाँ जाऊँ और क्या करूँ? मुझे तो गोहत्या के पाप ने स्पर्श कर लिया है। इस प्रकार पश्चाताप करते हुए गौतम की उन ब्राह्मणों तथा उनकी पत्नियों ने घोर निन्दा की, उन्हें अपशब्द कहे और दुर्वचनों द्वारा अहिल्या को भी प्रताड़ित किया। ब्राह्मणों ने उन्हें धिक्कारते हुए कहा अब तुम यहाँ से चले जाओ, क्योंकि तुम्हारा यहाँ मुख दिखाना अब ठीक नहीं है। गोहत्या करने वाले का मुख देखने पर तत्काल सचैल अर्थात् वस्त्र सहित स्नान करना पड़ता है। इस आश्रम में तुम जैसे गो हत्यारे के रहते हुए अग्नि देव और पितृगण (पितर) हमारे हव्य-कव्य (हवन तथा पिण्डदान) आदि को ग्रहण नहीं करेंगे। इसलिए पापी होने के कारण तुम बिना देरी किये शीघ्र ही परिवार सहित कहीं दूसरी जगह चले जाओ।

कष्ट और मानसिक सन्ताप से भी पीड़ित गौतम ने उस आश्रम को तत्काल छोड़ दिया। उन्होंने वहाँ से तीन किलोमीटर की दूरी पर जाकर अपना आश्रम बनाया। उन ब्राह्मणों ने गौतम ऋषि को तंग करने हेतु वहाँ भी उनका पीछा किया। उन्होंने कहा जब तक तुम्हारे ऊपर गो हत्या का पाप है, तब तक तुम्हें किसी भी वैदिकदेव अथवा पितृयज्ञ के अनुष्ठान का अधिकार प्राप्त नहीं है। इसलिए तुम्हें कोई यज्ञ आदि कर्म नहीं करना चाहिए। उन्होंने उन मुनियों, ब्राह्मणों से गोहत्या का प्रायश्चित बताने हेतु बार-बार दुखी मन से अनुनय-विनय की।

उनकी दीनता पर तरस खाते हुए उन मुनियों ने कहा गौतम! तुम अपने पाप को प्रकट करते हुए अर्थात् किये गये गोहत्या सम्बन्धी पाप को बोलते हुए तीन बार पृथ्वी की परिक्रमा करके फिर एक महीने तक व्रत करो। व्रत के बाद जब तुम इस ब्रह्मगिरि की एक सौ एक परिक्रमा करोगे, उसके बाद ही तुम्हारी शुद्धि होगी। ब्राह्मणों ने उक्त प्रायश्चित का विकल्प बतलाते हुए कहा – यदि तुम गंगा जी को इसी स्थान पर लाकर उनके जल में स्नान करो, तदनन्तर एक करोड़ पार्थिव लिंग बनाकर महादेव जी की उपासना (पार्थिव पूजन) करो, उसके बाद पुन: गंगा स्नान करके इस ब्रह्मगिरि पर्वत की ग्यारह परिक्रमा करने के बाद एक सौ कलशों (घड़ों) में जल भर पार्थिव शिवलिंग का अभिषेक करो, फिर तुम्हारी शुद्धि हो जाएगी और तुम गो हत्या के पाप से मुक्त हो जाओगे।

ब्राह्मणों के कथनानुसार महर्षि गौतम वे सारे कार्य पूरे करके पत्नी के साथ पूर्णतः तल्लीन होकर भगवान शिव की आराधना करने लगे। इससे प्रसन्न हो भगवान शिव ने प्रकट होकर उनसे वर माँगने को कहा। महर्षि गौतम ने उनसे कहा – भगवान मैं यही चाहता हूँ कि आप मुझे गोहत्या के पाप से मुक्त कर दें। भगवान शिव ने कहा – गौतम! तुम सर्वथा निष्पाप हो। गोहत्या का अपराध तुम पर छलपूर्वक लगाया गया था। छलपूर्वक ऐसा करवाने वाले तुम्हारे आश्रम के ब्राह्मणों को मैं दण्ड देना चाहता हूँ।

इस पर महर्षि गौतम ने कहा – प्रभु! उन्हीं के निमित्त से तो मुझे आपका दर्शन प्राप्त हुआ है। अब उन्हें मेरा परमहित समझकर उन पर आप क्रोध न करें।

गौतम ऋषि की बात सुनकर भगवान शिव अत्यन्त प्रसन्न होकर उनसे बोले विप्रवर! तुम सभी ऋषियों में श्रेष्ठ हो, मैं तुम पर अतिशय प्रसन्न हूँ, इसलिए तुम कोई उत्तम वर माँग लो। गौतम ऋषि ने अपने ऊपर लगे गोहत्या के पाप से मुक्ति पाने व लोक कल्याण के लिए भगवान शिव से गंगा को यहाँ अवतरित करने का वरदान माँगा। इस प्रकार बोलते हुए गौतम ने लोकहित की कामना से भगवान शिव के चरणों को पकड़ लिया। तब भगवान महेश्वर ने पृथ्वी और स्वर्ग के सारभूत उस जल को निकाला, जो ब्रह्मा जी ने उन्हें उनके विवाह के अवसर पर दिया था। वह परम पवित्र जल स्त्री का रूप धारण करके जब वहाँ खड़ा हुआ, तो गौतम ऋषि ने उसकी स्तुति करते हुए नमस्कार किया। गौतम ने गंगा की आराधना करके पाप से मुक्ति प्राप्त की। गौतम तथा मुनियों को गंगा ने पूर्ण पवित्र कर दिया। वह गौतमी (गोदावरी) कहलायी।

गोदावरी के उद्गम के साथ ही गौतम ऋषि ने भगवान शिव जी से इस स्थान पर विराजमान होने का अनुरोध किया तथा भगवान शिव ने उनका यहा अनुरोध स्वीकार कर लिया। गौतमी नदी के किनारे त्र्यंबकम शिवलिंग की स्थापना की गई, क्योंकि इसी शर्त पर वह वहाँ ठहरने के लिए तैयार हुई थीं।

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर की संरचना

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिरत्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर उन बारह मंदिरों में से एक है, जहाँ भगवान शिव के सच्चे या स्वयंभू रूप की पूजा की जाती है। स्वयंभु लिंग का अर्थ है कि भगवान शिव स्वयं लिंग में बदल गए। यहां मौजूद लिंग त्र्यंबका या त्र्यंबक है। कुछ लोगों का मानना है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि इसमें ब्रह्मा, विष्णु और शिव का प्रतिनिधित्व करने वाले तीन छोटे अंगूठे हैं। जबकि, कुछ लोगों का मानना है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि भगवान शिव की तीन आंखें हैं।

गोदावरी नदी के किनारे स्थित त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर काले पत्थरों से बना है। मंदिर की भव्य इमारत सिंधु-आर्य शैली का उत्कृष्ट नमूना है। इस मंदिर का स्थापत्य काफी आर्कषक और अद्वितीय है। इस मंदिर में बेहद सुंदर नक्काशी की गई है। यह मंदिर दुनिया भर में अपनी भव्यता और आर्कषण की वजह से मशहूर है।

मंदिर में एक मंडप और एक गर्भगृह है। इस भव्य मंदिर में पूर्व की ओर सबसे बड़ा चौकोर मंडप है। गर्भगृह अंदर से चौकोर और बाहर से बहुकोणीय तारे जैसा है। गर्भगृह के ऊपर शिखर है, जिसके अंत में स्वर्ण कलश लगा है। साथ ही भगवान शिव की प्रतिमा के पास हीरों और कई रत्नों से जड़ा मुकुट भी रखा हुआ है। मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने के बाद एक छोटे से गड्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग दिखाई देते हैं जो कि ब्रह्रा, विष्णु और महेश का अवतार माने जाते हैं। मंदिर में स्थापित शिव जी की मूर्ति के चरणों से बूंद-बूंद करके जल टपकता रहता है, जो कि मंदिर के पास में बने एक कुंड में एकत्र होता है।

इसके चारों ओर दरवाजे हैं। पश्चिमी द्वार को छोड़कर बाकी तीनों से इसमें प्रवेश कर सकते हैं। इसका पश्चिमी द्वार श्रद्धालुओं के लिए महत्वपूर्व अवसरों पर खोला जाता है। सभी द्वारों पर द्वार-मंडप हैं।

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का जीर्णोद्धार

आधुनिक त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का निर्माण पेशवा बालाजी बाजीराव तृतीय के द्वारा किया गया था। इसका जीर्णोद्धार सवाई माधोराव पेशवा जी ने प्रारम्भ किया था जो 17 फरवरी 1783 को महाशिवरात्रि के दिन सम्पन्न हआ। इस संबंध में संस्कृत में उत्कीर्ण शिलापट्टिका मंदिर के उत्तरी प्रवेश द्वार पर लगी है। मंदिर की शिल्पण शैली को हिन्दु शिल्प शास्त्र की मेरूप्रासाद प्रणाली पर आधारित बताया जाता है। 

तत्कालीन वास्तुशिल्पी यशवंत राव हर्षे की परिकल्पना पर निर्मित यह मंदिर नाना साहब पेशवा के प्रधान कार्यकर्ता नारायण भगवंत और उनके पुत्र नागेश नारायण की देख-रेख में बनकर तैयार हुआ। हालांकि कुछ विद्वानों ने मंदिर के मालवा और मराठा शैलियों में निबद्ध होने की भी संभावनाएं व्यक्त की हैं। 

राजस्थान के मकराना से लाये संगमरमर और स्थानीय काले पाषाण के समुचित सम्मिश्रण से निर्मित मंदिर की तारेनुमा संरचना इसे विशिष्टता प्रदान करती है। सवा 4 फीट की चौड़ाई वाले प्राचीर से सुरक्षित मंदिर पूर्व पश्चिम में 265 फीट और उत्तर-दक्षिण में 218 फीट लम्बाई व चैड़ाई में विस्तारित है। चारों दिशाओं में प्रवेश द्वारों वाले इस मंदिर के उत्तरी महाद्वार के ऊपर 38×15 फीट का नगारखाना है जहां आज भी श्री हरि की पूजा के उपरांत नगाड़ों का वादन होता है। 

पश्चिम और दक्षिण दिशा के प्रवेश द्वार के भीतर कोने में स्थित अमृत कुण्ड की गहराई मंदिर की ऊंचाई के बराबर है। विस्तृत प्रांगण के मध्य पूर्वाभिमुख देवालय की 160 फीट लंबाई (पूर्व-पश्चिम), 131 फीट लम्बाई (दक्षिण-उत्तर), ऊंचाई 96 फीट और गोलाई का व्यास 185 फीट है। प्रासाद के शीर्ष पर तीन स्वर्ण कलश तथा वृषभ चिन्हांकित स्वर्णध्वज है। मंदिर के आकर्षक अर्धमण्डप, सभामण्डप, विशालकाय कच्छप, मेघाण्डम्बरी वितान, द्वार के सम्मुख कीर्ति संरचनाएं शैल्पिक विद्वता की प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।

हालांकि पुरातत्ववेत्ता एम.एस. चौहान इस मंदिर की निर्मिति भूमिज शैली में बताते हैं। उनके अनुसार मंदिर की पीठ, वेदीबंध, जंघा और शिखर का स्थापत्य इसके भूमिज शैली में निर्माण की पुष्टि करता है। बहुकोणीय तारेनुमा मंदिर के उर्ध्वगामी शिखर के आधे हिस्से में कोनों पर कुंभ की योजना, गर्भगृह के ऊपर वक्रीय शिखर, अनेक लघु शिखरों की पूर्णता पर पूर्णकुम्भों की शिल्पाकृतियां श्री चैहान की दृष्टि से मंदिर के भूमिज और मराठा शैलियों के सम्मिश्रण का संकेत देते हैं। महारानी अहिल्या बाई होलकर ने सन् 1789 में पुनः उसका जीर्णोद्धार कराया।

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में होनी वाली पूजा

गौतमी तट पर स्थित इस त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का जो मनुष्य भक्तिभावपूर्वक दर्शन पूजन करता है, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। ऋषि गौतम द्वारा पूजित यह त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग इस लोक में मनुष्य के समस्त अभीष्ट फलों को प्रदान करता है और परलोक में उत्तम मोक्ष पद को देने वाला है

य: पश्येद्भक्तितो ज्योतिर्लिंगं त्र्यंबकनामकम्।

पूजयेत्प्रणमेत्सतुत्वा सर्वपापै: प्रमुच्यते।।

महामृत्युंजय पूजा यह पूजा पुरानी बीमारियों से छुटकारा पाने और एक स्वस्थ जीवन के लिए की जाती है।

रुद्राभिषेक पूजा यह अभिषेक पंचामृत यानि दूध, घी, शहद, दही और शक्कर के साथ किया जाता है। इस दौरान कई मंत्रों और श्लोकों का पाठ भी किया जाता है।

लघु रुद्राभिषेक पूजा यह अभिषेक स्वास्थ्य और धन की समस्याओं को हल करने के लिए किया जाता है। यह कुंडली में ग्रहों के बुरे प्रभाव को भी दूर करता है।

महा रुद्राभिषेक पूजा  इस पूजा में मंदिर में ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद का पाठ किया जाता है।

कालसर्प पूजा यह पूजा राहु और केतु की दशा को बेहतर बनाने के लिए किया जाता है। कालसर्प दोष से ग्रसित लोग इससे मुक्ति पाने के लिए अनंत कालसर्प, कुलिक कालसर्प, शंखापान कालसर्प, वासुकी कालसर्प, महापद्म कालसर्प और तक्षक कालसर्प नाम की पूजा करते हैं।

नारायण नागबली पूजा यह पूजा पितृ दोष और परिवार पर पूर्वजों के श्राप से बचने के लिए किया जाता है।

त्र्यंबकेश्वर के आसपास अन्य पर्यटन स्थल 

पंचवटी, सीता गुफा, कालाराम मन्दिर, रामकुंड, कपालेश्वर महादेव मंदिर, सप्तश्रृंगी देवी मंदिर, पांडवलेनी गुफा, सुंदरनारायण मंदिर, सोमेश्वर मंदिर, अंजनेरी पर्वत, सिक्का संग्रहालय, मुक्तिधाम मंदिर

नासिक में महाकुम्भ का आयोजन

देश में लगने वाले विश्व के प्रसिद्ध चार महाकुम्भ मेलों में से एक महाकुम्भ का मेला यहीं लगता है। विदित हो कि प्रत्येक 3 वर्ष पर प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। यह सनातन धर्म के पवित्र आयोजनों में से एक है। नासिक में प्रत्येक बारहवें वर्ष जब सिंह राशि पर बृहस्पति का पदार्पण होता है और सूर्य नारायण भी सिंह राशि पर ही स्थित होते हैं, तब महाकुम्भ पर्व का स्नान, मेला आदि धार्मिक कृत्यों का समारोह होता है। उन दिनों गोदावरी गंगा में स्नान का आध्यात्मिक पुण्य बताया गया है।

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर कैसे पहुंचें

रेलमार्ग द्वारा यात्रा – रेल मार्ग द्वारा त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के दर्शन के लिए आने हेतु नासिक आना पड़ेगा। देश के विभिन्न स्थानों से नासिक के लिए ट्रेनें उपलब्ध है। नासिक स्टेशन से त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर की दूरी लगभग 40 किलोमीटर है।

सड़क मार्ग द्वारा यात्रा – त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर त्र्यंबकेश्वर तहसील के त्रिंबक नाम के एक बहुत ही छोटे से नगर में स्थित है। इसके आसपास कोई बहुत बड़ा शहर या घनी आबादी नहीं रहती है।यहां से नजदीक स्थित सबसे बड़ा शहर नासिक है जो लगभग 30 किलोमीटर दूर है। नासिक पहुंचकर सड़क माध्यम से इस मंदिर के दर्शन के लिए आया जा सकता है।

हवाई जहाज द्वारा यात्रा – त्र्यंबकेश्वर के लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डा मुंबई का छत्रपति शिवाजी हवाई अड्डा है जिसकी दूरी यहां से लगभग 175 किलोमीटर है। दूसरा नजदीकी हवाई अड्डा औरंगाबाद में स्थित है जिस की दूरी यहां से 210 किलोमीटर है।इन दोनों स्थानों से सड़क मार्ग के द्वारा त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए आया जा सकता है।

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर की यात्रा और दर्शन से संबंधित जानकारियों के लिए मंदिर की वेबसाइट https://www.trimbakeshwartrust.com/ पर संपर्क कर सकते हैं। 

संबंधित लेख

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का माहात्म्य

बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को कामना लिंग क्यों कहते हैं?

शिव को महाकाल क्यों कहा जाता है?

प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ ज्योतिर्लिंग 

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की कथा 

श्रीराम द्वारा स्थापित ज्योतिर्लिंग रामेश्वरम

सबसे ऊंचाई पर स्थित ज्योतिर्लिंग – केदारनाथ ज्योतिर्लिंग

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा 

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग – दर्शन से मोक्ष प्राप्ति

 


शेयर करें/

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *