जब-जब लोक में धर्म की हानि हुई है तब-तब भगवान विष्णु ने धर्म की पुनर्स्थापना के लिए अवतार धारण किया है। भगवान विष्णु के दशावतार की चर्चा विभिन्न धर्म ग्रंथों में की गई है। इन 10 अवतारों में दूसरा अवतार कूर्म अवतार माना जाता है। पद्म पुराण के ब्रह्म खंड में भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की कथा का विस्तार से वर्णन किया गया है। कूर्म अवतार की चर्चा नरसिंह पुराण, भागवत पुराण, शतपथ ब्राह्मण, महाभारत इत्यादि में भी किया गया है। भगवान विष्णु ने क्षीर सागर में समुद्र मंथन के समय मंदार पर्वत को आधार प्रदान करने के उद्देश्य से कूर्म अवतार धारण किया था। कूर्म अवतार को कच्छप (कछुआ) अवतार भी कहा जाता है।
कूर्म अवतार की कथा
कूर्म अवतार की कथा इस प्रकार है –
एक बार भगवान शंकर के अंशावतार महर्षि दुर्वासा ने इंद्र से प्रसन्न होकर पारिजात पुष्प की माला भेंट की। इस माला को इंद्र ने स्वयं धारण करने के बजाए ऐरावत को पहना दिया जिसे ऐरावत ने जमीन पर फेंक दिया। इंद्र के इस व्यवहार से दुर्वासा ऋषि नाराज हो गए। उन्होंने देवताओं को शाप दे दिया कि जाओ तुम्हारा वैभव नष्ट हो जाएगा।
उनके इस शाप के प्रभाव से लक्ष्मी समुद्र में लुप्त हो गईं। इससे दुखी होकर इंद्र सहित सभी देवता इसका समाधान प्राप्त करने के लिए भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने उन्हें सलाह दी कि क्षीर सागर में जाकर समुद्र मंथन करें। इससे अमृत की प्राप्ति होगी। इस अमृत से देवताओं की शक्ति वापस आ जाएगी। इस कार्य को संपन्न करने के लिए मंदार पर्वत को मथानी की तरह और वासुकि नाग को रस्सी की तरह उपयोग में लाने की सलाह दी।
इस कार्य के लिए असुरों का भी सहयोग लिया गया। देवताओं ने असुरों को लालच दिया कि इससे प्राप्त अमृत से हम सबों का जीवन अमर हो जाएगा। जिसके लोभ में आकर असुरों ने इस समुद्र मंथन में अपना सहयोग दिया।
समुद्र मंथन के क्रम में जब मंदराचल को समुद्र में डालकर मथानी की तरह उपयोग में लाया जाने लगा तब मंदराचल के नीचे कोई आधार ना होने के कारण वह समुद्र में डूबने लगा। मंदराचल को आधार प्रदान करने के लिए भगवान विष्णु ने विशाल कूर्म के रूप में अवतार धारण किया। पूर्ण रूप धारण कर भगवान विष्णु मंदराचल के नीचे स्थित हो गए। कच्छप की पीठ का व्यास 100000 योजन था।
इस समुद्र मंथन से लक्ष्मी एवं अमृत सहित 14 अन्य रत्नों की भी प्राप्ति हुई जिससे देवताओं का वैभव पहले की तरह स्थापित हो गया।
भगवान विष्णु द्वारा कच्छप अवतार धारण करने के उपलक्ष्य में ही लोक में एकादशी के उपवास की परंपरा प्रचलित हुई।
समुद्र मंथन की कथा का विस्तार से वर्णन निम्न आलेख में किया गया है –
समुद्र मंथन की कथा
ज्वार-भाटा की उत्पत्ति से जुड़ी पौराणिक कथा
जिस समय भगवान विष्णु ने कच्छप का रूप धारण किया था और उनकी पीठ पर मंदराचल पर्वत मथानी की तरह घूम रहा था उस समय मंदराचल की चट्टानों की नोक से पीठ के खुजाए जाने के कारण भगवान को अच्छा लगने लगा। इससे उन्हें नींद आने लगी और उनके श्वास की गति बढ़ गई। उस श्वास वायु से समुद्र के जल में तरंगें उत्पन्न होने लगीं। इसी के कारण समुद्र में ज्वार-भाटों की उत्पत्ति हुई।
सामान्य भौगोलिक परिघटना के रूप में ज्वार भाटा की उत्पत्ति समुद्री तरंगों के कारण होती है। ज्वार-भाटा चंद्रमा और सूर्य के पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा खिंचाव के कारण उत्पन्न होता है। ज्वार-भाटा की स्थिति में चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल ज्यादा प्रभावी होता है। जब समुद्री जल ऊपर की ओर उठता है तो उसे ज्वार और जब नीचे की ओर आता है तो उसे भाटा कहते हैं।
मंदराचल पर्वत कहां है?
विभिन्न पौराणिक कथा प्रसंगों में मंदराचल पर्वत का वर्णन मिलता है। मंदराचल पर्वत मेरु के पूर्व में भागलपुर के पास एक छोटा पहाड़ है। कई पुराणों में बद्रिकाश्रम, जहां पर नारायण ने तपस्या की थी, मंदराचल पर्वत स्थित बताया जाता है। इस प्रकार यह हिमालय का ही एक भाग है, परंतु महाभारत के अनुसार यह बद्रिकाश्रम के उत्तर में स्थित है। मंदराचल से संबंधित कथा प्रसंग –
- कूर्म पुराण में उल्लिखित है कि जब अमृत प्राप्ति के लिए क्षीर सागर में समुद्र मंथन किया जा रहा था तब मंदराचल पर्वत का इस्तेमाल मथानी के रूप में किया गया था।
- वामन पुराण में वर्णित है कि सती के साथ महेश्वर इस पर्वत पर रहते थे तथा रमण करते थे।
- वामन भगवान के दोनों उरुओं में मेरु और मंदार पर्वत विद्यमान था।
- माता पार्वती के साथ विवाह कर भगवान शंकर भूत गणों के साथ मंदराचल पर आए थे तथा यहीं रहने लगे थे।
- कूर्म पुराण में ऐसा उल्लेख मिलता है कि अंधक नामक एक दैत्य पार्वती को हरने की इच्छा से मंदराचल पर आया था।
भगवान विष्णु के दशावतार से जुड़े अन्य अवतारों का वर्णन निम्न आलेख में किया गया है –
विष्णु के मत्स्य अवतार की कथा : हयग्रीव का वध और वेदों की रक्षा
समुद्र मंथन की कथा
भगवान विष्णु के वराह अवतार की कथा
भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की कथा
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