krishna janmashtami vrat

कृष्ण जन्माष्टमी व्रत 

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कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार पूरे भारतवर्ष में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण के जन्म के उपलक्ष्य में जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। इस सृष्टि का पालन करने वाले भगवान विष्णु के कई अवतार हुए हैं। उन अवतारों में कृष्ण अवतार को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। जन्म के समय ही उन्होंने अपनी अलौकिक शक्ति का परिचय अपनी माता देवकी को दिया था। भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का स्मरण भी कृष्ण जन्माष्टमी के दिन किया जाता है। इस दिन देशभर में भगवान श्री कृष्ण की झांकी निकाली जाती है। कृष्ण जन्माष्टमी व्रत करते हुए लोग उपवास रखते हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी कब मनाया जाता है?

जिस दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था, उस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। भविष्योत्तर पुराण में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं युधिष्ठिर से अपने जन्म के संबंध में कहा है – मैं स्वयं देवकी के गर्भ से भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उत्पन्न हुआ था। उस समय सूर्य सिंह राशि में स्थित था और चंद्रमा वृषभ में। इस दिन रोहिणी नक्षत्र था।

कृष्ण जन्माष्टमी व्रत कैसे करें?

प्रत्येक व्रत-त्यौहार को मनाने के अपने विधि-विधान होते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को मनाने की भी अपनी विधि है।  श्रीमद्भागवत में इस उत्सव का बड़ा ही उदात्त वर्णन किया गया है। उत्सव का अतिविशिष्ट रूप आज भी श्री नाथद्वारा और व्रज (मथुरा-वृंदावन) में देखा जा सकता है। कृष्ण जन्माष्टमी में भगवान श्री कृष्ण के जन्मदिन को मनाने का विधान है। भगवान श्री कृष्ण का जन्म रात्रि के बारह बजे कंस के कारागार में भाद्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी को देवकी और वसुदेव के पुत्र के रूप में हुआ था। इस तिथि को प्रत्येक वर्ष निम्न विधि से कृष्ण जन्माष्टमी व्रत मनाने का विधान है –

  • इस दिन मंदिरों में प्रभु श्री कृष्ण की मूर्ति स्थापित की जाती है। 
  • भगवान श्रीकृष्ण की  मूर्ति को एक पालने में रखा जाता है और उसे धीरे-धीरे हिलाया जाता है। 
  • मूर्तियों का जलाभिषेक स्वतः पवित्र होकर करना चाहिए।
  • मूर्तियों का विविध प्रकार से श्रृंगार करना चाहिए।
  • इस अवसर पर भगवान श्री कृष्ण से संबंधित स्थलों का दर्शन करना चाहिए।
  • विविध उपहारों, प्रसाद आदि से देवकी सहित भगवान श्री कृष्ण की पूजा करनी चाहिए। पहले देवकी की पूजा की जाती है उसके पश्चात श्री कृष्ण की पूजा होती है। 
  • पूजा में फल, पंचामृत, तुलसी दल तथा विविध प्रकार के पकवान सम्मिलित किए जाने चाहिए।
  • अर्धरात्रि काल में पंचामृत स्नान और विशेष रूप से सर्वश्रृंगार सहित षोडशोपचार पूजा होती है।
  • इस दिन सभी भक्त अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुरूप उपवास रखते हैं। कुछ लोग निर्जला उपवास रखते हैं, कुछ जल ग्रहण करते हैं, कुछ फलाहार पर रहते हैं और कुछ सेंधा नमक का सेवन करते हैं।
  • इस अवसर पर रात्रि जागरण का विशिष्ट महत्व है।
  • इस दिन भगवान के गुण-कीर्ति का गायन करना चाहिए।
  • इसके अगले दिन अर्थात नवमी को नंद महोत्सव होता है। इसमें दूध, दही, घी, जल, हरिद्रा आदि से परस्पर विलेपन किया जाता है।

भगवान श्री कृष्ण जन्म कथा

महाभारत और भागवत पुराण में भगवान श्री कृष्ण के जन्म का उल्लेख किया गया है। इसमें कहा गया है कि भगवान विष्णु ने अपने दो केश तोड़े – श्वेत और श्याम। श्वेत केश से रोहिणी के गर्भ से बलराम का तथा श्याम केश से देवकी के गर्भ से कृष्ण का जन्म हुआ। कृष्ण का रंग श्याम होने के कारण उनका नाम कृष्ण पड़ा और केश से उत्पन्न होने के कारण केशव कहलाए। भगवान श्री कृष्ण के केश कुछ अजब से घुंघराले थे फलतः वह श्रीवत्स कहे गए।

धर्म ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार द्वापर युग में लाखों दैत्यों के दल ने राजाओं का रूप धारण कर लिया था। अपने अत्याचार और घमंड से पृथ्वी को आक्रांत कर रखा था। उन सबों से मुक्ति पाने के लिए पृथ्वी गौ का रूप धारण कर भगवान ब्रह्मा के पास गई। ब्रह्मा जी पृथ्वी की सारी बात सुनकर अन्य देवताओं सहित क्षीरसागर के तट पर पहुंचे। उन्होंने भगवान विष्णु की स्तुति की। स्तुति करते हुए ब्रह्मा जी वहीं समाधिस्थ हो गए। उन्होंने  समाधि की अवस्था में आकाशवाणी सुनी। इसके बाद ब्रह्मा जी ने देवताओं से कहा –

भगवान विष्णु को पृथ्वी के कष्ट का पहले से पता है। अपनी कला शक्ति के द्वारा पृथ्वी का भार ग्रहण करते हुए वे जब पृथ्वी पर लीला करें तब तक आप लोग अपने-अपने अंशों के साथ यदुकुल में जन्म लेकर उनकी लीला में सहयोग दें। भगवान विष्णु स्वयं वसुदेव जी के घर जन्म लेंगे। 

ब्रह्मा जी ने यह भी कहा कि भगवान शेष जो भगवान विष्णु की कला होने के कारण अनंत हैं और जिनके सहस्त्र मुख हैं, भगवान के प्रिय कार्य को करने के लिए उनसे पहले ही उनके बड़े भाई के रूप में अवतार ग्रहण करेंगे।

इसी समय भोज वंश के राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करते थे। इनका पुत्र कंस था जिसने इन्हें गद्दी से हटा दिया और स्वयं राजा बन गया। कंस की चचेरी बहन का नाम देवकी था। देवकी के पिता का नाम देवक था जो उग्रसेन के छोटे भाई थे। कंस देवकी से बहुत प्यार करता था। 

देवकी का विवाह वसुदेव के साथ हुआ। जब देवकी विवाह के पश्चात वसुदेव जी के साथ अपने ससुराल जा रही थी तो स्नेहवश कंस उस रथ को स्वयं हाँकने लगा। मार्ग में जिस समय घोड़ों की रस्सी पकड़कर कंस रथ हाँक रहा था उस समय आकाशवाणी हुई – अरे मूर्ख, जिस देवकी से तुम इतना प्रेम करते हो उसी देवकी की आठवीं संतान के द्वारा तुम्हारा वध किया जाएगा। 

आकाशवाणी सुनते ही उसने तलवार खींच ली और अपनी बहन को मारने के लिए तैयार हो गया। उसका यह कृत्य देख कर वसुदेव जी उसे शांत करते हुए बोले – 

राजकुमार, आप भोज वंश के कुल की कीर्ति बढ़ाने वाले हैं। बड़े-बड़े शूरवीर आपके गुणों की सराहना करते हैं। इसे मार कर आपकी कीर्ति में कलंक ही लगेगा। एक तो यही स्त्री है, दूसरे आपकी बहन और तीसरे विवाह का शुभ अवसर। इसलिए इसे मारना उचित नहीं है।

इसके पश्चात वसुदेव जी ने कहा कि आपको देवकी से तो कोई भय है ही नहीं जैसा कि आकाशवाणी में कहा गया है। भय है इसके पुत्रों से। इसके पुत्रों को लाकर मैं आपको सौंप दूंगा।

कंस जानता था कि वसुदेव के वचन झूठे नहीं होते और उन्होंने जो कहा वह युक्तिसंगत है। इसलिए उसने देवकी को मारने का विचार छोड़ दिया। इसके पश्चात देवकी और वसुदेव अपने घर चले गए। 

जब देवकी के पहले पुत्र जिसका नाम कीर्तिमान था, का जन्म हुआ तो वसुदेव जी ने उसे लाकर कंस को दे दिया। ऐसा करते हुए वसुदेव जी को कष्ट तो बहुत हो रहा था परंतु अपने वचन की सत्यता के लिए उन्होंने अपने पुत्र को कंस को सौंप दिया।

जब कंस ने देखा कि वसुदेव जी का अपने पुत्र के जीवन और मृत्यु में समान भाव है एवं वह सत्य में पूर्व निष्ठावान हैं तो वह बहुत प्रसन्न हुआ। उसने कहा – आप इस नन्हें बालक को ले जाइए। इससे मुझे कोई भय नहीं है। क्योंकि आकाशवाणी ने तो ऐसा कहा था कि देवकी के आठवें गर्भ से उत्पन्न संतान के द्वारा मेरी मृत्यु होगी। इसके पश्चात वसुदेव जी अपने पुत्र को लेकर लौट गए।

उसी समय भगवान नारद कंस के पास आए और उससे बोले – हे कंस, व्रज में रहने वाले नंद, गोप, गोपियां, स्त्रियां सभी देवता के अंश हैं। यह सभी भगवान विष्णु द्वारा की जाने वाली लीला में सहयोग के लिए अवतरित हुए हैं। उन्होंने यह भी बताया कि दैत्यों के कारण पृथ्वी का भार बढ़ गया है इसलिए देवताओं की ओर से अब उनके वध की तैयारी की जा रही है। भगवान नारद ने यह भी कहा कि संभव है कि यह प्रथम पुत्र ही आठवां हो और भगवान ने तुम्हारे साथ गणना में छल किया हो।

नारद जी के जाने के पश्चात कंस को यह विश्वास हो गया कि भगवान विष्णु ही मुझे मारने के लिए पैदा होने वाले हैं। कंस जानता था कि मैं पहले कालनेमि असुर था और विष्णु ने मुझे मार डाला था। नारद जी की बातों को सुनकर कंस ने वसुदेव जी के पहले पुत्र को मार डाला और देवकी व वसुदेव को कारागार में बंद कर दिया। इसके साथ ही वह यदुवंशियों पर घोर अत्याचार करने लगा। उसके अत्याचार से त्रस्त होकर यदुवंशी कुरु, पांचाल, विदेह, विदर्भ, कौसल आदि देशों में जा बसे।

जब कंस ने एक-एक करके देवकी के छः बालक मार डाले तब देवकी के सातवें गर्भ में भगवान के अंशस्वरूप श्रीशेष जी, जिन्हें अनंत भी कहते हैं पधारे। श्रीशेष के गर्भ में आने के कारण देवकी को स्वाभाविक हर्ष हुआ परंतु यह चिंता भी हुई कि कहीं कंस अन्य पुत्रों की तरह इसे भी ना मार डाले। इस कारण देवकी इस गर्भ की रक्षा के लिए भगवान से प्रार्थना करने लगी। देवकी की  प्रार्थना सुनकर भगवान ने अपनी योगमाया को यह आदेश दिया – हे देवी कल्याणी, तुम व्रज में जाओ। वहां नंद के गोकुल में वसुदेव की पत्नी रोहिणी निवास करती हैं। उनकी और भी पत्नियां कंस के डर से गुप्त स्थानों में रह रही हैं। इस समय मेरा वह अंश जिसे शेष कहते हैं देवकी के गर्भ में स्थित है। उसे वहां से निकाल कर तुम रोहिणी के गर्भ में रख दो।

भगवान विष्णु ने आगे कहा – कल्याणी, इसके पश्चात मैं समस्त ज्ञान, बल आदि अंशों के साथ देवकी का पुत्र बनूंगा और तुम नंद की पत्नी यशोदा के गर्भ से जन्म लेना। तुम लोगों को उनकी इच्छाओं के अनुरूप वरदान देने में समर्थ होगी। मनुष्य तुम्हें अपनी समस्त अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाली जानकर धूप, दीप, नैवेद्य एवं अन्य प्रकार की सामग्रियों से तुम्हारी पूजा करेंगे। पृथ्वी पर तुम्हारे लिए बहुत से स्थान बनाएंगे और दुर्गा, भद्रकाली, वैष्णवी, कुमुदा, चंडिका, कृष्णा, माधवी, माया, नारायणी, शारदा आदि बहुत सारे नामों से पुकारेंगे।

देवकी के गर्भ से खींचे जाने के कारण  श्री शेष को लोग संसार में संकर्षण कहेंगे, लोकरंजन के कारण राम कहेंगे और बलवानों में श्रेष्ठ होने के कारण बलभद्र भी कहेंगे। 

भगवान विष्णु की इच्छानुसार योगमाया ने देवकी का गर्भ ले जाकर रोहिणी के उदर में स्थापित कर दिया। इससे लोगों में यह विश्वास फैल गया कि देवकी का सातवां गर्भ नष्ट हो गया है।

जिस समय देवकी के आठवें पुत्र का जन्म होना था उस समय कारागार पर पहरे को और कड़ा कर दिया गया। देवकी के गर्भ के समय ही मथुरा के आसपास गोकुल और नंद गांव में रहने वाले आभीर गोपों के मुखिया नंद की पत्नी माता यशोदा के गर्भ में देवी कल्याणी स्थापित हुईं।

जब भगवान श्री कृष्ण के जन्म का समय आया तो विष्णु अपने चतुर्भुज अवतार में देवकी और वसुदेव के समक्ष कारागार में प्रकट हुए। उन्होंने वसुदेव जी से कहा कि मैं अभी शिशु रूप धारण करता हूं और आप मुझे लेकर अपने मित्र नंद के पास चले जाएं। वहां उनकी कन्या का जन्म हुआ है। उस कन्या को लेकर आप वापस आ जाएं। भगवान विष्णु के प्रभाव से कारागार के सभी फाटक अपने आप खुल गए। पहरेदार गहरी निद्रा में सो गए और मार्ग मेंं पड़ने वाली उफनती यमुना ने भी वसुदेव को नंद के पास जाने का रास्ता दे दिया। वसुदेव नंद के पास से उनकी कन्या को लेकर चले आए। 

जब कंस को पता चला कि वसुदेव और देवकी की आठवीं संतान का जन्म हुआ है तो वह कारागार में आया। उसने उस शिशु को जमीन पर पटक कर मार देना चाहा। लेकिन वह शिशु कन्या आकाश में चली गई और उसने कहा – हे कंस, मुझे मारने से क्या होगा, तुम्हें मारने वाला तो वृंदावन में है। वह जल्द ही तुम्हें तुम्हारे पापों का दंड देगा।

माता यशोदा और नंद की मातृत्व छाया में भगवान श्री कृष्ण का बाल्यकाल बीता। बाल्यावस्था और युवावस्था में भगवान श्री कृष्ण ने कंस सहित कई दुष्टों का संहार किया और धरती पर बढ़ते अधर्म के प्रसार को समाप्त किया। 

कंस वध

कृष्ण के जन्म से पहले ही से कंस ने अत्याचार आरंभ कर दिया था। वह प्रजा को सब प्रकार से पीड़ा पहुंचाता था। गौ, ब्राह्मण, शिशु और दीन प्रजा को सब प्रकार से यातना देता था। कृष्ण के छह भाइयों को वह पहले ही मार चुका था। कृष्ण के जन्म होने के समय से पूतना, तृणावर्त, अघ, केशी, प्रलंभ इत्यादि दुष्टों के द्वारा कृष्ण और बलराम को मारने के सब उपाय कर चुका था।

इन सब उपायों के करने पर भी जब वह सफल नहीं हुआ तब उसने निश्चय किया कि कृष्ण और बलराम को मल्ल युद्ध के लिए मथुरा बुलाया जाए। जब वे रंगभूमि में आने लगें तब उनको कुवलयापीड़ हाथी के द्वारा कुचलवा कर मरवा दिया जाए। यदि उससे बच जाएं तो चाणूर और मुष्टिक महामल्लों के द्वारा उनसे मल्ल युद्ध करा कर उनको समाप्त कर दिया जाए।

कृष्ण-बलराम ने कंस का निमंत्रण प्रसन्नता से स्वीकार कर लिया। वे मथुरा गए। जब वे मल्ल भूमि में प्रवेश करने लगे तो कंस की आज्ञा से हाथीवान ने कुवलयापीड़ से दोनों को कुचलना चाहा। परंतु श्री कृष्ण ने अपने अलौकिक बाहुबल से उस हाथी को और हाथीवान को समाप्त कर दिया। इसके उपरांत चाणूर को कृष्ण ने और मुष्टिक को बलराम ने मल्ल युद्ध में परास्त कर समाप्त कर दिया।

इसके उपरांत कंस ने अपने आदमियों से कहा कि इन दोनों को निकाल दो और नंद को बांध लो एवं मार डालो। उसने कहा कि मेरा पिता उग्रसेन भी इनके साथ मिला हुआ है इसलिए उसको भी मार डालो। जब कंस इस प्रकार अनर्थ प्रलाप करने लगा तो भगवान कृष्ण रंगभूमि से कूदकर उसके मंच पर चढ़ गए और कंस को कसकर जमीन पर पटक दिया। इससे कंस की जीवन लीला समाप्त हो गई।

कृष्ण जन्माष्टमी व्रत का महत्व

भगवान श्री कृष्ण ने भाद्र कृष्ण अष्टमी को जन्म धारण कर दुष्टों का संहार किया और अपने भक्तों की रक्षा की। इसी कारण इस दिन को एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। जन्माष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण का प्रादुर्भाव निराशा में आशा के संचार का प्रतीक है। उनके प्राकट्य से भक्तों की आशा फलोन्मुखी होती है। भगवान श्री कृष्ण का जन्म अंधकार में प्रकाश का प्रतीक है। भगवान श्री कृष्ण का जन्मदिवस वास्तव में सौंदर्यमय और आनंदमय है। इससे यह विश्वास स्थापित होता है कि धर्म की स्थापना होगी और दुष्कर्म की समाप्ति होगी। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति कृष्ण जन्माष्टमी व्रत करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। उसकी आयु, कीर्ति, यश, लाभ इत्यादि में वृद्धि होती है। व्यक्ति ऐश्वर्य को धारण करता है और मुक्ति को प्राप्त करता है।

श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है –

सर्वधर्मान्परित्यज्य  मामेकं शरणं व्रज।

अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।

अर्थात और सब धर्मों का भरोसा छोड़कर केवल मेरी शरण में आओ! मैं तुमको सब पापों से मुक्त कर दूंगा, सोच मत करो।

ऐसे भी यह सर्वविदित है कि हम जैसा चित्र देखते हैं वैसा भाव सामने आ जाता है। कसाई को देखने पर उसके नीच कर्मों का ध्यान होता है, वहीं एक साधु को देखने पर सदाचार और शांति का ध्यान आता है। रावण ने जब राम रूप बनाया था तो उसकी भावना राम सदृश हो गई थी। वह परस्त्री को मातृवत देखने लगा था। उसकी दुष्टता लुप्त हो गई थी। 

इसी प्रकार पवित्र मूर्ति का ध्यान, नामस्मरण और कीर्तन हृदय को परमात्मा की ओर ले जाते हैं। पवित्र स्थान में पवित्र होकर जाने से हृदय पवित्र हो जाता है। शरीर की शुद्धि जिस प्रकार स्नान करने से होती है उसी प्रकार मन की शुद्धि परमात्मा के गुणगान से होती है। कृष्ण का नाम लेने से पवित्रता, सद्भाव और अलौकिक लीलाओं का दृश्य दिखने लगता है और शरीर व मन आनंद में डूब जाता है।


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8 thoughts on “कृष्ण जन्माष्टमी व्रत ”

  1. कृष्ण का रंग श्याम होने के कारण उनका नाम कृष्ण पड़ा और केश से उत्पन्न होने के कारण केशव कहलाए। इस ज्ञान संग्रह के लिए साधुवाद पवनजी 🙏🙏आज पता चला कि माधव को केशव क्यों कहते हैं।

      1. कृष्ण जन्माष्टमी व्रत के संदर्भ में इतनी अच्छी एवम सटीक जानकारी देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। पवन अपनी लेखनी को अनवरत जारी रखना। बहुत बहुत शुभकामनाएं ।

  2. बहुत महत्वपूर्ण जानकारी देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। ऐसे ही अपनी लेखनी का डंका बजाते रहो।

  3. चंद्र भूषण

    कृष्ण जन्माष्टमी व्रत के संक्षिप्त और सटिक जानकारी के लिए पवन भाई को बहुत बहुत धन्यवाद एवम् लेखनी को अनवरत जारी रखने के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं।

  4. शानदार, ओर संक्षिप्त जानकारी के लिए आपका आभार,
    ऐसे भी आपकी। लेखनी बेमिशाल हे।।

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