आधुनिक समय में पुराण का महत्व क्या है?

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धर्म संपूर्ण विश्व के धारण, पोषण, सामंजस्य एवं ऐकमत्व का संपादन करने वाला एकमात्र तत्व है। धर्म का सम्यक ज्ञान वेदों और उसकी सरल व्याख्या करने वाले पुराण आदि के द्वारा ही संपन्न होता है। पुराणों के कारण ही धर्म की रक्षा और भक्ति का मनोरम विकास संभव हो सका है। इसी कारण भारतीय धर्म और संस्कृति में प्राचीन काल से ही पुराण का महत्व रहा है और यह भविष्य में भी बना रहेगा। 

हिंदू धर्म में 18 पुराण हैं। 18 पुराणों के नामों की सूची चित्र तालिका में दी गई है – 

पुराण का महत्व एवं पुराणों की सूची

सभी शास्त्रों में पुराणों की प्राथमिकता मानी जाती है। दस विद्याओं की गणना में पुराणों का प्रथम स्थान है।

पुराणं सर्वशास्त्राणं प्रथमं ब्रह्मणा स्मृतम्।

अनंतरं च वक्त्रेभ्यो वेदास्तस्य विनिर्गतः।।

अर्थात ब्रह्मा जी ने समस्त शास्त्रों में सर्वप्रथम पुराणों का स्मरण-उपदेश किया। उसके पश्चात उनके मुख से वेद प्रकट हुए।
पुराणों से संबंधित जानकारी के लिए आप निम्न आलेख देख सकते हैं –
18 पुराणों के नाम और उनका संक्षिप्त परिचय

इस आलेख में उन विषयों का उल्लेख किया गया है जिनका विस्तृत वर्णन पुराणों में है। पुराणों के विषयों की व्यापकता इतनी है कि उसे छोटे से आलेख में समेटना संभव नहीं है फिर भी संक्षिप्त रूप में यहां पुराण  कि उन विशिष्टताओं का उल्लेख किया गया है जो पुराण का महत्व स्थापित करते हैं।

Table of Contents

वेदों की सरल रूप में व्याख्या

वेदों की महिमा अपार है पर उसकी शब्दावली कठिन और प्रतिपादन प्रक्रिया पर्याप्त जटिल है। उन्हें  ब्राह्मण ग्रंथों, निरुक्त, छंद, स्रोत सूत्र, व्याकरण इत्यादि के आधार पर कठिनता से समझा जा सकता है। पर पुराण उनके समस्त अर्थों को सरल शब्दों में और कथानक शैली में सामान्य बुद्धि वाले पाठकों को भी हृदयंगम करा देता है। इसलिए वेदों को समझने हेतु पुराणों की सहायता लेने की सलाह दी जाती है। नारद पुराण में कहा गया है –

वेदः प्रतिष्ठिताः सर्वे पुराणेष्चेव सर्वदा।

अर्थात वेद पुराणों में ही प्रतिष्ठित है इसमें कोई संशय नहीं है।

संस्कृत वांग्मय में पुराणों का विशेष स्थान है। इनमें वेदों का स्पष्टीकरण होने के साथ ही साथ कर्मकांड, उपासनाकांड तथा ज्ञानकांड के सरलतम विस्तार के साथ-साथ कथा वैचित्र्य के द्वारा गुढ़ से गुढ़तम तत्व को भी सरल भाषा में आमजन को समझाने की क्षमता है।

वेदों की कथाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन

महाभारत में कहा गया है –

पुराणसंहिताः पुण्याः कथा धर्मार्थसंश्रृताः। 

अर्थात पुराणों की पवित्र कथाएं धर्म और अर्थ को देने वाली हैं। 

अध्यात्म की दिशा में अग्रसर होने वाले साधकों को पौराणिक कथाओं के अनुशीलन से तात्विक बोध की उपलब्धि होती है। वेदों में संक्षिप्त रूप से वर्णित कथाएं अति रोचकता के साथ विस्तारपूर्वक पुराणों में कही गई हैं।

सर्वांग विद्या के ग्रंथ के रूप में पुराण का महत्व

राजनीति, धर्मनीति, इतिहास, समाज विज्ञान, ग्रह-नक्षत्र विज्ञान, आयुर्वेद, अलंकार, व्याकरण, भूगोल, ज्योतिष आदि समस्त विद्याओं का प्रतिपादन पुराणों में हुआ है। ऐसा कोई विषय नहीं है जिसका उल्लेख पुराणों में नहीं किया गया है। भारतीय संस्कृति का विशिष्ट ज्ञान हमें पुराणों के द्वारा ही प्राप्त होता है।

भगवान विष्णु का माहात्म्य वर्णन

सभी पुराणों में भगवान विष्णु के माहात्म्य का वर्णन किया गया है परंतु श्रीमद्भागवत पुराण एवं विष्णु पुराण जैसे पुराणों में भगवान विष्णु का विशेष रूप से वर्णन किया गया है। इन पुराणों में भगवान विष्णु को एक प्रमुख देवता के रूप में उल्लिखित किया गया है। इनमें वैदिक देवताओं की अपेक्षा पौराणिक विष्णु के उत्कर्ष की कथा कही गई है। भगवान विष्णु के माहात्म्य का वर्णन करने के क्रम में वैष्णव धर्म का विकास, वैष्णवी भक्ति, वैष्णव अवतार की अवधारणा तथा लक्ष्मी जी की कथा पर प्रकाश डाला गया है।

भगवान शिव का माहात्म्य वर्णन

शिव पुराण, लिंग पुराण सहित 10 पुराणों में शिव को एक प्रमुख देवता के रूप में दिखाया गया है। भगवान शिव के उल्लेख के क्रम में वैदिक परंपरा से प्रभावित पौराणिक स्थलों का वर्णन किया गया है। पशुपति, त्रयंबक, भव, शर्व, ईशान, शूलपाणि, नीललोहित, बृषध्वज इत्यादि का उल्लेख किया गया है। इन पुराणों में शिव के अनेक रूप, अग्नि से शिव की एकता, शिव के रौद्र और सौम्य रूपों का समन्वय, शिव और यज्ञ, लिंगोद्भव और लिंग पूजा इत्यादि का उल्लेख कर शिव के माहात्म्य को स्थापित किया गया है। शिव प्रसंग के क्रम में पार्वती, स्कंद, गणेश, शिव के अनुचरों तथा रुद्रगणों इत्यादि का उल्लेख किया गया है।

सूर्य तथा सौर पूजा का माहात्म्य वर्णन

पुराणों में भगवान शिव और विष्णु की तुलना में सूर्य की स्थिति गौण है। फिर भी सभी पुराणों में सूर्य पूजा, सूर्य के क्रियाकलाप, सौर प्रतिमा, मंदिर एवं व्रत विधानों का उल्लेख कर सूर्य को महत्ता प्रदान की गई है। पुराणों का वर्ण्य विषय सृष्टि है और सृष्टि की उत्पत्ति सूर्य से मानी गई है इसलिए भी पुराणों में सूर्य को महत्व प्रदान किया गया है।

शाक्त धर्म का माहात्म्य वर्णन

पुराणों में शक्ति की महत्ता का प्रतिपादन किया गया है। देवी भागवत महापुराण में शक्ति की महत्ता का विशद वर्णन मिलता है। पुराणों में शक्ति का अधिष्ठान और वाहन, शक्ति सृजन के सामान्य स्थल व विशिष्ट स्थल, शक्ति के विभिन्न रूप, शक्ति और विष्णु, शक्ति – रूद्र शिव और ब्रह्मा, शक्ति की वेशभूषा एवं शस्त्रास्त्र, असुरों के विनाश में शक्ति का सहयोग इत्यादि विषयों का विशद उल्लेख कर शक्ति का महत्व स्थापित किया गया है।

हिंदू धर्म के विभिन्न देवी-देवताओं का वर्णन

पुराणों में शिव, विष्णु, शक्ति के अतिरिक्त अन्य देवी-देवताओं का कथा-प्रसंगों में एवं स्वतंत्र रूप से उल्लेख किया गया है।जिन देवी-देवताओं का प्रमुखता से पुराणों में उल्लेख किया गया है उनमें इंद्र, वरुण, मित्र, अश्विन, बृहस्पति, ब्रह्मा इत्यादि शामिल हैं। इनके अतिरिक्त देव सदृश्य मानवेतर योनियों – गंधर्व, अप्सरा, यक्ष, नाग इत्यादि का भी उल्लेख पुराणों में किया गया है।

हिंदू धर्म के व्रतों के माहात्म्य का वर्णन

वेद ज्ञान के भंडार और धर्म के मूल स्रोत हैं परंतु उनमें ग्रहों का संचार, समय की शुद्धि, त्रिस्पृशा आदि विशिष्ट लक्षणों सहित प्रतिपदा से पूर्णिमा तक की कालबोधनी तिथियों का सुस्पष्ट निर्देश नहीं हुआ है इसीलिए एकादशी, शिवरात्रि आदि  व्रतों का माहात्म्य, ग्रहण व पंचरात्र आदि विशिष्ट पर्वों के कृत्य इत्यादि का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं है। परंतु पुराणों में वेदों के अर्थ सहित सभी उपर्युक्त विषयों, वेदांग एवं धर्मशास्त्रों के धर्म-कृत्यों, देवोपासना विधि, तीर्थों का माहात्म्य, तीर्थों में दान-पुण्य तथा व्रत करने की विधि, सदाचार के उपदेश इत्यादि का स्पष्ट उल्लेख मिलता है।

सदाचार से जुड़ी कथाएं 

महर्षि व्यास ने पुराणों के माध्यम से मानव समाज के आध्यात्मिक कल्याणार्थ भगवत अवतार की लीलाएं, आदर्श पुरुषों का सच्चरित्र, भक्तिमय जीवन और धर्माचरण का वर्णन किया है। पुराणों में सच्चे मार्ग पर चलने वाले का यश और बुरे आचरण वालों की दुर्गति भली-भांति दिखाई गई है। पुराणों के कथा रूप उपदेश के कारण आज तक भारत वासियों के मानस पटल पर अपनी पुरानी संस्कृति अंकित है। पुराण सनातन धर्म के कल्याण मार्गों (कर्म, उपासना, ज्ञान) का विविध ढंग से उपस्थापन करते हैं। 

जीवन को उत्कृष्ट बनाने वाले आठ भावों का वर्णन

जिस प्रकार बौद्ध धर्म में मनुष्य जीवन को संयमित और संतुलित रखने के लिए अष्टांगिक मार्ग का प्रावधान किया गया है उसी प्रकार पुराणों में भी आठ प्रकार के भावों की चर्चा की गई है। इन भावों के अनुपालन से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। अग्नि पुराण में वर्णित श्लोक निम्न प्रकार है – 

अहिंसा प्रथमं पुष्पं पुष्पम् इन्द्रियनिग्रहः

सर्व-भूत-दया पुष्पं क्षमा पुष्पं विशेषतः।

ज्ञानं पुष्पं तपः पुष्पं शान्तिः पुष्पं तथ एव च

सत्यम् अष्ट-विधं पुष्पं विष्णोः प्रीतिकरं भवेत्॥

ये आठ भाव हैं – अहिंसा (किसी भी प्राणी का तन-मन-वचन से बुरा ना चाहना, ना करना और ना उसका समर्थन करना), इंद्रिय-निग्रह (इंद्रियों को मनमाने विषयों में ना जाने देना), प्राणी मात्र पर दया (दूसरे के दुख को अपना दुख समझ कर उसे दूर करने के लिए प्रयत्न करना), शांति (किसी भी अवस्था में चित्त का क्षुब्ध ना होना), शम (मन को वश में रखना), तप (स्वधर्म के पालन के लिए कष्ट सहना), ध्यान (इष्ट देव के स्वरूप में चित्त की तदाकार वृत्ति) तथा सत्य

भगवत् प्राप्ति के साधन के रूप में पुराण का महत्व

पौराणिक कथाओं का उद्देश्य भगवत् प्राप्ति है। पुराणों में सर्ग-विसर्ग आदि पांच लक्षण, व्रत-उपवास, तीर्थ, उपासना, योग, यज्ञ आदि का विस्तृत उल्लेख किया गया है। ये सभी साधन अंतःकरण की शुद्धि द्वारा भगवत् प्राप्ति में सहायक होते हैं। जहां-जहां भूगोल-खगोल चौदह लोकों का वर्णन है, वह सब भगवान के स्थूल स्वरूप का ही वर्णन है। बिना स्थूल स्वरूप को जाने सुक्ष्म स्वरूप का ज्ञान असंभव है।

हिंदू धर्म के चार पुरुषार्थों का वर्णन

पुराणों में चारों पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) का बड़ा ही सुंदर निरूपण किया गया है। चारों का एक दूसरे से क्या संबंध है इसे भी भली-भांति समझाया गया है। इन पुरुषार्थों के विपरीत आचरण करने वाले को क्या फल प्राप्त होता है इसका भी निरूपण पुराणों में किया गया है। 

व्याकरण ग्रंथ के रूप में पुराण का महत्व

पुराणों का सूक्ष्म विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट होता है कि यह सभी प्रकार से शुद्ध, सभ्य भाषायुक्त, सुबोध कथाओं से समन्वित और मधुरतम पद विन्यासों से अलंकृत है। जब व्याकरण ग्रंथ की चर्चा आती है तो पाणिनि के अष्टाध्यायी का ध्यान आता है। लेकिन नारद पुराण में व्याकरण का ऐसा श्लोकबद्ध विवरण किया गया है कि उसे कंठस्थ कर कोई मनुष्य व्याकरण का आचार्य हो सकता है।

भारतवर्ष की भौगोलिक स्थिति का वर्णन

सभी पुराणों में भूगोल का सांगोपांग  विवरण दिया गया है। इसमें संपूर्ण पृथ्वी का परिमाण, प्रत्येक द्वीप की सीमा का उल्लेख, उनमें पर्वतों, नदियों, जनपदों और भौगोलिक विषयों का यथार्थ उल्लेख किया गया है। भारतीय पुराण शास्त्र के ज्ञाता और भूगोल संबंधी अन्वेषण के लिए विख्यात विल्फोर्ड़ ने इन्हीं पुराणों के वर्णन के आधार पर नील नदी के उद्गम स्थान का पता लगा लिया था।

पुराणों में मुख्य रूप से भारतवर्ष और गांव रूप से अन्य देशों का विवरण मिलता है। भारतवर्ष का पूर्ण भौगोलिक परिचय, भारतवर्ष के पर्वत, नदियां, जनपद, यहां के निवासी आदि का नामोल्लेख और उनका संक्षिप्त परिचय सभी पुराणों में मिलता है। इसी तरह हिमालय के वनों, उपवनों, गिरि-गह्वरों तथा सरोवरों का वर्णन पुराणों में किया गया है।

भारतवर्ष के नाम-निर्वचन तथा उसकी भौगोलिक स्थिति के विषय में अग्नि पुराण के निम्न श्लोक में उल्लेख मिलता है – 

उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्। 

वर्षं तद् भारतम् नाम नवसाहस्रविस्तृतम्।।

अर्थात समुद्र के उत्तर और हिमाद्रि से दक्षिण नवसहस्त्र योजन में विस्तृत जो प्रदेश है, वह भारत है। इसी श्लोक का उल्लेख थोड़ी-बहुत भिन्नता के साथ अन्य पुराणों में भी किया गया है।

हालांकि कुछ विद्वानों की मान्यता है कि पुराणों में उपलब्ध भूगोल-खगोल आदि विषयों से संबंधित जानकारी प्रमाणिक नहीं मानी जा सकती। यह संभव है कि प्रकृति परिवर्तन और राजनीतिक व्यवस्था में परिवर्तन के कारण पुराणों में उल्लिखित पर्वत, नदी, जनपद आदि का ठीक-ठीक परिचय वर्तमान समय में कठिन हो परंतु जैसे-जैसे अनुसंधान होते जा रहे हैं पुराणों के भौगोलिक विवरणों की सत्यता धीरे-धीरे प्रमाणित होती जा रही है।

खगोल संबंधित गणनाएं

सभी पुराणों में खगोल संबंधी विवरण मिलता है। इसमें आकाश के ग्रह-नक्षत्र आदि का अवस्थिति कहां-कहां है,  कौन ग्रह किस ग्रह से कितनी दूरी पर है, उनका भूमि पर पड़ने वाला प्रभाव क्या है इत्यादि का विवरण देने के साथ-साथ कहीं-कहीं गृह तथा नक्षत्रों के स्वरूप के विषय में भी प्रकाश डाला गया है।  इसमें सूर्यमंडल, चंद्रमंडल, नक्षत्रमंडल, सप्तर्षिमंडल, बुध, शुक्र, बृहस्पति, शनि, सूर्य की गति का निरूपण, दिन और रात्रि की व्यवस्था, नक्षत्रों का प्रभाव, नक्षत्रों की क्रमगणना, ग्रहण की स्थिति इत्यादि का विवरण मिलता है। 

वास्तु शास्त्र विषयक तत्वों का उल्लेख 

वास्तु शास्त्र से जुड़े विभिन्न तत्वों  का वर्णन पुराणों में मिलता है। वास्तु विद्या नगर मापन की विधि, विभिन्न भवनों का उल्लेख, उद्यानों का उल्लेख, जलाशयों का वर्णन प्रसंगानुरूप पुराणों में किया गया है।

हिंदू धर्म में यज्ञ की महत्ता की स्थापना

यज्ञ एवं उससे संबंधित विधि-विधान हिंदू धर्म एवं संस्कृति के महत्वपूर्ण अंग रहे हैं। पुराणों में याज्ञिक अनुष्ठानों के उद्देश्य, यज्ञशाला, यज्ञ पशु, समिधा, हविस्, वैदिक मंत्रों की उपयोगिता, यज्ञ पुरोहित तथा अश्वमेध, राजसूय, वाजपेय, अग्निहोत्र, अग्निष्टोम, नरमेध इत्यादि विशिष्ट यज्ञों का उल्लेख किया गया है।

तीर्थ यात्रा का माहात्म्य

शायद ही कोई ऐसा हिंदू हो जो तीर्थ यात्रा ना करता हो। तीर्थ यात्रा हिंदुओं के जीवन का एक अभिन्न भाग है। पुराणों में तीर्थों की महत्ता, तीर्थ यात्रा के उद्देश्य, तीर्थों में विहित कर्तव्य, यात्रा की विधि, प्रयाग, वाराणसी, मथुरा, गया इत्यादि विशेष तीर्थों का वर्णन एवं विभिन्न तीर्थों के मध्य तुलनात्मक विवेचन इत्यादि का विशद वर्णन किया गया है।

समाज में जाति और वर्ण व्यवस्था की स्थिति

जाति और वर्ण व्यवस्था हिंदू संस्कृति के मूलाधार हैं। पुराणों में वर्णों और जातियों की उत्पत्ति विषयक कथाओं का उल्लेख है। इसमें चतुर्वर्ण्य की प्रशंसा, वर्ण व्यवस्था का मूल, वर्ण व्यवस्था का दार्शनिक आधार, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र का सामाजिक का स्तर, वर्णगत सामाजिक स्तर में भेद, वर्णसंकर एवं मिश्रित जातियों की उत्पत्ति एवं उपस्थिति इत्यादि का वर्णन कथात्मक रूप से किया गया है।

आश्रम व्यवस्था का वर्णन

हिंदू धर्म में चार प्रकार के आश्रमों की व्यवस्था की गई है –  ब्रह्मचर्य, गार्हस्थ्य, वानप्रस्थ और संन्यास। पुराणों में चारों आश्रमों के धार्मिक महत्व का वर्णन किया गया है।

सोलह संस्कारों का वर्णन

पुराणों में 16 प्रकार के संस्कारों का विधान किया गया है। कुछेक संस्कारों को छोड़कर अधिकार संस्कारों का विधान आज भी हिंदू धर्म के लोगों के द्वारा किया जाता है। पुराणों में वर्णित 16 संस्कार हैं – गर्भाधान संस्कार, पुंसवन संस्कार, सीमन्तोन्नयन संस्कार, जातकर्म संस्कार, नामकरण संस्कार, निष्क्रमण संस्कार, अन्नप्राशन संस्कार, चूड़ाकरण संस्कार, कर्णवेध संस्कार, विद्यारम्भ संस्कार, उपनयन संस्कार, वेदारम्भ संस्कार, केशान्त संस्कार, समावर्तन संस्कार, विवाह संस्कार और अंत्येष्टि संस्कार। विवाह संस्कार के अंतर्गत विवाह का उद्देश्य, उसका स्वरूप, सवर्ण विवाह, असगोत्र तथा असप्रवर विवाह, विवाह-भेद, बहुविवाह, बहुपतित्व विवाह इत्यादि विषयों का उल्लेख किया गया है।

शिक्षा की महत्ता का वर्णन

शिक्षा मनुष्य जीवन का एक आवश्यक तत्व है। शिक्षा के अभाव में मनुष्य का आध्यात्मिक और भौतिक विकास संभव नहीं है। शिक्षा के महत्व को समझते हुए ही पुराणों में विद्या प्रारंभ करने का समय, शिक्षा केंद्र, शिक्षा विधि, छात्रोचित कर्तव्य, अध्ययन के विषय, स्त्री शिक्षा और आचार्य जैसे विषयों की विशद चर्चा की गई है।

स्त्रियों की स्थिति और अधिकार

स्त्री के बिना मानव जीवन और समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है। स्त्री के महत्व को स्वीकारते हुए ही पुराणों में नारी की प्रतिष्ठा, कन्या की स्थिति, पैतृक संपत्ति और पुत्री का अधिकार, स्त्री शिक्षा का स्वरूप, पत्नी का स्थान, विधवा की स्थिति, सती प्रथा इत्यादि विषयों का सप्रसंग उल्लेख किया गया है।

मनोरंजन व वस्त्र-अलंकार का वर्णन

सामाजिक जीवन के विभिन्न पहलुओं का वर्णन करने के क्रम में पुराणों में मनुष्यों के मनोरंजन के साधन तथा वस्त्र-अलंकार जैसे विषयों की भी चर्चा की गई है। पुराणों में मनोरंजन के साधन के रूप में द्यूत (जुआ) मृगया (शिकार), झूला, मल्लयुद्ध, जल क्रीड़ा, गोष्ठी और संसद, नाटक, उत्सव, संगीत इत्यादि का वर्णन किया गया है। वहीं वस्त्र-अलंकार का वर्णन करते हुए वस्त्र विषयक प्रवृत्ति, वस्त्रोचित साधन तथा प्रकार, वस्त्र संख्या, केश विन्यास, एवं श्रृंगार इत्यादि की चर्चा की गई है।

खानपान संबंधी विषयों का वर्णन

विभिन्न प्रकार के आहार व खानपान का उल्लेख भी पुराणों में किया गया है। विभिन्न प्रकार के अनाजों का विवरण, अनाज निर्मित भोज्य पदार्थ, मिठाइयां, सब्जी, दूध, दही, घी, भोजन संबंधी नियम, मांसाहार, मदिरापान, मदिरापात्र  इत्यादि का उल्लेख पुराणों में किया गया है।

जीवन के आर्थिक पक्षों का कथाओं में समावेश

जीवन की आर्थिक व्यवस्था से जुड़े विषयों का उल्लेख भी पुराणों में किया गया है। कृषि कार्य, अनाजों का भेद विवरण, वाणिज्य, विनिमय के साधन, शिल्प इत्यादि विषयों का उल्लेख पुराणों में किया गया है।

उपसंहार

पुराणों में वर्णित विविध विषयों का जब विवेचन और विश्लेषण किया जाता है तो यह अपने आप स्पष्ट हो जाता है कि पुराण का महत्व क्यों है। जीवन से जुड़ा ऐसा कोई पहलू नहीं है जिसकी चर्चा पुराणों में नहीं की गई है। पुराण न सिर्फ विविध विषयों का उल्लेख करते हैं वरन वेदों के जटिल सूत्रों को सरल भाषा में कथानक के रूप में व्याख्यायित भी करते हैं। इस युग में धर्म की रक्षा और भक्ति के मनोरम विकास का जो दर्शन हो रहा है उसका समस्त श्रेय पुराण साहित्य को ही है।

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