सूर्य पर आधारित अनेक पर्वों व त्योहारों की कल्पना की गई है जिनमें एक मकर संक्रांति भी है। हिंदू धर्म में मकर संक्रांति का विशेष महत्व है। संक्रांति का अर्थ है सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना। यही क्रिया जब मकर राशि में होती है तो इसे मकर संक्रांति कहते हैं। मकर संक्रांति से मकर राशिस्थ सूर्य उत्तर की ओर यात्रा प्रारंभ करता है जिसे सूर्य का उत्तरायण कहते हैं। इस यात्रा की अवधि 6 माह होती है। 14 जनवरी के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में होने के लिए संक्रमणशील होता है।
मकर संक्रांति यानी सूर्य जिस दिन मकर राशि में प्रवेश हो यह सूचित करता है कि प्रकाश की अंधेरे पर और धूप की शीत पर विजय पाने की यात्रा आरंभ हुई है। इससे पहले कर्क से लेकर धनु तक की यात्रा सूर्य की दक्षिणायन यात्रा है। सूर्य की दक्षिणायन यात्रा कर्क संक्रांति से शुरू होती है। यह काल अग्नि की न्यूनता के कारण अंधकारमय व अज्ञानमय माना जाता है।
विदित हो कि पृथ्वी एक वर्ष में सूर्य की परिक्रमा करती है। जिस मार्ग से पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है उसे ज्योतिष शास्त्र में क्रांति वृत्त कहा गया है। इस क्रांति वृत्त को 12 भागों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक भाग को राशि कहा जाता है। इस प्रकार 12 राशियों का उल्लेख किया गया है। ये 12 राशियां क्रमानुसार निम्न हैं – मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन।
हिंदू धर्म की परंपरा के अनुसार सूर्य की सभी संक्रांति का धार्मिक महत्व है और सभी को पवित्र माना जाता है परंतु मेष और मकर संक्रांति का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। मेष संक्रांति चैत या वैशाख महीने में पड़ती है जबकि मकर संक्रांति पौष या माघ महीने में।
मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व
मकर संक्रांति मूलतः सूर्य की आराधना का पर्व है। जीवन की विभिन्न स्थितियों में सूर्य की भूमिका को सम्मान देने के लिए मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है।
महाभारत एवं भागवत पुराण में कहा गया है कि भीष्म पितामह ने अपने शरीर का त्याग सूर्य के उत्तरायण होने पर ही किया था। श्रीमद्भागवत गीता में कहा गया है कि जो व्यक्ति सूर्य के उत्तरायण होने पर अपने शरीर का त्याग करता है वह जीवन मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है।
मकर संक्रांति के दिन ही राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए गंगा नदी के तट पर तर्पण किया था। तर्पण के पश्चात इसी दिन गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलते हुए कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। इस कारण इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। इस दिन गंगासागर में मेले का आयोजन किया जाता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार मकर संक्रांति के दिन भगवान विष्णु ने असुरों को पराजित किया था और उनके सिर को मंदार पर्वत में दबा दिया था।
सूर्य के उत्तरायण काल को देवताओं का दिन और दक्षिणायन काल को देवताओं का रात कहा गया है। इस प्रकार मकर संक्रांति को देवताओं के दिन का प्रातः काल माना जाता है।
ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन स्नान, दान, तप, अनुष्ठान इत्यादि से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
विभिन्न राज्यों में मकर संक्रांति त्योहार
मकर संक्रांति का त्यौहार देश के लगभग सभी राज्यों में मनाया जाता है। विभिन्न राज्यों में इसे भिन्न-भिन्न नामों से मनाया जाता है।
- उत्तर प्रदेश, पश्चिमी – बिहार खिचड़ी
- बिहार – तिल सकरात
- पश्चिम बंगाल – पौष संक्रांति
- असम – बिहू या भोगली बिहू
- तमिलनाडु – पोंगल
- कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश – संक्रांति
- गुजरात – उत्तरायण
- उत्तराखंड – उत्तरायण
- पंजाब, हरियाणा, हिमाचल – माघी
- कश्मीर घाटी – शिशुर संक्रांत
मकर संक्रांति का सामाजिक महत्व
मकर संक्रांति का त्यौहार ऋतु परिवर्तन और कृषि से जुड़ा हुआ है। इस समय से सूर्य की अवस्थिति में परिवर्तन हो जाता है और सूर्य उत्तर की ओर गतिमान हो जाता है। जिसके कारण इस दिन से ठंढ कम होने लगती है और मौसम में गर्माहट बढ़ने लगती है।
सूर्य की स्थिति के अनुरूप ही ऋतुओं में परिवर्तन होता है। ऋतुओं में परिवर्तन के कारण ही विभिन्न प्रकार की फसलों का उत्पादन संभव हो पाता है। इस समय धान, बाजरा, ज्वार, मक्का, उड़द, मूंग, तिल इत्यादि फसल कटकर किसानों के पास आ जाता है जो स्वाभाविक ही किसानों की प्रसन्नता का कारण होता है। इन विविध प्रकार की फसलों के उत्पादन में सूर्य की भूमिका के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए मकर संक्रांति का त्यौहार मनाया जाता है।
मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व
मकर संक्रांति त्योहार की विभिन्न परंपराओं का अनुपालन वैज्ञानिक और व्यवहारिक दृष्टि से भी बहुत उपयोगी है। यह त्यौहार मौसम परिवर्तन का सूचक है। मकर संक्रांति के दिन तिल और गुड़ के सेवन का प्रचलन है। तिल के सेवन से शरीर को गर्माहट मिलती है जिससे ठंड में राहत मिलती है। तिल का सेवन शरीर में कोलेस्ट्रोल की मात्रा को नियंत्रित करने में भी बहुत उपयोगी होता है। गुड में कई प्रकार के औषधीय गुण होते हैं। गुड़ के सेवन से शरीर की रोग निरोधक क्षमता में भी वृद्धि होती है।
मकर संक्रांति कैसे मनाते हैं?
मकर संक्रांति के दिन प्रातः काल स्नान करने के पश्चात भगवान का स्मरण किया जाता है। इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। इस दिन प्रयाग के संगम पर स्नान कर लाखों श्रद्धालु पुण्य अर्जित करते हैं। माघ स्नान की शुरुआत मकर संक्रांति के दिन से ही होती है। जब कुंभ और अर्ध कुंभ का समय होता है उस समय यहां स्नान का महत्व और बढ़ जाता है।
इस दिन लोग श्रद्धा अनुसार दान-पुण्य का कार्य करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन किया गया दान सौगुना फलदाई होता है।
शास्त्रों में भी कहा गया है इस दिन शुद्ध घी एवं कंबल का दान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है –
माघे मासे महादेवः यो दास्यति घृतकंबलम।
स भुक्तवा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति।।
मकर संक्रांति के दिन भारत के अधिकांश भागों में काले व सफेद तिल और गुड़ का सेवन किया जाता है। मकर संक्रांति के समय अत्यधिक ठंड पड़ती है। ऐसे समय में तिल और गुड़ का सेवन शरीर को गर्माहट प्रदान करता है। इस दिन खिचड़ी खाने और दान करने की भी परंपरा है। बिहार जैसे राज्य में इस दिन चूड़ा, दही और तिलकुट खाया जाता है।
गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों में हाल के वर्षों में मकर संक्रांति के दिन पतंग उत्सव मनाने की परंपरा प्रचलित हुई है।
मकर संक्रांति कब है?
सामान्यतः मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाया जाता है परंतु पिछले कुछ वर्षों से मकर संक्रांति का त्यौहार 15 जनवरी को मनाया जाने लगा है। वस्तुतः मकर संक्रांति का त्यौहार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के पश्चात मनाया जाता है। पिछले कुछ समय से राशि की स्थिति में परिवर्तन की वजह से मकर संक्रांति का त्यौहार 14 जनवरी के स्थान पर 15 जनवरी को मनाया जाने लगा है।
2023 में मकर संक्रांति का समय 14 जनवरी की अर्धरात्रि के पश्चात प्रारंभ होता है। 15 जनवरी के दोपहर तक पुण्यकाल है। पुण्यकाल में ही स्नान के पश्चात दान एवं तिल का सेवन करना चाहिए। इसके साथ ही खरमास का समय समाप्त हो जाता है और माघ मास शुरू हो जाता है।
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