सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा

प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ ज्योतिर्लिंग

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सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर एक महत्वपूर्ण प्राचीन हिन्दू मंदिर है,  जहां स्थित सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की गणना 12 ज्योतिर्लिंगों में प्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में होती है। सोमनाथ मंदिर गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में प्रभास पाटन के पास स्थित है। सोमनाथ को अनंत देवालय भी कहा जाता है।

इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने करवाया था। इसका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है। चन्द्रदेव का एक नाम सोम भी है। उन्होंने भगवान शिव को ही अपना नाथ-स्वामी मानकर यहां तपस्या की थी इसीलिए इसका नाम सोमनाथहो गया।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के अन्य नाम

स्कंद पुराण के प्रभास खंड में वर्णित है कि सृष्टि निर्माण के प्रत्येक काल में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग विद्यमान रहा है। प्रत्येक सृष्टि के निर्माण काल में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के भिन्न-भिन्न नाम रहे हैं। अब तक सोमनाथ के आठ नाम हो चुके हैं। इस क्रम में जब वर्तमान सृष्टि का अंत होगा और ब्रह्मा नई सृष्टि का निर्माण करेंगे तब – सोमनाथ शिवलिंग का नाम ‘प्राणनाथ’ होगा। वर्तमान समय तक सृष्टि का निर्माण 7 बार हो चुका है और वर्तमान सृष्टि के प्रलय के बाद आठवीं सृष्टि का निर्माण होगा। इस आधार पर सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के 8 नाम निम्न हैं – मृत्युंजय, कालाग्निरुद्र, अमृतेश, अनामय, कृत्तिवास, भैरवनाथ, सोमनाथ और प्राणनाथ। 

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग से जुड़ी पौराणिक कथा 

पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की सत्ताईस कन्याएं थीं। उन सभी का विवाह चंद्रदेव के साथ हुआ था। किंतु चंद्रदेव का समस्त अनुराग व प्रेम उनमें से केवल एक रोहिणी के प्रति ही रहता था। उनके इस कृत्य से दक्ष प्रजापति की अन्य कन्याएं बहुत अप्रसन्न रहती थीं। उन्होंने अपनी यह व्यथा-कथा अपने पिता को सुनाई। दक्ष प्रजापति ने इसके लिए चंद्रदेव को अनेक प्रकार से समझाया। किंतु रोहिणी के वशीभूत उनके हृदय पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अंततः दक्ष ने कुद्ध होकर उन्हें क्षयग्रस्तहो जाने का शाप दे दिया। इस शाप के कारण चंद्रदेव तत्काल क्षयग्रस्त हो गए। उनके क्षयग्रस्त होते ही पृथ्वी पर सुधा-शीतलता वर्षण का उनका सारा कार्य रुक गया। चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। चंद्रदेव भी बहुत दुखी और चिंतित थे।

चंद्रदेव की प्रार्थना सुनकर इंद्रादि देवता तथा वसिष्ठ आदि ऋषिगण उनके उद्धार के लिए पितामह ब्रह्मा जी के पास गए। सारी बातों को सुनकर ब्रह्मा जी ने कहा- चंद्रदेव अपने शाप-विमोचन के लिए अन्य देवों के साथ पवित्र प्रभासक्षेत्र में जाकर मृत्युंजय भगवान शिव की आराधना करें। उनकी कृपा से अवश्य ही इनका शाप नष्ट हो जाएगा और ये रोगमक्त हो जाएँगे। 

उनके कथनानुसार चंद्रदेव ने मृत्युंजय भगवान शिव‌ की आराधना करना आरम्भ किया। उन्होंने घोर तपस्या करते हुए दस करोड़ बार मृत्युंजय मंत्र का जप किया। इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अमरत्व का वर प्रदान किया। उन्होंने कहा- चंद्रदेव मेरे वर से तुम्हारा शाप-मोचन तो होगा ही, साथ ही साथ प्रजापति दक्ष के वचनों की रक्षा भी हो जाएगी। कृष्णपक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी एक-एक कला क्षीण होगी, किंतु पुनः शुक्ल पक्ष में उसी क्रम से तुम्हारी एक-एक कला बढ़ जाया करेगी। इस प्रकार प्रत्येक पूर्णिमा को तुम्हें पूर्ण चंद्रत्व प्राप्त होता रहेगा।चंद्रदेव को मिलने वाले इस वरदान से सारे लोकों के प्राणी प्रसन्न हो उठे। सुधाकर चन्द्रदेव पुनः दसों दिशाओं में सुधा-वर्षण का कार्य पूर्ववत करने लगे।

शाप मुक्त होकर चंद्रदेव ने अन्य देवताओं के साथ मिलकर मृत्युंजय भगवान से प्रार्थना की कि आप माता पार्वती जी के साथ सदा के लिए प्राणियों के उद्धारार्थ यहाँ निवास करें। भगवान शिव उनकी इस प्रार्थना को स्वीकार करके ज्योतर्लिंग के रूप में माता पार्वती जी के साथ तभी से यहाँ रहने लगे।

ऐसी मान्यता है कि इसी पावन स्थान पर श्रीकृष्ण भालुका तीर्थ पर विश्राम कर रहे थे। तब जारा नामक एक शिकारी ने उनके बायें पैर के तलवे के पद्मचिन्ह को हिरण की आंख जानकर धोखे में तीर मारा था जिस कारण कृष्ण ने देह त्यागकर यहीं से वैकुंठ गमन किया। इस स्थान पर बडा ही सुन्दर कृष्ण मंदिर बना हुआ है।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर की संरचना

सोमनाथ मंदिर तीन हिस्सों में बंटा हुआ है, जिसमें मंदिर का गर्भगृह, नृत्यमंडप और सभामंडप शामिल हैं। सोमनाथ मंदिर के शिखर की ऊंचाई 150 फीट है। मंदिर के शिखर पर स्थित कलश का वजन 10 टन है और इसकी ध्वजा 27 फीट ऊँची है। सोमनाथ मंदिर में स्थित शिवलिंग में रेडियोधर्मी गुण है जो जमीन के ऊपर संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।

सोमनाथ मंदिर के परिसर में एक बेहद खूबसूरत गणेश जी का मंदिर स्थित है साथ ही उत्तर द्वार के बाहर अघोरलिंग की प्रतिमा स्थापित की गई है। हिन्दुओं के इस पवित्र तीर्थस्थल में गौरीकुण्ड नामक  सरोवर बना हुआ है और सरोवर के पास एक शिवलिंग स्थापित है। इसके अलावा इस भव्य सोमनाथ मंदिर के परिसर में माता अहिल्याबाई और महाकाली का बेहद सुंदर एवं विशाल मंदिर बना हुआ है।

मंदिर के दक्षिण में समुद्र के किनारे एक स्तंभ है जिसे बाणस्तंभ के नाम से जाना जाता है। इसके ऊपर तीर रखा गया है जो यह दर्शाता है कि सोमनाथ मंदिर और दक्षिण ध्रुव के बीच पृथ्वी का कोई भाग नहीं है। यहाँ पर तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का संगम है और इस त्रिवेणी में लोग स्नान करने आते हैं। तपस्या से पहले चंद्रमा ने त्रिवेणी संगम पर स्नान किया था। इसलिए त्रिवेणी स्नान की बहुत मान्यता है।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर का इतिहास

सोमनाथ मंदिर का इतिहास

गुजरात के पश्चिमी तट पर सौराष्ट्र में वेरावल बंदरगाह के पास प्रभास पाटन में स्थित यह मंदिर इतिहास में उत्थान और पतन का प्रतीक रह चुक है। प्राचीन समय में सोमनाथ मंदिर मुस्लिम शासकों और पुर्तगालियों द्वारा कई बार हमला कर तोड़ा गया एवं कई बार हिन्दू सम्राटों द्वारा इसका निर्माण भी करवाया गया है।

सोमनाथ मंदिर पहली बार किस समय बना इसका कोई एतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। इस मंदिर के उल्लेखानुसार ईसा के पूर्व से यह अस्तित्व में था। फिर भी यह जानकारी जरूर उपलब्ध है कि द्वितीय बार मंदिर का पुनर्निर्माण 649 ई में वल्लभी के मैत्रिक राजाओं ने किया। पहली बार इस मंदिर को 725 ईस्वी में सिन्ध के मुस्लिम सूबेदार अल जुनैद ने तुड़वा दिया था। फिर प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इसका पुनर्निर्माण करवाया।

अरब यात्री अलबरूनी ने अपने यात्रा वृतान्त में इसका विवरण लिखा जिससे प्रभावित हो महमूद गजनवी ने सन् 1024 में सोमनाथ मंदिर पर हमला किया, उसकी सम्पत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया। महमूद के मंदिर तोड़ने और लूटने के बाद गुजरात के राजा भीमदेव और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया। 1093 में सिद्धराज जयसिंह ने भी मंदिर निर्माण में सहयोग दिया। 1168 में विजयेश्वर कुमारपाल और सौराष्ट्र के राजा खंगार ने भी सोमनाथ मंदिर के सौन्दर्यीकरण में योगदान किया था।

सन् 1297 में जब दिल्ली सल्तनत के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खां ने गुजरात पर हमला किया तो उसने सोमनाथ मंदिर को फिर से तोड़ दिया और सारी धन-संपदा लूटकर ले गया। मंदिर को फिर से हिन्दू राजाओं द्वारा बनवाने और मुस्लिम राजाओं द्वारा उसे तोड़ने का काम जारी रहा। सन् 1395 में गुजरात के सुल्तान मुजफ्‍फरशाह ने मंदिर को फिर से तुड़वाकर सारा चढ़ावा लूट लिया। इसके बाद 1413 में उसके पुत्र अहमद शाह ने भी यही किया।

बाद में मुगल बादशाह औरंगजेब के काल में सोमनाथ मंदिर को दो बार तोड़ा गया। पहली बार 1665 ई में और दूसरी बार 1706 ई में। 1665 में मंदिर तुड़वाने के बाद जब औरंगजेब ने देखा कि हिन्दू उस स्थान पर अभी भी पूजा-अर्चना करने आते हैं तो उसने वहां एक सैन्य टुकड़ी भेजकर कत्लेआम करवाया। जब भारत का एक बड़ा हिस्सा मराठों के अधिकार में आ गया तब 1783 में इंदौर की रानी अहिल्याबाई द्वारा मूल मंदिर से कुछ ही दूरी पर पूजा-अर्चना के लिए सोमनाथ महादेव का एक और मंदिर बनवाया गया।

सोमनाथ मंदिर के वर्तमान भवन के पुनर्निर्माण का आरंभ भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् सरदार वल्लभ भाई पटेल ने करवाया और 11 मई 1951 को भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने मंदिर में ज्योतिर्लिंग की स्थापना की। 1 दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया।

सोमनाथ मंदिर के प्राचीन इतिहास और इसकी वास्तुकला और प्रसिद्धि के कारण इसे देखने के लिए देश और दुनिया से भारी संख्या में पर्यटक यहां आते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव के इस प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही भक्तों के सारे दुख-दर्द दूर हो जाते हैं एवं सोमनाथ भगवान की पूजा-आराधना से भक्तों के क्षय रोग ठीक हो जाते हैं। सोमनाथ मंदिर में कार्तिक, चैत्र एवं भाद्र महीने में श्राद्ध करने का बहुद महत्व हैं। इन तीन महीनों में यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।

अन्य दर्शनीय स्थल

भालुका तीर्थ मंदिर, गीता मंदिर, त्रिवेणी संगम, सूरज मंदिर, पांच पांडव गुफा, भगवान श्री कृष्ण की समाधि, बाणगंगा

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर कैसे पहुंचें

रेलमार्ग द्वारा यात्रा – सोमनाथ शहर में रेलवे स्टेशन की सुविधा उपलब्ध है, जो गुजरात के अधिकांश शहरों से ट्रेन द्वारा जुड़ा हुआ है। सोमनाथ का नजदीकी रेलवे स्टेशन वेरावल है जिस की दूरी यहां से लगभग 7 किलोमीटर है। देश के विभिन्न हिस्सों से राजकोट या अहमदाबाद पहुंचकर वहां से ट्रेन के माध्यम से सोमनाथ पहुंचा जा सकता है। 

सड़क मार्ग द्वारा यात्रा – सोमनाथ के लिए गुजरात के अधिकांश शहरों से गुजरात राज्य सरकार के साथ-साथ प्राइवेट बस की सुविधा उपलब्ध है।

हवाई जहाज द्वारा यात्रा – सोमनाथ मंदिर का सबसे करीबी हवाई अड्डा केशोद हवाई अड्डा है, लेकिन एक छोटा हवाई अड्डा है। गुजरात के अलावा भारत के कुछेक शहरों से ही केशोद हवाई अड्डा के लिए हवाई सुविधा उपलब्ध है। सोमनाथ के नजदीक का महत्वपूर्ण हवाई अड्डा दीव और राजकोट हवाई अड्डा है। दीव और राजकोट से सोमनाथ की दूरी क्रमशः 95 और 200 किलोमीटर है।

सोमनाथ मंदिर दर्शन से जुड़ी जानकारियां सोमनाथ मंदिर की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं।

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2 thoughts on “प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ ज्योतिर्लिंग”

  1. प्रशांत कुमार

    सोमनाथ मंदिर के विषय में विस्तृत एवं रोचक ऐतिहासिक जानकारी।

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