नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा

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नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर हिंदू धर्म का एक प्रसिद्ध मन्दिर है जहां भगवान शिव को समर्पित 12 ज्योतिर्लिंगों में से 10वां ज्योतिर्लिंग स्थित है। भगवान शिव का यह प्रसिद्ध मंदिर गोमती द्वारका और बैत द्वारका के बीच गुजरात में सौराष्ट्र के तट पर स्थित है।  द्वारका पुरी से इसकी दूरी लगभग 15 किलोमीटर है। 

इस ज्योतिर्लिंग के अतिरिक्त नागेश्वर नाम से दो अन्य शिवलिंगों की भी चर्चा ग्रन्थों में प्राप्त होती है। मतान्तर से इन लिंगों को भी कुछ लोग नागेश्वर ज्योतिर्लिंग कहते हैं। ये निम्न स्थान पर हैं –

  1. महाराष्ट्र के हिंगोली जिले में स्थित औंढा नागनाथ नामक जगह पर 
  2. उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा के समीप जागेश्वर नामक जगह पर 

इन सारे मतभेदों के बावजूद तथ्य यह है कि प्रति वर्ष लाखों की संख्या में भक्त गुजरात में द्वारका के समीप स्थित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में दर्शन, पूजन और अभिषेक के लिए आते हैं। 

धार्मिक पुराणों में भगवान शिव को नागों का देवता बताया गया है और नागेश्वर का अर्थ होता है नागों का ईश्वर। इस स्थान को दारुकवनके नाम से भी जाना जाता था। कहा जाता है कि इस ज्योतिर्लिंग का नाम भगवान शिव ने खुद रखा था।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर विष और विष से संबंधित रोगों से मुक्ति के लिए प्रसिद्ध है। धार्मिक आस्था के अनुसार ऐसा माना जाता है कि नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के बाद जो मनुष्य उसकी उत्पत्ति और माहात्म्य सम्बन्धी कथा को सुनता है, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है तथा सम्पूर्ण भौतिक और आध्यात्मिक सुखों को प्राप्त करता है। 

एतद् य: श्रृणुयान्नित्यं नागेशद्भवमादरात्।

सर्वान् कामनियाद् धीमान् महापातकनशनान्।।

ऐसी पौराणिक मान्यता है कि नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में भगवान कृष्ण रुद्राभिषेक के द्वारा भगवान शिव की आराधना करते थे। अगर किसी व्यक्ति को अभिषेक करवाना होता है तो केवल पुरुष को धोती पहन कर ही अभिषेक की अनुमति है । मात्र दर्शन हेतु कोई भी पुरुष व महिला भारतीय पोशाक में गर्भगृह में जा सकता है। यहाँ की एक और विशेषता है कि यहाँ पर अभिषेक सिर्फ गंगाजल से ही होता है तथा अभिषेक करने वाले भक्तों को मंदिर समिति की ओर से गंगाजल निःशुल्क मिलता है।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी पौराणिक कथा

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना से सम्बन्धित पौराणिक कथा के अनुसार एक धर्मात्मा, सदाचारी और शिव जी का अनन्य वैश्य भक्त था, जिसका नाम सुप्रियथा। एक बार जब वह नाव पर सवार होकर समुद्रमार्ग से कहीं जा रहा था तो गलती से उसकी नाव उस क्षेत्र में चली गई जहां दारुका नाम की एक प्रसिद्ध राक्षसी थी, जो पार्वती जी से वरदान प्राप्त कर अहंकार में चूर रहती थी। उसका पति दारुक महान बलशाली राक्षस था। उसने बहुत से राक्षसों को अपने साथ लेकर समाज में आतंक फैलाया हुआ था। पश्चिम समुद्र के किनारे सभी प्रकार की सम्पदाओं से भरपूर सोलह योजन विस्तार पर उसका एक वन था, जिसमें वह निवास करता था।

दारूका जहाँ भी जाती थी, वृक्षों तथा विविध उपकरणों से सुसज्जित वह वनभूमि अपने विलास के लिए साथ-साथ ले जाती थी। महादेवी पार्वती ने उस वन की देखभाल का दायित्त्व दारूका को ही सौंपा था, जो उनके वरदान के प्रभाव से उसके ही पास रहता था। उससे पीड़ित आम जनता ने महर्षि और्व के पास जाकर अपना कष्ट सुनाया।

शरणागतों की रक्षा का धर्म पालन करते हुए महर्षि और्व ने राक्षसों को शाप दे दिया। उन्होंने कहा कि जो राक्षस इस पृथ्वी पर प्राणियों की हिंसा और यज्ञों का विनाश करेगा, उसी समय वह अपने प्राणों से हाथ धो बैठेगा।

महर्षि और्व द्वारा दिये गये शाप की सूचना जब देवताओं को मालूम हुई, तब उन्होंने दुराचारी राक्षसों पर चढ़ाई कर दी। राक्षसों पर भारी संकट आ पड़ा। यदि वे युद्ध में देवताओं को मारते हैं, तो शाप के कारण स्वयं मर जाएँगे और यदि उन्हें नहीं मारते हैं, तो देवता उन्हें मार डालेंगे। उस समय दारूका ने राक्षसों को सहारा दिया और महादेवी पार्वती के वरदान का प्रयोग करते हुए वह सम्पूर्ण वन को लेकर समुद्र में जा बसी। इस प्रकार राक्षसों ने धरती को छोड़ दिया और निर्भयतापूर्वक समुद्र में निवास करते हुए वहाँ भी प्राणियों को सताने लगे।

इसी वन क्षेत्र से गुजरने के क्रम में राक्षस दारुक ने सभी लोगों सहित सुप्रिय का अपहरण कर लिया और अपनी पुरी में ले जाकर उसे बन्दी बना लिया। चूँकि सुप्रिय शिव जी के अनन्य भक्त थे, इसलिए वह हमेशा शिव जी की आराधना में तन्मयता से लगे रहते थे। कारागार में भी उनकी आराधना बन्द नहीं हुई और उन्होंने अपने अन्य साथियों को भी शिवजी की आराधना के प्रति जागरूक कर दिया। वे सभी शिवभक्त बन गये। कारागार में शिवभक्ति का वातावरण उपस्थित हो गया।

दारुक ने जब अपने सेवकों से सुप्रिय के विषय में यह समाचार सुना तब वह अत्यन्त क्रुद्ध होकर उस कारागर में पहुँचा। सुप्रिय उस समय भगवान् शिव के चरणों में ध्यान लगाए हुए दोनों आँखें बंद किए बैठा था। उस राक्षस ने उसकी यह मुद्रा देखकर अत्यन्त भीषण स्वर में उसे डाँटते हुए कहा – अरे दुष्ट वैश्य! तू आँखें बंद कर इस समय यहाँ कौन सा उपद्रव और षड्यन्त्र करने की बातें सोच रहा है? उसके यह कहने पर भी धर्मात्मा शिवभक्त सुप्रिय की समाधि भंग नहीं हुई।

राक्षस दारुक ने अपने अनुचरों को आदेश दिया कि सुप्रिय को मार डालो। अपनी हत्या के भय से भी सुप्रिय डरा नहीं और वह भयहारी, संकटमोचक भगवान शिव को पुकारने में ही लगा रहा। उस समय अपने भक्त की पुकार पर भगवान शिव ने उसे कारागार में ही दर्शन दिये। कारागार में एक ऊँचे स्थान पर चमकीले सिंहासन पर स्थित भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में उसे दिखाई दिये। उनके साथ ही चार दरवाजों का एक सुन्दर मन्दिर प्रकट हुआ। उस मन्दिर के मध्यभाग (गर्भगृह) में एक दिव्य ज्योतिर्लिंग प्रकाशित हो रहा था तथा शिव परिवार के सभी सदस्य भी उसके साथ विद्यमान थे। सुप्रिय ने शिव परिवार सहित उस ज्योतिर्लिंग का दर्शन और पूजन किया।

इति सं प्रार्थित: शम्भुर्विवरान्निर्गतस्तदा।

भवनेनोत्तमेनाथ चतुर्द्वारयुतेन च॥

मध्ये ज्योति:स्वरूपं च शिवरूपं तदद्भुतम्।

परिवारसमायुक्तं दृष्टवा चापूजयत्स वै॥

भगवान शिव ने उस समय सुप्रिय को अपना एक पाशुपतास्त्र (अस्त्र) दिया और अन्तर्धान हो गये। पाशुपतास्त्र प्राप्त करने के बाद सुप्रिय ने उसके बल से सभी राक्षसों का संहार कर डाला और अन्त में वह स्वयं शिवलोक को प्राप्त हुआ। भगवान शिव के निर्देशानुसार ही उस शिवलिंग का नाम नागेश्वर ज्योतिर्लिंग पड़ा।

लीला करने के लिए स्वयं शरीर धारण करने वाले भगवान शिव ने अपने भक्त सुप्रिय आदि की रक्षा करने के बाद उस वन को भी यह वरदान दिया कि आज से इस वन में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र, इन चारों वर्णों के धर्मों का पालन किया जाएगा। इस वन में शिव धर्म के प्रचारक श्रेष्ठ ऋषि-मुनि निवास करेंगे और यहाँ राक्षसों के लिए कोई स्थान न होगा।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी अन्य कथा

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी अन्य कथा का वर्णन वामन पुराण में किया गया है। इस कथा के अनुसार एक बार माता पार्वती भगवान शिव के साथ आकाश मार्ग से जा रहे थे। रास्ते में माता पार्वती ने बालखिल्य संतों को कठिन तपस्या करते हुए देखा। उन्हें देखकर माता पार्वती ने भगवान शिव-शंकर से कहा – ये मुनिगण देवदार के वन में अपना आश्रय बनाकर रहते हैं और अत्यधिक कष्ट सहते हुए आपकी आराधना करते हैं। आप उनके ऊपर दया करें और उनके कष्टों का निवारण करें।

तब भगवान शंकर ने कहा – ये लोग धर्म को नहीं जानते हैं और ना ही ये लोग काम से रहित हैं। ये लोग क्रोध से भी मुक्त नहीं हैं। ये केवल मूढ़ बुद्धि वाले लोग हैं। बालखिल्य संतों के असली स्वरूप को दिखाने के लिए भगवान शंकर ने माता पार्वती से कहा – मैं अभी उनके पास जाता हूं ताकि आप उनके असली स्वरूप को पहचान सकें। 

भगवान शंकर वनमाला धारण कर और हाथों में भिक्षा ग्रहण करने वाला कपाल लेकर उस स्थान पर पहुंचे जहां मुनिगण वेदों का उच्चारण कर रहे थे तथा अग्नि सदन की क्रिया कर चुके थे। भिक्षा मांगते हुए वे आश्रम में चले गए। ब्रह्मवादियों की स्त्रियां आश्रम में भिक्षुक को देखकर उसके स्वरूप पर मोहित हो गईं। वे आपस में कहने लगीं – आओ, आओ इस भिक्षुक का दर्शन करें। आपस में ऐसा कह कर वे बहुत से फल और मूल लेकर उनके समीप पहुंच गईं। भगवान शंकर ने अपने भिक्षा के कपाल को फैला कर बहुत ही आदर के साथ कहा – भिक्षा दो, आपका कल्याण हो, आपसे ही तपोधन है।

भिक्षा देकर काम से पीड़ित उन मुनि नारियों ने भगवान से पूछा – यह कौन सी व्रत विधि है जिसके कारण आपको वनमाला विभूषित सुंदर स्वरूपधारी नग्नलिंग विशिष्ट तापस बनना पड़ा है। यदि आप चाहें तो हम आपकी प्रिया हो सकती हैं।

तब तपस्वी रूप धारण किए हुए भगवान शिव ने कहा – जहां बहुत सुनने वाले हो वहां इस व्रत की व्याख्या नहीं की जा सकती। यह जानकर आप सभी चली जाएं।

इस पर मुनि नारियों ने कहा – आइए हम सब गमन करेंगे, हमको इसका बड़ा कौतुक है। हम एकांत में चलेंगे। ऐसा कहकर उन स्त्रियों ने तपस्वी रूप धारण किए भगवान शंकर को पकड़ लिया। उनमें से कुछ काम से युक्त होकर उनके कंठ से लिपट गईं, कुछ स्त्रियां उनके केस का स्पर्श करने लगीं, कुछ पैरों से लिपट गईं, कुछ कमर से। 

उस समय आश्रम में अपनी नारियों के इस प्रकार के व्यवहार को देखकर मुनिगण क्रोधित हो गये। उन्होंने काष्ठ और पाषाण लेकर शिव के लिंग को उखाड़ कर फेंक दिया। लिंग गिरा दिए जाने पर भगवान शंकर अंतर्धान हो गए और देवी पार्वती के साथ कैलाश पर्वत पर चले गए। शिवलिंग के धरती पर गिरने से सारा चराचर जगत कांप उठा।

इससे परेशान होकर सभी ऋषि-मुनि भगवान ब्रह्मा के पास गए। ब्रह्मा जी ने कहा कि – आप उन महात्मा तापस के अस्तित्व को नहीं जानते। वास्तविकता को जानकर सभी मुनि लज्जित हुए। उन्होंने मुनियों से कहा – आप लोग धर्म की कोई क्रिया नहीं जानते हैं। आप लोग आश्रम में रहते हुए भी क्रोध तथा काम से अभिभूत हैं। क्रोधी व्यक्ति के द्वारा किया जाने वाला दान, तप, हवन सब व्यर्थ है। 

उन लोगों की पश्चाताप भरी मनःस्थिति को जानकर ब्रह्मा जी भगवान शिव के पास आए और उनसे पृथ्वी को विनाश से बचाने और अपने लिंग को वापस लेने का अनुरोध किया। शिव ने उन्हें सांत्वना दी और अपना लिंग वापस ले लिया। भगवान शिव ने हमेशा के लिए ‘ज्योतिर्लिंग’ के रूप में दारुकवन में अपनी दिव्य उपस्थिति का आश्वासन दिया।

बालखिल्य मुनिगण

महर्षि दक्ष और उनकी पत्नी क्रिया से सन्नति नाम की एक पुत्री हुई। सन्नति का विवाह क्रतु ऋषि से हुआ था। सन्नति और क्रतु से 60,000 पुत्र हुए थे। सभी को बालखिल्य मुनि के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि बालखिल्य का आकार अंगूठे के बराबर था।

 एक बार जब महर्षि कश्यप पुत्र कामना से यज्ञ कर रहे थे तब बालखिल्यों ने इसमें भाग लिया था।देवताओं ने भी इस यज्ञ में सहायक के रूप में हिस्सा लिया था। महर्षि कश्यप ने इन्द्र तथा बालखिल्य मुनियों को समिधा लाने का कार्य सौंपा था। इंद्र ने अपनी क्षमता के अनुरूप समिधाओं का ढेर लगा दिया। बालखिल्य मुनिगण अपने छोटे आकार के कारण सब मिलकर पलाश की एक टहनी ला रहे थे। इसी समय देवराज इन्द्र ने बालखिल्य मुनियों का उपहास किया। 

इससे नाराज होकर बालखिल्य मुनिगण एक दूसरे इन्द्र की उत्पत्ति की कामना से यज्ञ करने लगे। इससे परेशान होकर इंद्र महर्षि कश्यप के पास गए। कश्यप ऋषि इंद्र को घमंड न करने की सलाह देते हुए उन्हें लेकर बालखिल्य मुनियों के पास पहुंचे। उन्होंने बालखिल्य मुनियों से अनुरोध किया कि वे इंद्र को माफ कर दें। उनकी बात सुनकर बालखिल्य मुनियों ने इंद्र को माफ कर दिया। लेकिन बालखिल्य मुनियों की तपस्या भी व्यर्थ नहीं जा सकती थी, अत: उन्होंने कहा – हे कश्यप! तुम पुत्र के लिए तप कर रहे हो। तुम्हारा पुत्र ही वह पराक्रमी, शक्तिशाली प्राणी होगा, वह पक्षियों का इन्द्र होगा। इस वरदान के फलस्वरूप पक्षीराज गरुड़ का जन्म कश्यप के घर में हुआ।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर की संरचना

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिरनागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर चालुक्य शैली में निर्मित है। इस मंदिर के अन्दर एक भूमिगत गर्भगृह है जो सभामंड़प से निचले स्तर पर स्थित है। इस गर्भगृह में ही भगवान शिव ज्योतिर्लिंग रूप में स्थापित हैं। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गोल काले पत्थर वाले द्वारका शिला से त्रि-मुखी रूद्राक्ष रूप में स्थापित है। मंदिर में ज्योतिर्लिंग के ऊपर एक चांदी का आवरण चढ़ा है। ज्योतिर्लिंग पर ही एक चांदी के नाग की आकृति बनी हुई है। ज्योतिर्लिंग के पीछे माता पार्वती की मूर्ति स्थापित है। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के परिसर में भगवान शिव की ध्यान मुद्रा में एक बड़ी ही मनमोहक अति विशाल प्रतिमा है। यह मूर्ति 125 फीट ऊँची तथा 25 फीट चौड़ी है।

मंदिर का पुनर्निर्माण

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के पुनर्निर्माण का कार्य 1996 में टीसीरीज के मालिक स्वर्गीय गुलशन कुमार ने शुरू करवाया था। मंदिर के कार्य के बीच में ही गुलशन कुमार की मृत्यु हो जाने के कारण उनके परिवार ने इस मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण करवाया था।

निकटवर्ती दर्शनीय स्थल 

द्वारकाधीश मंदिर, बेट द्वारका, द्वारका बीच, रुक्मिणी देवी मंदिर, लाइट हाउस, गोमती संगम घाट, गोपी तालाब, गीता मंदिर, सुदामा सेतु, इस्कॉन मंदिर,समुद्र नारायण मंदिर, श्री शारदापीठ, दांडी हनुमान मन्दिर

नागेश्वर मंदिर में दर्शन का समय

नागेश्वर मंदिर के पट हर सुबह 5 बजे से रात 9 बजे तक खुले रहते हैं। भक्त सुबह 6 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक और शाम को 4 से रात 9 बजे तक नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर सकते हैं। शाम 4 बजे श्रृंगार दर्शन एवं 7 बजे शयन आरती होती है।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर कैसे पहुंचें

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर जिस जगह पर बना है वहां कोई गाँव या बसाहट नहीं है, यह मंदिर सुनसान तथा वीरान जगह पर बना है। निकटस्थ शहर द्वारका ही है जो यहाँ से 15 किलोमीटर दूर है।

रेलमार्ग द्वारा यात्रा – नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर से 15 किलोमीटर की दूरी पर द्वारका रेलवे स्टेशन है।  द्वारका नागेश्वर से सबसे नजदीक स्थित रेलवे स्टेशन है। द्वारका रेलवे स्टेशन के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से ट्रेनें उपलब्ध हैं। द्वारका रेलवे स्टेशन से नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर जाने के लिए बस और टैक्सी की सुविधा उपलब्ध है।

सड़क मार्ग द्वारा यात्रा – नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर दर्शन के लिए गुजरात के विभिन्न शहरों से बस व टैक्सी की सुविधा उपलब्ध है। गुजरात से बाहर के दर्शनार्थी राजकोट पहुंचकर ट्रेन बस या टैक्सी के माध्यम से नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर जा सकते हैं। राजकोट से नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर की दूरी 225 किलोमीटर है।

हवाई जहाज द्वारा यात्रा – नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर से सबसे नजदीक हवाई अड्डा जामनगर में स्थित है। जामनगर से नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की दूरी लगभग 125 किलोमीटर है। जामनगर से बस या टैक्सी के माध्यम से नागेश्वर पहुंचा जा सकता है। इसके अतिरिक्त पोरबंदर एयरपोर्ट पर उतर कर भी नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर दर्शन के लिए जाया जा सकता है लेकिन पोरबंदर एयरपोर्ट देश के कुछ प्रमुख हवाई अड्डों से ही जुड़ा हुआ है। पोरबंदर से नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर की दूरी लगभग 107 किलोमीटर है।

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