श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग

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रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की कथाहिंदुओं के पवित्र तीर्थस्थलों में से एक रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग मंदिर बहुत ही विशाल व प्रसिद्ध मंदिर है। शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से 11वां ज्योतिर्लिंगरामेश्वरम ज्योतिर्लिंगहै। यह तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। यह तीर्थ हिन्दुओं के चार धामों में से एक है। रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग मंदिर को रामनाथस्वामी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। भारत के उत्तर में काशी की जो मान्यता है, वही दक्षिण में रामेश्वरम की है। रामेश्वरम चेन्नई से लगभग 555 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में है। 

रामेश्वरम तीर्थ हिन्द महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा हुआ सुन्दर शंख के आकार का एक द्वीप है। काफी समय पूर्व यह द्वीप भारत की भूमि से जुड़ा हुआ था, परन्तु बाद में सागर की लहरों ने भारत और द्वीप की भूमि के रास्ते को काट डाला, जिससे वह चारों ओर से पानी से घिरकर द्वीप बन गया। चार सौ वर्ष पहले कृष्णप्पनायकन नाम के एक राजा ने उस पर पत्थर का बहुत बड़ा पुल बनवाया था। अंग्रेजों के आने के बाद उस पुल की जगह पर रेल का एक नया पुल बनवाया गया जिसे पंबन ब्रिज के नाम से जाना जाता है, जो कंक्रीट के 145 खम्भों पर टिका है। इस समय यही पुल रामेश्वरम को भारत से रेल सेवा द्वारा जोड़ता है।

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग से जुड़ी पौराणिक कथा

वाल्मीकि रामायण के अनुसार इस मंदिर में जो शिवलिंग हैं, उसके पीछे मान्यता यह है कि जब मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम लक्ष्मण, हनुमान और वानर सेना के साथ समुद्र तट पर पहुंचे तब उन्होंने देखा कि लंका नगरी समुद्र के उस पार है। समुद्र से लंका की दूरी को कैसे तय किया जाए ऐसा विचार करने लगे। यह उन सबके के लिए बहुत बड़ी समस्या थी क्योंकि उन्हें सीता जी को रावण की लंका से वापस लाना था। भगवान राम जी शिव जी की रोज पूजा किया करते थे लेकिन इस समस्या के कारण वे उस दिन शिव जी की पूजा करना भूल गए।

भगवान राम जी को यकायक प्यास लगी और उन्होंने जल मांगा। जल ग्रहण करने से पहले ही उन्हें याद आया कि उन्होंने आज शिव भगवान जी की पूजा नहीं की है, तब श्री राम ने बालू का शिवलिंग स्थापित करके शिव पूजन किया। भगवान राम जानते थे कि रावण भी शिव का परम भक्त है और युद्ध में हरा पाना कठिन कार्य है, इसलिए भगवान राम ने लक्ष्मण सहित शिव जी की आराधना की। भगवान शिव प्रसन्न होकर माता पार्वती के साथ प्रकट हुए और श्री राम को विजय का आशीर्वाद दिया। भगवान राम ने शिव जी से लोक कल्याण के लिए उसी स्थान पर शिवलिंग के रूप में सदा के लिए निवास करने को कहा जिसे भगवान शिव ने स्वीकार कर लिया। तब से रामेश्वरम में शिवलिंग के रूप में भगवान शिव वहाँ विराजमान हैं।

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग से जुड़ी दूसरी कथा

इसके अलावा ज्योतिर्लिंग के स्थापित होने की एक कहानी और है। इसके अनुसार जब भगवान श्री राम लंका पर विजय प्राप्त कर लौट रहे थे तो उन्होंने गंधमादन पर्वत पर विश्राम किया। वहां पर ऋषि-मुनियों ने श्री राम को बताया कि उन पर ब्रह्महत्या का दोष है जो शिवलिंग की पूजा करने से ही दूर हो सकता है। 

उन्होंने शिव की पूजा करने के लिए एक विशाल लिंगम बनाने का फैसला किया। इसलिए, उन्होंने अपने हनुमान को काशी से एक शिवलिंग लाने के लिए कहा। चूँकि पूजा एक पूर्व-निर्धारित मुहूर्त (विशेष शुभ मुहूर्त) में की जानी थी, और हनुमान को ‘लिंगम’ के साथ लौटने में देरी हो रही थी इसलिए मुहूर्त निकल जाने के भय से माता सीता ने बालू से ही विधिवत रुप से शिवलिंग का निर्माण कर श्री राम को सौंप दिया जिसे उन्होंने मुहूर्त के समय स्थापित किया। यह लिंगम, जिसकी भगवान राम ने पूजा की थी, को ‘रामनाथर’ या ‘रामलिंगम’ के नाम से जाना जाता है, और इस तरह रामेश्वरम को इसका नाम मिला।

जब हनुमान वहां पहुंचे तो देखा कि शिवलिंग तो पहले ही स्थापित हो चुका है इससे उन्हें बहुत बुरा लगा। श्री राम हनुमान की भावनाओं को समझ रहे थे और उन्होंने हनुमान को समझाया भी लेकिन वे संतुष्ट नहीं हुए। तब श्री राम ने कहा कि स्थापित शिवलिंग को उखाड़ दो तो मैं इस शिवलिंग की स्थापना कर देता हूं। लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी हनुमान ऐसा न कर सके और अंतत: मूर्छित होकर गंधमादन पर्वत पर जा गिरे। होश में आने पर उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ तो श्री राम ने हनुमान द्वारा लाये शिवलिंग को भी नजदीक ही स्थापित किया और उसका नाम हनुमदीश्वर रखा। इस लिंगम को ‘काशी विश्वनाथर’ या कासिलिंगम के नाम से भी जाना जाता है।

भगवान राम ने हनुमान को आशीर्वाद दिया कि इस मंदिर में आने वाले किसी भी व्यक्ति को सीता द्वारा बनाए गए लिंगम की पूजा करने से पहले इस लिंगम (हनुमान द्वारा लाए गए) की पूजा करनी होगी। तो, इस मंदिर में दो शिवलिंग हैं – एक माता सीता द्वारा बनाया गया और दूसरा हनुमान द्वारा लाया गया। परंपरा के अनुसार, जो भक्त रामनाथस्वामी मंदिर में जाते हैं, वे ‘रामलिंगम’ की पूजा करने से पहले ‘कासिलिंगम’ की पूजा करते हैं।

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग मंदिर की संरचना

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग मंदिरमंदिर – रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग मंदिर भारतीय निर्माणकला और शिल्पकला का एक सुंदर नमूना है। यह मंदिर द्रविड़ शैली में बना है। मंदिर 15 एकड़ में बना हुआ है। यह मंदिर 1000 फुट लंबा और 650 फुट चौड़ा है। 40 फुट ऊंचे दो पत्थरों पर इतनी ही बराबरी के एक लंबे पत्थर को लगाकर इसका निर्माण किया गया है। माना जाता है कि रामेश्वरम मंदिर के निर्माण में लगे पत्थरों को श्रीलंका से नावों द्वारा लाया गया था।

दक्षिण भारत के सभी प्राचीन मंदिरों की तरह, मंदिर परिसर के चारों ओर एक ऊंची चारदीवारी है, जिसकी लंबाई पूर्व से पश्चिम तक लगभग 865 फीट और उत्तर से दक्षिण तक 657 फीट है। चारदीवारी सभी दिशाओं में विशाल मीनारों (गोपुरम) से युक्त है।

गलियारा – रामेश्वरम मंदिर का गलियारा विश्व का सबसे बड़ा गलियारा माना जाता है। यह उत्तर-दक्षिण में 197 मी. एवं पूर्व-पश्चिम में 133 मी. है जिसकी चौड़ाई 6 मी. तथा ऊंचाई 9 मी. है। रामेश्वरम मंदिर का प्रवेश द्वार 40 फीट ऊंचा है। मंदिर में सैकड़ों विशाल खंभे हैं और प्रत्येक खंभे पर अलग-अलग तरह की बारीक कलाकृतियां बनी हैं। गोपुरम, मंदिर के द्वार से लेकर मंदिर का हर स्तंभ, हर दीवार वास्तुकला की दृष्टि से अद्भुत है।

पश्चिम में तीसरे कॉरिडोर का जंक्शन और पश्चिमी गोपुरम से सेतुमाधव तीर्थ तक जाने वाला पक्का रास्ता एक शतरंज बोर्ड के रूप में एक अनूठी संरचना बनाता है, जिसे चोककटन मंडपम के नाम से जाना जाता है, जहां उत्सव के दौरान उत्सव देवताओं को सजाया और रखा जाता है। 

दो लिंगम – मंदिर में लिंगम के रूप में प्रमुख देवता रामनाथस्वामी यानी शिव स्थापित हैं। मंदिर के गर्भगृह में दो लिंग हैं, एक सीता जी द्वारा रेत से निर्मित जिन्हें कि मुख्य देवता माना जाता है और इन्हें रामलिंगम नाम से जाना जाता है। जबकि दूसरा लिंग हनुमान द्वारा काशी से लाया गया, जिसे विश्वलिंगम/हनुमदीश्वर/कासिलिंगम के नाम से जाना जाता है। 

देवी पार्वती – मंदिर के परिसर में जिस प्रकार शिव की दो मूर्तियां हैं वैसे ही देवी पार्वती की भी दो अलग-अलग मूर्तियां स्थापित की गई हैं। देवी पार्वती की एक मूर्ति पर्वतवर्धिनी एवं दूसरी विशालाक्षी कही जाती हैं। विशालाक्षी मंदिर के गर्भगृह के निकट ही विभीषण द्वारा स्थापित 9 शिवलिंग स्थापित हैं। 

नंदी मंदिर – एक विशाल नंदी मंदिर भी है। नंदी मंडप 22 फीट लंबा, 12 फीट लंबा एवं 17 फीट ऊँचा है। मंदिर के पूर्वी द्वार के बाहर विशाल हनुमान जी की मूर्ति अलग मंदिर में स्थापित है। मंदिर में सेतुमाधव कहा जाने वाला भगवान विष्णु का मंदिर भी प्रमुख है।

पवित्र जलकुंड – रामेश्वरम मंदिर में दर्शन करने से पहले समुद्र में प्रातः स्नान किया जाता है। समुद्र किनारे सुन्दर अग्नि स्नान घाट बनाये गए हैं। यहां श्रद्धालु तर्पण एवं पूजा आदि करते देखे जा सकते हैं। इसके उपरांत मंदिर परिसर में बने 22 पवित्र जलकुंडों में स्नान किया जाता है। मान्यता है कि इन कुंडों का निर्माण भगवान राम के अमोध बाणों से हुआ था। उन्होंने अनेक तीर्थों का जल मंगाकर इनमें छोड़ा था। इसलिए इन्हें तीर्थ कहा जाता है। इनके नाम शंक, चक्र, गंगा, यमुना आदि धार्मिक नामों पर रखे गए हैं। किसी में बहुत ठंडा, किसी में सामान्य और किसी में हल्का गर्म पानी होता है। मान्यता है कि इन कुंडों में अलग-अलग धातुएं मिली हैं, जिसमें नहाने से शरीर के रोग दूर हो जाते हैं। बाइसवें कुंड में सभी इक्कीस कुंडों का मिला-जुला पानी आता है। इस पूरी प्रक्रिया में करीब 2 घंटे लगते हैं, तब जाकर शिवलिंग के दर्शन होते हैं।

चार धामों में से एक रामेश्वरम

ज्योतिर्लिंग होने के अलावा, रामेश्वरम स्थित रामनाथस्वामी मंदिर भारत के चार कोनों में स्थित मूल ‘चार-धाम’ (4 पवित्र और धार्मिक स्थान) में से एक है। ये चार धाम पुरी, रामेश्वरम, द्वारका और बद्रीनाथ में स्थित हैं। ये ‘चार-धाम’ हिंदुओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान हैं। मान्यता के अनुसार, एक व्यक्ति को भारत के पूर्व में ओडिशा में स्थित पुरी से ‘चार-धाम यात्रा’ शुरू करनी चाहिए। फिर दूसरे स्थान पर रामेश्वरम को कवर करते हुए दक्षिणावर्त दिशा में (घड़ी की सुई की दिशा में) आगे बढ़ना चाहिए, उसके बाद द्वारिका होते हुए बद्रीनाथ में यात्रा का समापन करना चाहिए।

अन्य दर्शनीय स्थल

अग्नितीर्थम, देवी मंदिर, सेतु माधव, विल्लीरणि तीर्थ, एकांत राम, कोद्ण्ड स्वामी मंदिर, सीता कुण्ड आदि-सेतु एडेम्स ब्रिज (राम सेतु), पंबन ब्रिज (इंदिरा गांधी ब्रिज), अरियामान बीच, धनुषकोडी, कलाम हाउस, पंचमुखी हनुमान मंदिर।

विदित हो कि रामेश्वरम शहर से करीब डेढ़ मील उत्तर-पूर्व में गंधमादन पर्वत नाम की एक छोटी सी पहाड़ी है। हनुमान जी ने इसी पर्वत से समुद्र को लांघने के लिए छलांग मारी थी। बाद में राम ने लंका पर चढ़ाई करने के लिए यहीं पर विशाल सेना संगठित की थी। इस पर्वत पर एक सुंदर मंदिर बना हुआ है, जहां श्रीराम के चरण-चिन्हों की पूजा की जाती है। इसे पादुका मंदिर कहते हैं।

रामायण की कथा के प्रमाण के रूप में, अभी भी तैरते हुए पत्थर मिल सकते हैं, जिनका उपयोग करके भगवान राम ने लंका तक एक ‘सेतु’ (पुल) बनाया था। ये पत्थर धनुषकोडी के पास मिले हैं। यहाँ अरब सागर और हिंद महासागर का संगम होने के कारण श्राद्धतीर्थ मानकर पितृकर्म करने का विधान है। 

इस मंदिर में मई-जून के महीने में वसंतोत्सवम नामक फेस्टिवल मनाया जाता है जो दस दिनों तक चलता है और वैशाख को खत्म होता है। इसके अलावा थिरुक्कल्याणम नामक फेस्टिवल भी रामेश्वरम मंदिर का एक बड़ा फेस्टिवल है जो 17 दिनों तक चलता है।

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग मंदिर में दर्शन का समय

पल्लीयाराई दीप आराधना – सुबह 5.00 से 5.10 तक

स्पादिगलिंगा दीप आराधना – सुबह 5.10 से 5.20 तक

तिरुवनंतल दीप आराधना – सुबह 5.45 से 5.55 तक

विला पूजा – सुबह 7.00 से 7.30 तक

कलासंथी पूजा – सुबह 10.00 से 10.30 तक

उचिकाला पूजा – दोपहर 12.00 से 12.30 तक

सायराचा पूजा – शाम 6.00 से 6.30 तक

अर्थजामा पूजा – रात 8.30 से 9.00 तक

पल्लियाराय पूजा – रात 8.45 से 9.15 तक

मणि दर्शन – रामेश्वरम मंदिर में एक खास दर्शन है मणि दर्शन। यह दर्शन मंदिर में प्रातः 5 बजे से 7 बजे के बीच किया जा सकता है। मणि दर्शन में स्फटिक के शिवलिंग का दर्शन होता है। सुबह सात बजे के बाद मणि दर्शन बन्द कर दिया जाता है।

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग मंदिर कैसे पहुंचें

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचेंरामेश्वरम भारतीय राज्य तमिलनाडु के सबसे अंतिम छोर पर स्थित है। अक्टूबर से अप्रैल तक का समय रामेश्वरम जाने के लिए अच्छा माना जाता है। इस समय यहां का मौसम बेहद अच्छा रहता है। विभिन्न माध्यमों के द्वारा रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग मंदिर के दर्शन के लिए जाया जा सकता है। 

रेलमार्ग द्वारा यात्रा – रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग मंदिर से 2 किलोमीटर की दूरी पर रामेश्वरम रेलवे स्टेशन है। यह एक छोटा रेलवे स्टेशन है। रामेश्वरम के लिए आसपास के शहरों से ही ट्रेनें उपलब्ध हैं। बड़े रेलवे स्टेशनों में मदुरई रेलवे स्टेशन यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन है। लगभग 550 किलोमीटर दूर चेन्नई से भी रामेश्वरम के लिए ट्रेन की सुविधा उपलब्ध है।

सड़क मार्ग द्वारा यात्रा – तमिलनाडु के विभिन्न शहरों के अलावा देश के विभिन्न शहरों से भी रामेश्वरम के लिए बस सेवा उपलब्ध है। निजी वाहनों के द्वारा भी सड़क मार्ग से रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए आया जा सकता है।

हवाई जहाज द्वारा यात्रा – रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग मंदिर से सबसे नजदीक हवाई अड्डा मदुरै में स्थित है।  मदुरै से रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की दूरी लगभग 170 किलोमीटर है। मदुरै से बस या टैक्सी के माध्यम से रामेश्वरम पहुंचा जा सकता है। 

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग मंदिर की यात्रा और दर्शन से संबंधित जानकारियों के लिए मंदिर की वेबसाइट http://www.rameswaramtemple.in/ पर संपर्क कर सकते हैं। 

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2 thoughts on “श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग”

  1. सचमुच यह एक ज्ञान का संग्रह है और भगवान शिव की महिमा और उनसे जुड़ी कथा ज्योतिर्लिंग पे, एकत्र करके डिजीटल लाइब्रेरी के माध्यम से डा पवन के द्वारा यह अथक प्रयास काफी सराहनीय है और मैं उनको दिल से धन्यवाद देता हूं कि वो अपने ज्ञान सागर में हम लोगों को डुबकी लगाने का मौका दे रहे हैं।।
    ।।हर हर महादेव 🙏🙏।।

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