हिंदू धर्म में व्रत-त्यौहारों की एक सुदीर्घ परंपरा रही है। हिंदू धर्म के व्रत-त्यौहार जीवन की गतिशीलता और हिंदू धर्म की सभ्यता व संस्कृति के प्रतीक हैं। ये व्रत त्यौहार स्वयं के कल्याण से लेकर सामाजिक समन्वय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हिंदू धर्म को मानने वाले वर्ष भर किसी न किसी व्रत-त्यौहार को मनाते रहते हैं। इस आलेख में हिंदू धर्म के व्रत-त्यौहारों की सूची और उसका परिचय दिया गया है।
चैत्र मास के व्रत-त्यौहारों की सूची / (मार्च-अप्रैल)
नव संवत्सर : नव संवत्सर चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। हिंदू धर्म पंचांग के अनुसार इसी दिन से नए वर्ष का प्रारंभ माना जाता है। इस दिन व्यक्ति नित्य कार्य से निवृत्त होकर नए वस्त्र धारण करता है। एक पवित्र चौकी पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर हल्दी से रंगे हुए चावलों का अष्टदल कमल बनाता है तथा ब्रह्म का आह्वान करता है।
गुड़ी पड़वा : चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा का त्यौहार मनाया जाता है। इसे वर्ष प्रतिपदा या उगादि भी कहा जाता है। इस दिन से हिंदू नववर्ष प्रारंभ होता है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी। गुड़ी पड़वा मुख्य रूप से कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, ,महाराष्ट्र व गोवा में मनाया जाता है।
नवरात्रि व्रत : चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक नौ देवियों की स्मृति में यह त्यौहार मनाया जाता है। इस अवसर पर स्त्री और पुरुष नौ दिनों तक उपवास करते हैं। देवी मूर्ति की स्थापना की जाती है तथा अंतिम दिन हवन आदि करके देवी की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है।
घटस्थापना या कलश स्थापन : घटस्थापना नवरात्र (चैत्र व शारदीय) के पहले दिन होता है। चैत्र व शारदीय मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को प्रथम तिथि के अवसर पर घटस्थापना या कलश स्थापन किया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार कलश को गणेश जी की संज्ञा दी जाती है। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है।
यमुना छठ : चैत्र नवरात्र के छठे दिन को यमुना छठ के रूप में मनाया जाता है। यमुना छठ को यमुना जयंती के रूप में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन यमुना जी का पृथ्वी पर आगमन हुआ था।
तिसुआ सोमवार : चैत्र मास के चारों सोमवार भगवान जगन्नाथ को समर्पित हैं। जो लोग भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने के लिए आते हैं वह वहां से बेंत लेकर लौटते हैं तथा उन बेतों की पूजा घर पर की जाती है।
शीतलाष्टमी : शीतलाष्टमी का वर्णन स्कंद पुराण में मिलता है। यह व्रत चैत मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को होता है। इस व्रत में शीतला देवी का पूजन किया जाता है। शीतलाष्टमी का व्रत अच्छे स्वास्थ्य की कामना से किया जाता है। एक दिन पूर्व बने हुए खाद्य पदार्थों का प्रसाद लगाया जाता है तथा रात्रि जागरण किया जाता है। कुछ स्थानों पर इसे बसोड़ा या बासोड़ा भी कहते हैं।
संकष्टी चतुर्थी : संकष्टी चतुर्थी का वर्णन भविष्य पुराण में मिलता है। जिस व्यक्ति को बुरा होने की आशंका हो या जो मुसीबतों से घिरा हो उसे प्रत्येक माह कृष्ण चतुर्थी के दिन इस व्रत को करना चाहिए। संकष्ट चतुर्थी के दिन धूप, दीप, पुष्प, अक्षत, रोली इत्यादि से गणेश जी की प्रतिमा की पूजा की जाती है। इस व्रत के दिन व्यक्ति मौन रखता है।
संतान अष्टमी : संतान अष्टमी व्रत का वर्णन विष्णु धर्मोत्तर पुराण में मिलता है। यह व्रत चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। यह व्रत संतान की खुशहाली के लिए किया जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण और देवकी की पूजा की जाती है।
पापमोचिनी एकादशी : पापमोचनी एकादशी का व्रत चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है। इस व्रत को करने से समस्त पापों का नाश हो जाता है। पापमोचनी एकादशी व्रत सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना गया है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। संतान प्राप्तिऔर उत्तम स्वास्थ्य के उद्देश्य से यह व्रत किया जाता है।
अरुंधती व्रत : अरुंधती व्रत चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा को प्रारंभ होता है तथा चैत्र शुक्ल की तृतीया को समाप्त होता है। यह व्रत महर्षि कर्दम की पुत्री तथा महर्षि वशिष्ठ की पत्नी अरुंधती के नाम से किया जाता है। यह व्रत स्त्रियों के चरित्र के उत्थान के लिए है। इसमें तृतीया के दिन गौरीशंकर और गणेश की पूजा की जाती है।
गणगौर व्रत : गणगौर व्रत चैत्र शुक्ल की तृतीया को किया जाता है। यह व्रत सुयोग्य पति के लिए किया जाता है। इस व्रत में गौरी की बालू की मूर्ति स्थापित की जाती है। इसमें सुहाग की वस्तुएं यथा कांच की चूड़ियां, सिंदूर, महावर, मेहंदी, टीका, बिंदी, कंघी, शीशा, काजल इत्यादि चढ़ाया जाता है और चंदन, धूप, दीप इत्यादि से पूजन किया जाता है। इसमें विवाहित स्त्रियां अपनी मांग भरती हैं। इस व्रत का प्रसाद पुरुषों के लिए वर्जित है।
श्रीव्रत : श्रीव्रत का वर्णन विष्णु धर्मोत्तर पुराण में मिलता है। यह व्रत चैत्र शुक्ल की पंचमी को होता है। इसमें कमल के फूल के द्वारा लक्ष्मी जी का पूजन किया जाता है। यह व्रत लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए होता है।
मत्स्य जयंती : मत्स्य जयंती का व्रत चैत्र शुक्ल की पंचमी को किया जाता है। भगवान विष्णु ने प्रथम अवतार के रूप में मत्स्य अवतार ही धारण किया था, उसी के उपलक्ष्य में यह जयंती मनाई जाती है। इस दिन मछलियों को आटे की गोलियां दी जाती हैं और मत्स्य पुराण का पाठ भी किया जाता है।
गौरी जयंती : भविष्य पुराण में ऐसा वर्णन है कि माता पार्वती का जन्म चैत्र शुक्ल की अष्टमी को हुआ था । इस दिन गौरी की गोबर की प्रतिमा बनाई जाती है और उसका पूजन किया जाता है। इस प्रतिमा का विसर्जन नवरात्र में स्थापित देवी के साथ किया जाता है। स्त्रियां यह व्रत पतिव्रत धर्म का पालन करने के लिए करती हैं।
रामनवमी : विष्णु धर्मोत्तर पुराण के अनुसार भगवान श्रीराम का जन्म रामनवमी के दिन हुआ था। पुर्नवस नक्षत्र में कर्क लग्न में माता कौशल्या ने भगवान श्रीराम को जन्म दिया था। इस दिन भगवान श्री राम की उपासना की जाती है और लोग उपवास रखते हैं।
कामदा एकादशी : चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में कामदा एकादशी व्रत किया जाता है, जागरण किया जाता है और दूसरे दिन व्रत का पारण होता है। यह व्रत पापों से छुटकारा पाने के लिए किया जाता है।
पूजन पूनो : पूजन पूनो व्रत चैत्र शुक्ल की पूर्णमासी को किया जाता है। यह व्रत उन लोगों के यहां होता है जिनके यहां लड़की का जन्म ना हुआ हो। इसमें खड़िया या चूने से रंगी सात मटकियों का पूजन किया जाता है।
हनुमान जयंती : हनुमान जयंती के संबंध में दो भिन्न मान्यताएं हैं। कुछ लोग इसे कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को तथा कुछ लोग इसे चैत्र शुक्ल पूर्णमासी को मानते हैं। हनुमान जयंती के दिन हनुमान जी की मूर्ति का पूजन षोडशोपचार विधि के द्वारा किया जाता है।
वैशाख मास के व्रत-त्यौहारों की सूची / (अप्रैल-मई)
बरूथिनी एकादशी : वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को बरूथिनी एकादशी कहा जाता है। इस व्रत को करने से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत को करने वाले को कांसे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए और ना ही मसूर की दाल खानी चाहिए।
आसामाई व्रत : आसामाई व्रत वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया को किया जाता है। यह व्रत संतान की मंगल कामना के लिए किया जाता है। इस व्रत में महिलाएं इस दिन फलाहार करती हैं और नमक का सेवन नहीं करती हैं।
अक्षय तृतीया : ऐसा माना जाता है कि इसी दिन से सतयुग का प्रारंभ हुआ था। इस दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का जन्म हुआ था। इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। अक्षय तृतीया का व्रत जप, तप, ज्ञान तथा दान के लिए फलदायक है।
गौरी पूजा : अक्षय तृतीया के दिन ही गौरी पूजा की जाती है। इस दिन मिट्टी के कलश में जल, पुष्प इत्यादि भरकर माता पार्वती की पूजा की जाती है।
नरसिंह जयंती : यह त्यौहार वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार धारण कर भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी तथा हिरण्यकशिपु का वध किया था। इस दिन भगवान के नरसिंह रूप की पूजा की जाती है।
गंगा सप्तमी : वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन गंगा स्वर्ग लोक से उतरकर शिव जी की जटाओं में समाई थी। गंगा की उत्पत्ति को गंगा जयंती के रूप में मनाया जाता है और जब गंगा पृथ्वी पर आई थी उस दिन को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि गंगा सप्तमी के दिन गंगा में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं।
शर्करा सप्तमी : शर्करा सप्तमी का व्रत वैशाख शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मनाया जाता है। यह व्रत आयु में वृद्धि एवं उत्तम स्वास्थ्य के लिए रखा जाता है।
कमल सप्तमी : कमल सप्तमी का व्रत वैशाख शुक्ल की सप्तमी को बनाया जाता है इस व्रत में स्वर्ण कमल और सूर्य की मूर्तियों की पूजा की जाती है।
जानकी नवमी : वैष्णव मत के अनुसार माता सीता का जन्म वैशाख शुक्ल की नवमी को हुआ था। इस दिन को जानकी नवमी या सीता नवमी के रूप में मनाया जाता है। वैष्णव मत को मानने वाले इस दिन सीता जी का जन्मोत्सव मनाते हैं और उनकी पूजा करते हैं।
मोहिनी एकादशी : मोहिनी एकादशी व्रत वैशाख शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान राम तथा कृष्ण ने इस व्रत को किया था। यह व्रत मोक्ष की प्राप्ति एवं कुसंगति से बचने के लिए किया जाता है।
मधुसूदन पूजा : वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मधुसूदन पूजा किया जाता है। अभीष्ट फल की प्राप्ति के लिए मधुसूदन पूजा का आयोजन किया जाता है।
वैशाखी पूर्णिमा व्रत : इस व्रत के तहत धर्मराज की पूजा की जाती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन कलश पकवान और गउ का दान किया जाता है।
बुद्ध पूर्णिमा : हिंदू पंचांगों में प्रत्येक माह की किसी एक तिथि को पूर्णिमा पड़ता है जिसका अपना महत्व है। लेकिन वैशाख माह में पड़ने वाली पूर्णिमा का विशिष्ट महत्व है। गौतम बुद्ध का जन्म नेपाल के लुंबिनी नामक स्थान पर वैशाख पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसी कारण वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा या बुद्ध जयंती भी कहा जाता है।
जयेष्ठ मास के व्रत-त्यौहारों की सूची / (मई-जून)
अपरा एकादशी : जयेष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी का व्रत बनाया जाता है। इसे अचला एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।
शनि जयंती : जयेष्ठ मास की अमावस्या को शनि जयंती मनाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि जयेष्ठ मास की अमावस्या को ही सूर्य देव एवं उनकी पत्नी छाया (संवर्णा) की संतान के रूप में शनि देव का जन्म हुआ था।
करवीर व्रत : यह व्रत जयेष्ठ शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है। इस दिन कनेर के वृक्ष की पूजा होती है।
पार्वती जन्म : माता पार्वती का जन्म जयेष्ठ शुक्ल तृतीया के दिन हुआ था इसलिए इस दिन को पार्वती जी के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन पार्वती जी की पूजा की जाती है। यह व्रत सिर्फ स्त्रियों के लिए है।
शिव पूजा : शिव पूजा का व्रत जयेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है।
उमा ब्रह्माणी : यह व्रत जयेष्ठ शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। इस दिन पार्वती जी की पूजा होती है। व्रत की रात्रि में ब्राह्मण एवं उसकी कन्या को दूध-भात खिलाने का विधान है।
गंगा दशहरा : जयेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि गंगा जी का पृथ्वी पर आगमन किसी दिन हुआ था। इस दिन अन्न, वस्त्र आदि का दान किया जाता है और उपवास रखा जाता है।
निर्जला एकादशी : निर्जला एकादशी का व्रत जयेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को होता है। इसे सभी एकादशी में श्रेष्ठ माना जाता है। इस दिन जल ग्रहण किए बिना उपवास रखा जाता है।
गायत्री जयंती : जयेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को गायत्री जयंती मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन मां गायत्री प्रकट हुई थीं। कुछ स्थानों पर श्रावण मास की पूर्णिमा को भी गायत्री जयंती मनाया जाता है।
वट सावित्री पूजा : वट सावित्री की पूजा त्रयोदशी से पूर्णिमा तक और पूर्णिमा से अमावस्या तक की जाती है। इस दिन सत्यवान और सावित्री की पूजा की जाती है। बरगद के पेड़ को पानी से खींचा जाता है यह व्रत अखंड सौभाग्यवती होने के लिए किया जाता है।
आषाढ़ मास के व्रत-त्यौहारों की सूची / (जून-जुलाई)
जगन्नाथ रथ यात्रा : जगन्नाथ रथ यात्रा का त्यौहार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाता है। इस दिन जगन्नाथ जी की रथ यात्रा सुभद्रा जी के साथ निकाली जाती है। इस दिन लोग जगन्नाथ जी को प्रसाद चढ़ाते हैं और उनकी पूजा करते हैं।
स्कंद षष्ठी व्रत : यह व्रत प्रसाद शुक्ला की पंचमी को मनाया जाता है। इस व्रत का वर्णन वाराह पुराण में मिलता है। इस दिन कार्तिकेय जी की पूजा की जाती है।
योगिनी एकादशी : आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से समस्त पाप दूर हो जाते हैं।
देवशयनी एकादशी : देवशयनी एकादशी का व्रत आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इसे पद्मनाभा एकादशी, देवपोधि एकादशी, हरिशयन एकादशी या महाएकादशी भी कहा जाता है। इसी दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। यह व्रत वंश वृद्धि एवं पारिवारिक सुख के लिए किया जाता है।
वामन पूजा : आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है।
हरि पूजा : हरि पूजा आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इसके अंतर्गत भगवान विष्णु की पूजा धूप, दीप, नैवेद्य इत्यादि से की जाती है।
कोकिला व्रत : कोकिला व्रत आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को प्रारंभ होता है और सावन की पूर्णिमा को समाप्त होता है।
योगिनी एकादशी : योगिनी एकादशी व्रत आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष के दिन किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की मूर्ति की पूजा की जाती है और ब्राह्मणों को दान दिया जाता है।
गुरु पूर्णिमा : आषाढ़ मास की पूर्णमासी को गुरु पूर्णिमा का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। इस दिन को वट पूर्णिमा व्रत के रूप में भी मनाया जाता है।
व्यास पूर्णिमा : व्यास पूर्णिमा आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन होता है। इस दिन गुरु की पूजा की जाती है।
श्रावण मास के व्रत-त्यौहारों की सूची / (जुलाई-अगस्त)
शिव व्रत : श्रावण मास के सभी सोमवार को यह व्रत किया जाता है। इस दिन भगवान शिव की विशेष रूप से पूजा की जाती है। भगवान शिव के साथ पार्वती, गणेश और नंदी की भी पूजा की जाती है।
मंगला गौरी पूजन व्रत : यह व्रत सावन माह के सभी मंगलवार को किया जाता है। यह व्रत सिर्फ स्त्रियों के लिए है। इस दिन गणेश जी की पूजा के पश्चात षोडश मात्रका का पूजन किया जाता है। इसके पश्चात मंगला देवी और गौरी की पूजा की जाती है।
कामिका एकादशी : यह व्रत सावन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है। इसे पवित्रा भी कहा जाता है। इसमें भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और पंचामृत का भोग लगाया जाता है।
हरियाली अमावस्या : श्रावण मास की अमावस्या को हरियाली अमावस्या या श्रावणी अमावस्या कहा जाता है। इस दिन पीपल के वृक्ष की पूजा होती है। इस दिन पितरों को पिंडदान एवं दान-पुण्य के अन्य कार्य किए जाते हैं।
नाग पंचमी : नाग पंचमी श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। इस दिन नागों की मूर्तियां बनाकर उसका पूजन किया जाता है। पंचमी तिथि के स्वामी नाग हैं इसलिए इनकी पूजा की जाती है। नाग पंचमी का वर्णन गरुड़ पुराण में मिलता है। बिहार में नाग पंचमी श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है जिसे मौना पंचमी भी कहा जाता है।
निउरी नवमी : सावन मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को निउरी नवमी मनाया जाता है। इसमें नेवलों की पूजा की जाती है। यह पूजा नागों के आक्रमण से बचने के लिए की जाती है। इस व्रत को पुत्रवती स्त्रियां करती हैं।
श्रावण पुत्रदा एकादशी : यह व्रत सावन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। इसमें भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। यह व्रत संतान सुख की कामना से किया जाता है।
रक्षाबंधन : रक्षाबंधन का त्यौहार सावन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन भाई की मंगलकामना और उसके दीर्घायु होने के लिए बहनें भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं। भाई इस दिन बहन की रक्षा का वचन लेता है।
वरलक्ष्मी व्रत : सावन मास के अंतिम शुक्रवार को वरलक्ष्मी व्रत किया जाता है। वरलक्ष्मी व्रत के दौरान लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की पूजा की जाती है। यह व्रत मुख्यतः दक्षिण भारत में मनाया जाता है। यह व्रत सुख-संपत्ति की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
भाद्रपद के व्रत-त्यौहारों की सूची / (अगस्त-सितंबर)
कजरी तीज : भाद्रपद मास के कृष्ण तृतीया को कजरी तीज मनाया जाता है। इसे सातुड़ी तीज भी कहा जाता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधिवत पूजा की जाती है। पति के दीर्घायु होने और घर की सुख-शांति की कामना से कजरी तीज किया जाता है।
कज्जली तृतीया : यह त्यौहार भाद्रपद के कृष्ण तृतीया को मनाया जाता है। यह जाति विशेष त्यौहार है। इसे वैश्य जाति के लोग मनाते हैं। इस दिन इस जाति के लोग जौ, गेहूं, चना और चावल के सत्तू में घी और मेवा मिलाकर भिन्न-भिन्न प्रकार के पदार्थ बनाते हैं और चंद्रोदय के बाद उसका उसका भोजन करते हैं।
बहुला चौथ : बहुला चौथ का व्रत भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन चावल और गेहूं का सेवन नहीं किया जाता है और गाय का दूध भी नहीं दुहा जाता है। यह व्रत पुत्र की रक्षा की कामना से किया जाता है।
मूगा पंचमी : मूगा पंचमी भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की पंचमी को किया जाता है। इस व्रत में सांपों की पूजा की जाती है।
मघा व्रत : भाद्रपद में जिस दिन मघा नक्षत्र पड़ता है उस दिन यह व्रत किया जाता है। यह व्रत स्त्रियों द्वारा किया जाता है। इस दिन स्त्रियां स्नान करके कलश में रक्षा सूत्र बांधती हैं। यह व्रत सूखे से बचने के लिए किया जाता है।
हलषष्ठी : भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में हलषष्ठि का त्यौहार मनाया जाता है। बलराम सदैव हल धारण किए रहते थे इसलिए इस दिन हल और मूसल की पूजा की जाती है। इस व्रत को पुत्रवती स्त्रियां करती हैं।
चंद्रषष्ठी : चंद्रषष्ठी का व्रत भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी के दिन किया जाता है। इस व्रत को चंद्रोदय व्यापिनी तिथि के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत को अविवाहित और नवविवाहित लड़कियों के द्वारा किया जाता है। इस व्रत की कथा सात लड़कियों के साथ सुनी जाती है।
पुत्र व्रत : यह व्रत भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को किया जाता है। इसमें विष्णु भगवान की पूजा की जाती है। इस व्रत का वर्णन वराह पुराण में मिलता है।
जन्माष्टमी : भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में अर्धरात्रि को हुआ था। इसी के उपलक्ष्य में जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। यह त्यौहार शुद्धा और विद्धा दो नामों से विभाजित है।
गंगा नवमी : गंगा नवमी के दिन गंगा नदी में स्नान किया जाता है और गंगा नदी का पूजन किया जाता है। इसका संबंध अत्रि गंगा से है। अत्रि गंगा का उदय अनुसूइया जी की तपस्या से हुआ था।
अजा एकादशी : भाद्रपद की कृष्ण एकादशी को अजा एकादशी भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से पूर्वजन्म की बाधाएं समाप्त हो जाती हैं और आत्मा शुद्ध हो जाती है। इसे राजा हरिश्चंद्र ने किया था और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।
गोवत्स द्वादशी : यह व्रत भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को किया जाता है। इस व्रत में गाय के बछड़े की पूजा की जाती है। इस दिन गाय के दूध, दही और घी का प्रयोग नहीं किया जाता है।
कुश ग्रहणी : अमावस्या यह व्रत भाद्रपद की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। इस दिन 10 प्रकार के पुष्प का प्रयोग किया जाता है। इस दिन कुश उखाड़ कर घर में लगाया जाता है।
महत्त्व माख्य शिव व्रत : यह व्रत भाद्रपद के शुक्ल प्रतिपदा को किया जाता है। इस दिन त्रिशूल और कृपाण धारण करने वाली शिव प्रतिमा का पूजन किया जाता है। सुख, धन, पुत्र और दीर्घायु जीवन प्राप्त करने के उद्देश्य से या व्रत किया जाता है।
हरितालिका तीज : यह व्रत भाद्रपद के शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव और पार्वती की पूजा की जाती है। भविष्योत्तर पुराण में इस व्रत का उल्लेख किया गया है। यह व्रत विवाहिता स्त्रियों के द्वारा किया जाता है। इस दिन स्त्रियां निर्जला व्रत करती हैं। पति के दीर्घायु जीवन की कामना से यह व्रत किया जाता है।
ऋषि पंचमी : भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ऋषि पंचमी मनाया जाता है। इस दिन सप्त ऋषियों के पूजन का विधान है। सप्त ऋषि का पूजन सभी वर्णों की स्त्रियां कर सकती हैं। ब्रह्म पुराण में इस व्रत का वर्णन मिलता है।
सूर्य षष्ठी : भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की सस्ती को यह व्रत किया जाता है। इस दिन भगवान सूर्य की आराधना की जाती है। इस दिन गंगा स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से नेत्र रोग और कुष्ठ रोग दूर हो जाते हैं।
संतान सप्तमी : व्रत यह व्रत भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को किया जाता है। यह व्रत पुत्र प्राप्ति, पुत्र की रक्षा और उसके दीर्घायु जीवन के लिए किया जाता है। इस दिन शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। इस व्रत को मुक्ताभरण भी कहते हैं।
दुर्वाष्टमी व्रत : भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को दुर्वाष्टमी व्रत व्रत किया जाता है। इस दिन फल, पुष्प दूर्वा, नैवेद्य आदि से भगवान शिव और पार्वती की पूजा की जाती है। यह व्रत सारी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला माना जाता है। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन ही राधा अष्टमी का व्रत भी किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं एवं घर में सुख-संपत्ति की कोई कमी नहीं होती है।
पद्मा एकादशी : यह व्रत भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इसे परिवर्तनी एकादशी भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि आषाढ़ मास में शेष शैया पर निद्रामग्न भगवान विष्णु इस दिन करवट बदलते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की भी पूजा होती है।
वामन जयंती : भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को वामन जयंती मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की मूर्ति स्थापित कर उसका पूजन किया जाता है।
अनंत चतुर्दशी : यह व्रत भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। पूजा के पश्चात स्मृति सूत्र हाथों में बांधा जाता है। यह सूत्र पूरे वर्ष बंधा रहता है तथा पुराने सूत्र को हटाकर नया सूत्र हाथों में बांधा जाता है। अनंत चतुर्दशी का वर्णन स्कंद पुराण, ब्रह्म पुराण एवं भविष्य पुराण में मिलता है।
उमा माहेश्वर व्रत : यह व्रत भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की पूर्णमासी को किया जाता है। मत्स्य पुराण में इस व्रत का वर्णन मिलता है।
आश्विन मास के व्रत-त्यौहारों की सूची / (सितंबर-अक्टूबर)
पितर पक्ष : यह पक्ष क्वार मास की परीवा से पितृ मोक्ष अमावस्या तक चलता है। पितर पक्ष में प्रत्येक हिंदू परिवार अपने पितरों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। धार्मिक ग्रंथों में तीन प्रकार के ऋणों की चर्चा की गई है – देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण। इसमें से पितृ ऋण श्राद्ध के माध्यम से उतारा जाता है।
विश्वकर्मा पूजा : आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को विश्वकर्मा पूजा मनाया जाता है। इस दिन भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। भगवान विश्वकर्मा को इंजीनियरिंग और कला का देवता माना जाता है। विश्वकर्मा पूजा के दिन औद्योगिक कारखानों में विशेष आयोजन किया जाता है।
इन्द्रा एकादशी : यह व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है। यह व्रत भटकते हुए पितरों की मुक्ति के लिए किया जाता है।
सर्वपितृ अमावस्या : आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या पर यह व्रत किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के हंस अवतार की पूजा की जाती है। किस दिन पितरों को श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किया जाता है। पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यह व्रत किया जाता है।
शारदीय नवरात्रि : प्रत्येक वर्ष चार नवरात्रि होती है। चैत्र मास में बड़ी नवरात्रि होती है जबकि आषाढ़ और आश्विन मास में शारदीय नवरात्रि होती है। आषाढ़ और माघ मास की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है।
विजयादशमी : यह त्यौहार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। इसी दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था। यह त्यौहार दिग्विजय यात्रा और व्यापार यात्रा के लिए शुभ माना जाता है।
पापांकुशी : एकादशी यह व्रत आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। इस व्रत में मौन रखकर भगवान का स्मरण किया जाता है। यह व्रत पापों के नाश के लिए किया जाता है।
शरद पूर्णिमा : यह व्रत आश्विन मास की पूर्णिमा को किया जाता है। शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाएं धारण करता है। इस दिन स्त्रियों का कार्तिक स्नान समाप्त होता है। विवाहित व्यक्तियों के द्वारा ही शरद पूर्णिमा का व्रत किया जाता है। शरद पूर्णिमा के व्रत को कौमुदी व्रत भी कहा जाता है।
कार्तिक मास के व्रत-त्यौहारों की सूची / (अक्टूबर-नवंबर)
करवा चौथ : यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है। इस दिन विवाहित स्त्रियां अपने पति की मंगल कामना के लिए व्रत रखती हैं। इस दिन शाम में स्त्रियों के द्वारा चंद्रोदय के पश्चात शिव-पार्वती, कार्तिकेय, गणेश और चंद्रमा का पूजन किया जाता है। इस दिन स्त्रियां निर्जला व्रत रहती हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देने के पश्चात अपना व्रत समाप्त करती हैं।
अहोई अष्टमी : यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। यह व्रत पुत्रवती स्त्रियों के द्वारा किया जाता है। यह व्रत संतान सुख के लिए किया जाता है।
तुलसी एकादशी : यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन स्त्रियां विष्णुप्रिया तुलसी की पूजा करती हैं।
धनतेरस : धनतेरस कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है। इस दिन चावल, रोड़ी, गुड़, नैवेद्य इत्यादि के द्वारा यमराज का पूजन किया जाता है। यम के लिए आटे का दीपक बनाकर मुख्य द्वार पर रखा जाता है। इस दीपक में चार बत्तियां होती हैं। इस दिन नए बर्तन खरीदने की परंपरा भी है। इस दिन भगवान धन्वंतरि का जन्म भी हुआ था इसलिए उनकी भी पूजा की जाती है।
नरक चतुर्दशी : यह कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन घर की साफ-सफाई की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान वामन ने राजा बलि का अहंकार तोड़ा था एवं भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था।
दीपावली : यह त्यौहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है। इस दिन गणेश-लक्ष्मी का पूजन किया जाता है और घरों में दीपक जलाए जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन महालक्ष्मी अर्धरात्रि के समय ग्रहस्थों के यहां विचरण करती हैं।
गोवर्धन पूजा या अन्नकूट : यह त्यौहार दीपावली के दूसरे दिन मनाया जाता है। इस दिन द्वार के समीप गोबर गोवर्धन पर्वत बनाया जाता है जो मनुष्य के आकार का होता है। इस पर्वत की पूजा की जाती है। अन्नकूट के दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं किए जाते हैं। इस दिन राजा बलि की भी पूजा की जाती है।
भैया दूज : यह त्यौहार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाता है। भैया दूज को यम द्वितीया भी कहते हैं। यह त्यौहार भाई-बहन के पवित्र संबंधों का प्रतीक है।
छठ पर्व : कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को छठ पर्व मनाया जाता है। छठ पर्व 4 दिनों का होता है जो कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल सप्तमी को समाप्त होता है। छठ देवी को भगवान सूर्य की बहन माना जाता है। इस कारण सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए सूर्योदय और सूर्यास्त के समय भगवान सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है। छठ पर्व साल में दो बार मनाया जाता है एक चैत्र मास में और दूसरा कार्तिक मास में।
अक्षय नवमी : यह व्रत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को किया जाता है। इसे आंवला नवमी भी कहते हैं। इस दिन आंवला वृक्ष की 108 परिक्रमा की जाती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति ब्रहम हत्या से मुक्त हो जाता है।
भीष्म पंचक : यह व्रत कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी को मनाया जाता है। इस व्रत को करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं एवं पुरुषार्थ की प्राप्ति होती है।
देवोत्थानी एकादशी : यह व्रत कार्तिक शुक्ल एकादशी को किया जाता है। इसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में नींद से जागते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।
तुलसी विवाह : यह देवोत्थानी एकादशी के दिन किया जाता है। कुछ लोग इसे कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाते हैं। इस दिन तुलसी की पूजा की जाती है एवं कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी का विवाह किया जाता है।
कार्तिक स्नान : जो स्त्रियां कार्तिक के पूरे महीने में भगवान श्री कृष्ण के लिए सरोवर में स्नान करती हैं उनका अंतिम स्नान कार्तिक पूर्णिमा को होता है।
मार्गशीर्ष माह (अगहन) के व्रत-त्यौहारों की सूची / (नवंबर-दिसंबर)
भैरव जयंती : मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भैरव जयंती मनाई जाती है। इसे कालाष्टमी भी कहते हैं। पुराणों के अनुसार भैरव भगवान शिव के दूसरे रूप हैं। भैरव के रूप में उनका वाहन कुत्ता है। भैरव के स्वरूप से काल भी भयभीत रहता है इसलिए इन्हें काल भैरव भी कहा जाता है।
दत्तात्रेय जयंती : मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष की दशमी को दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है। दत्तात्रेय ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश के संयुक्त रूप हैं। इनके तीन सिर और छः भुजाएं हैं। यह अत्रि एवं अनुसूइया के पुत्र हैं। दत्तात्रेय ने प्रहलाद को ब्रह्म ज्ञान का उपदेश दिया था।
उत्पन्ना एकादशी : मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी का व्रत किया जाता है। इस व्रत को मनाने से सुख-शांति की प्राप्ति होती है।
विवाह पंचमी : मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को विवाह पंचमी मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन श्री राम और सीता का विवाह हुआ था।
मोक्षदा एकादशी : मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी मनाया जाता है। इस दिन गीता जयंती भी मनाई जाती है। भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था एवं उन्हें कर्म की ओर प्रशस्त किया था।
पौष माह के व्रत-त्यौहारों की सूची / (दिसंबर-जनवरी)
सफला एकादशी : पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी व्रत किया जाता है। इस दिन भगवान नारायण की पूजा की जाती है। इस दिन दीपदान किया जाता है और रात्रि में जागरण किया जाता है।
मौनी अमावस्या : पौष माह की अमावस्या को मौन व्रत धारण किया जाता है इसलिए इसे मौनी अमावस्या भी कहा जाता है। इस दिन पीपल के वृक्ष के नीचे भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। पीपल के वृक्ष की 108 परिक्रमा लगाई जाती है। इस व्रत को करने से चिंतन शक्ति में वृद्धि होती है।
पुत्रदा एकादशी : पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी भी कहा जाता है। संतान की प्राप्ति के लिए यह व्रत रखा जाता है। इसे वैकुंठ एकादशी भी कहते हैं। जिन पितरों को मोक्ष की प्राप्ति नहीं हुई है उनके लिए यह व्रत रखा जाता है ताकि उन्हें मुक्ति मिल सके।
पौष पूर्णिमा : पौष मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को पौष पूर्णिमा का व्रत रखा जाता है। पौष पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपने पूर्ण आकार में होता है। इस दिन भगवान विष्णु एवं लक्ष्मी जी के साथ-साथ चंद्रमा की पूजा की जाती है इस दिन दान, स्नान आदि का विशेष महत्व होता है। इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति की सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
माघ मास के व्रत-त्यौहारों की सूची / (जनवरी-फरवरी)
माघ स्नान : पौष मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से लेकर माघ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तक माघ स्नान किया जाता है। इस पूरे माह में पवित्र नदियों में स्नान एवं दान का विशेष महत्व है।
मकर संक्रांति : माघ मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को मकर संक्रांति का त्यौहार मनाया जाता है। जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है तो उसे संक्रांति कहते हैं। इस दिन सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करता है इसलिए इसे मकर संक्रांति कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन देवता पृथ्वी पर अवतरित होते हैं एवं पुण्य आत्माएं शरीर छोड़कर स्वर्ग लोक में प्रवेश करती हैं। इस पर्व को खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है।
सकठ चौथ : यह व्रत माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है। इसे सकठ गणेश या गणेश चतुर्थी भी कहते हैं। इस दिन स्त्रियां निर्जला व्रत रखती हैं।
षटतिला एकादशी : यह व्रत माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है। इस दिन काली गाय तथा काले तिलों को दान देने का महत्व है। यह व्रत देवताओं को संतुष्ट करने के लिए किया जाता है।
मौनी अमावस्या : माघ मास की अमावस्या को भी मौनी अमावस्या कहा जाता है। इस दिन मौन रखने का विधान है। इस दिन गंगा में स्नान करने का विशेष महत्व है।
बसंत पंचमी : माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन वसंत ऋतु का आगमन पृथ्वी पर माना जाता है। इसी के स्वागत में बसंत पंचमी का आयोजन किया जाता है। इस दिन ब्रजभूमि में राधा और कृष्ण की विशेष लीलाओं का आयोजन किया जाता है। इस दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है।
शीतलाष्ठी : यह व्रत माघ मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को किया जाता है। इस दिन शीतला देवी का पूजन किया जाता है। यह व्रत संतान को रोग मुक्त रखने के लिए किया जाता है।
सौर सप्तमी : माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को सौर सप्तमी या अचला सप्तमी कहा जाता है। इस दिन स्त्रियां सूर्य देव के लिए व्रत रखती हैं।
भीष्म अष्टमी : माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भीष्म अष्टमी का व्रत किया जाता है। इस दिन भीष्म पितामह को श्रद्धांजलि दी जाती है।
जया एकादशी : माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी के रूप में मनाया जाता है। यह व्रत अपने पाप कर्मों से मुक्ति के लिए किया जाता है।
माघी पूर्णिमा : माघ मास के अंतिम दिन को माघी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है तथा पितरों को श्राद्ध दिया जाता है।
फाल्गुन मास के व्रत-त्यौहारों की सूची / (फरवरी-मार्च)
विजया एकादशी : फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी कहा जाता है। इस दिन भगवान श्री राम लंका पर आक्रमण करने के लिए समुद्र तट पर पहुंचे थे। जब भगवान श्री राम समुद्र पार नहीं कर पाए तो उन्होंने ऋषियों की सलाह पर इस एकादशी का व्रत किया था। उन्होंने विधिपूर्वक लक्ष्मीनारायण की स्थापना कर विधिवत पूजन किया था। तभी से विजया एकादशी का व्रत लोगों द्वारा किया जाता है।
कुंभ संक्रांति : जब सूर्य मकर राशि से निकलकर कुंभ राशि में प्रवेश करता है उस तिथि को कुंभ संक्रांति मनाई जाती है। कुंभ संक्रांति का महत्व भी मकर संक्रांति की ही तरह है। प्रत्येक वर्ष में 12 संक्रांतियां होती हैं। मकर संक्रांतिऐसी मान्यता है कि इस दिन देवताओं का पवित्र नदियों में बात होता है। इसलिए इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है।
महाशिवरात्रि : फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को महाशिवरात्रि का त्यौहार मनाया जाता है। कुछ लोग चतुर्दशी को भी यह त्यौहार मनाते हैं। महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है। सभी वर्णों के लोग एवं सभी आयु वर्ग के स्त्री-पुरुष महाशिवरात्रि का व्रत रख सकते हैं।
अविघ्न कर व्रत : यह व्रत फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को किया जाता है। विघ्न बाधा को दूर करने के लिए यह व्रत किया जाता है। भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध करने के लिए यही व्रत किया था। समुद्र मंथन निर्विघ्न पूरा हो जाए इसके लिए भगवान विष्णु ने भी इस व्रत को किया था। इस दिन गणेश जी की पूजा की जाती है।
जानकी व्रत : यह व्रत फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। इस व्रत को सीता अष्टमी भी कहते हैं। इस दिन जानकी की प्रतिमा का पूजन किया जाता है। यह व्रत सिर्फ स्त्रियों के लिए है।
आंवल एकादशी : यह व्रत फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन किया जाता है। इस दिन आंवले के वृक्ष के पास बैठकर भगवान की पूजा की जाती है। यह व्रत कार्य में सफलता के लिए किया जाता है।
होलिकोत्सव : होली का त्यौहार फाल्गुन मास की पूर्णमासी को मनाया जाता है। पूर्णमासी की रात्रि को लकड़ियां एकत्र कर उसमें आग लगाई जाती है और होलिका का पूजन किया जाता है। इसी दिन भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार धारण कर भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी एवं हिरण्यकशिपु का वध किया था। यह त्यौहार नई फसल आने का सूचक भी है। वैदिक काल में इस पर्व को नवान्नेष्टि यज्ञ कहा गया है।
अन्य व्रत-त्यौहार
संक्रांति व्रत : जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है उस अवधि को संक्रांति कहते हैं। इस दिन स्नान करके सूर्य की प्रतिमा स्थापित कर उनका पूजन किया जाता है। इससे समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।
अधिमास व्रत : जिस मास में सूर्य संक्रांति नहीं होती है उस मास को अधिमास कहते हैं। बहुत से लोग इसे मलमास या पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं। जिस मास में दो संक्रांति पड़ती है उसे छैः मास कहते हैं। इन महीनों में कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता है।
ग्रहण संबंधी व्रत : जब सूर्य ग्रहण एवं चंद्र ग्रहण लगता है वैसी स्थिति के लिए भी व्रत का विधान किया गया है। जिस दिन ग्रहण लगता है उस दिन नदी में स्नान कर पूजन एवं दान करना चाहिए। ग्रहण के काल में सामान्य दैनिक क्रियाओं यथा स्नान, भोजन इत्यादि को निष्पादित नहीं करने का विधान किया गया है। इस समय ईश्वर का स्मरण करना चाहिए।
मासिक शिवरात्रि : मासिक शिवरात्रि प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस प्रकार एक वर्ष में 12 बार मासिक शिवरात्रि का व्रत किया जाता है। जबकि पूरे वर्ष में महाशिवरात्रि एक बार मनाया जाता है। मासिक शिवरात्रि का व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है।
प्रदोष व्रत : प्रदोष प्रत्येक माह की त्रयोदशी को होता है। एक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को और दूसरा शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को। इस प्रकार प्रत्येक माह दो प्रदोष होते हैं। प्रदोष को भगवान शिव से जोड़ा जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति वर्ष के सभी प्रदोष करता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।