केदारनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर

सबसे ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ ज्योतिर्लिंग

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हिंदू धर्म के पवित्र तीर्थ स्थलों में केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का विशेष महत्व है। 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ ज्योतिर्लिंग सबसे ऊंचाई पर स्थित ज्योतिर्लिंग है। उत्तराखण्ड के सीमान्त जनपद रूद्रप्रयाग के उत्तरी भाग में हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य केदारनाथ ज्योतिर्लिंग स्थित है। श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग को केदारेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। केदारनाथ ज्योतिर्लिंग मंदाकिनी नदी के तट पर समुद्र तल से 3584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग जिस क्षेत्र में स्थित है उसका ऐतिहासिक नाम केदार खंड है। केदारनाथ मन्दिर उत्तराखंड के चार धाम और पंच केदार का एक हिस्सा है।  

केदारनाथ मंदिर तीन तरफ से पहाड़ों से घिरा है। केदारनाथ मंदिर को मंदाकिनी, सरस्वती, क्षीरगंगा, स्वर्णद्वारी और महोदधि पांच नदियों का संगम माना जाता है। 

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग

शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण ने लोक कल्याण के लिए भरतखंड के बद्रिकाश्रम में तप किया था। वे पार्थिव शिवलिंग की नित्य पूजा किया करते थे। भगवान शिव नित्य ही उस अर्चालिंग में आते थे। कालांतर में भगवान शिव उनकी आराधना से प्रसन्न होकर प्रकट हो गए। उन्होंने नर-नारायण से कहा – मैं आपकी आराधना से प्रसन्न हूं आप अपना वांछित वर मांगें। नर-नारायण ने कहा – देवेश, यदि आप प्रसन्न हैं और वर देना चाहते हैं तो आप अपने स्वरूप में यहीं प्रतिष्ठित हो जाएं, पूजा-अर्चना को प्राप्त करते रहें एवं भक्तों के दुखों को दूर करते रहें। उनके इस प्रकार कहने पर भगवान शंकर ज्योतिर्लिंग रूप में केदार में प्रतिष्ठित हो गए। तदनंतर नर-नारायण ने उनकी अर्चना की। उसी समय से वे वहां केदारेश्वर नाम से विख्यात हो गए।

केदारनाथ और पांडवों से जुड़ी कथा 

ऐसी मान्यता है कि केदारनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर का निर्माण पांडवों ने करवाया था। केदारनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर और पांडवों से जुड़ी कथा का वर्णन शिव महापुराण में मिलता है। इस कथा के अनुसार महाभारत युद्ध में पांडव विजयी हुए परंतु उन पर भाइयों और गुरुओं की हत्या का पाप लगा हुआ था। पांडव गोत्र हत्या और गुरु हत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने महर्षि वेदव्यास से सहायता मांगी कि आप कोई उपाय बताएं जिससे हमें इन पापों से मुक्ति मिल जाए। तब महर्षि वेदव्यास ने पांडवों से कहा कि वे भगवान शिव की शरण में जाएं वही मुक्ति दिला सकते हैं। 

ऐसा जानकर पांडव भगवान शिव के दर्शन के लिए वाराणसी गए। भगवान शिव को जब यह पता चला कि पांडव अपने पापों की मुक्ति के लिए उनके पास आ रहे हैं तो वे वहां से अंतर्धान हो गए और अन्य जगह को प्रस्थान कर गए। भगवान शिव को वहां ना पाकर पांडव उन्हें खोजने के लिए देश के अन्य तीर्थ स्थानों में जाने लगे परंतु कहीं भी उन्हें भगवान शिव के दर्शन नहीं हुए। 

भगवान शिव को खोजते-खोजते पांडव केदारनाथ पहुंचे। जब पांडव केदारनाथ पहुंचे तो शिवजी उन्हें गोत्र हत्या का दोषी समझकर वहां से महिष रूप में भूमिगत होने लगे। इतने में भीम ने दौड़कर उनका पिछला सिरा पकड़ लिया और उसी रूप में भगवान शिव की भक्ति और स्तुति करने लगे। पांडवों की भक्ति और व्याकुलता को देखकर भगवान शिव ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए और गुरु हत्या एवं गोत्र हत्या के पाप के प्रायश्चित के लिए भीम द्वारा पकड़े गए पृष्ठ भाग की पूजा का आदेश दे अंतर्धान हो गए। भगवान शिव का वह पृष्ठ भाग ही शिला के रूप में वहां स्थापित है और सुपूजित है।

केदार नाम क्यों पड़ा

सतयुग में केदार नामक राजा सप्तद्वीप पर राज्य करता था। वृद्ध होने पर वह अपने पुत्र को राज्य देकर यहां चला आया और तप करने लगा। जिस स्थान पर उसने तप किया वही स्थान केदारखंड के नाम से प्रसिद्ध हुआ। केदार का शाब्दिक अर्थ दलदल होता है तथा भगवान शिव दलदल भूमि के अधिपति भी हैं इसलिए भी दलदल (केदार) के (नाथ) पति से केदारनाथ नाम पड़ा । 

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर की संरचना

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर विशाल पाषाण शिलाओं से निर्मित है। इन शिलाओं को देखकर आश्चर्य होता है कि उस प्राचीन काल में किस प्रकार इतनी विशाल शिलाओं को ऊपर चढ़ाया गया होगा और इतनी विशाल शिलाओं को कहां से लाया गया होगा। यह मंदिर कत्यूरी शैली का है जो नागर शैली का ही परिवर्तित रूप है। मुख्यतः उत्तर भारत की मंदिर निर्माण शैली को नागर शैली कहा जाता है।

मंदिर की संरचना चतुष्कोणीय है। मंदिर 85 फुट ऊंचा, 187 फुट लंबा और 80 फुट चौड़ा है। इसकी दीवारें की मोटाई 12 फुट है।  यह मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर स्थित है। चबूतरे  की ऊंचाई लगभग 6 फुट है। मन्दिर के ऊपर स्तम्भों के सहारे लकड़ी की छतरी निर्मित है, जिसके ऊपर ताँबा मढ़ा गया है। मन्दिर का शिखर (कलश) भी ताँबे का ही है, किन्तु उसके ऊपर सोने की पॉलिश की गयी है। 

मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग एक वृहद् शिला के रूप में विद्यमान है । यह ज्योतिर्लिंग अनगढ़ ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित है। महिष के धड़ के समान दिखने वाला यह ज्योतिर्लिंग चार हाथ लंबा एवं डेढ़ हाथ मोटा है। गर्भगृह के बाहर मां पार्वती की पाषाणमूर्ति है। सभामण्डप में पंच पांडव, श्री कृष्ण एवं मां कुन्ती की मूर्तियां हैं। मुख्य द्वार पर गणेश जी और श्री नन्दी जी की पाषाण मूर्तियाँ हैं। 

मंदिर की परिक्रमा में अमृत कुंड, ईशान कुंड, हंस कुंड और उदय कुंड नाम के 4 कुंड हैं। इन कुंडों में तर्पण और आचमन का बहुत अधिक महत्व है। मंदिर की बाईं ओर इंद्र पर्वत है जहां इंद्र ने तप किया था। आधा किलोमीटर दूर भैरव शिला मंदिर है जहां केदारनाथ मंदिर के पट खुलने और बंद होने के दिन ही पूजा होती है।

मंदिर से लगभग 50 मीटर उत्तर-पश्चिम की ओर शंकराचार्य की समाधि है। 2013 में आई आपदा के कारण यह समाधि क्षतिग्रस्त हो गई थी जिसका पुनर्निर्माण कराया गया है। समाधि स्थल पर 12 फुट ऊंची और 35 टन वजनी काले एकाश्म पत्थर द्वारा निर्मित शंकराचार्य की मूर्ति प्रतिस्थापित की गई है जिसका अनावरण नवंबर 2021 में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने किया था। 

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर में दर्शन का समय

केदारनाथ में अत्यधिक ठंड पड़ती है और बर्फबारी भी होती है जिसके कारण केदारनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर साल में 6 महीने ही दर्शनार्थियों के लिए खुला रहता है। केदारनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर के खुलने और बंद होने के समय का निर्धारण मुहूर्त के आधार पर किया जाता है। केदारनाथ मंदिर के कपाट बैसाख मास में अक्षय तृतीय के पश्चात खुलते हैं तथा भैयादूज के दिन बन्द हो जाते हैं।

जब केदारनाथ मंदिर का कपाट बंद रहता है अर्थात शीतकाल में केदारनाथ की पंचमुखी प्रतिमा को उखीमठ लाया जाता है। इस प्रतिमा की पूजा यहाँ भी रावल जी करते हैं। ऊखीमठ में भगवान ओंकारेश्वर जी का विशाल एवं भव्य मन्दिर है। 

केदारनाथ मंदिर में आरती का समय

  • केदारनाथ मंदिर में दैनिक पूजा अनुष्ठान सुबह लगभग 4:00 बजे महाअभिषेक के साथ प्रारंभ होता है और लगभग 7:00 बजे शयन आरती के साथ समाप्त होता है। 
  • मंदिर आम जनता दर्शन के लिए सुबह 6 बजे के आसपास खुलता है। दोपहर में 3-5 बजे के बीच मंदिर दर्शनार्थियों के लिए बंद कर दिया जाता है। 
  • दोपहर 3 बजे से पहले आगंतुक स्वयंभू ज्योतिर्लिंग को छूकर घी से अभिषेक कर सकते हैं। शाम 5 बजे के बाद कोई भी व्यक्ति इसे छू नहीं सकता है लेकिन दूर से दर्शन कर सकता है। 
  • पाँच मुख वाली भगवान शिव की प्रतिमा का विधिवत श्रृंगार करके 7:30 बजे से 8:30 बजे तक नियमित आरती होती है।
  • रात्रि 8:30 बजे केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर बन्द कर दिया जाता है।

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर कैसे पहुंचें

हवाई जहाज द्वारा यात्रा : केदारनाथ मंदिर का नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून स्थित जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है। यह हवाई अड्डा केदारनाथ से 235 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। देश के विभिन्न शहरों से जॉली ग्रांट हवाई अड्डा के लिए नियमित उड़ान की सुविधा उपलब्ध है। गौरीकुंड जहां से पैदल चलकर केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए जाया जाता है, जॉली ग्रांट हवाई अड्डे के साथ सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। 

हेलिकॉप्टर द्वारा यात्रा : वर्तमान में तीर्थयात्रियों की संख्या में वृद्धि को देखते हुए प्रशासन द्वारा गुप्तकाशी, फाटा, सेरसी से श्री केदारनाथ जी के मध्य हेलिकॉप्टर सेवा संचालित की जाती है। हेलीकॉप्टर सेवा का संचालन वहां की मौसम संबंधी परिस्थितियों को देखते हुए किया जाता है। फाटा से केदारनाथ जाने और वापस आने के लिए हेलीकॉप्टर टिकट की बुकिंग गढ़वाल मंडल विकास निगम (GMVN) की वेबसाइट heliservices.uk.gov.in के माध्यम से कर सकते हैं।

रेल द्वारा यात्रा : केदारनाथ मंदिर जाने के लिए ट्रेन के माध्यम से ऋषिकेश, हरिद्वार या फिर देहरादून जाना होगा। इन तीनों स्थानों से सड़क मार्ग के द्वारा गौरीकुंड जाया जा सकता है। गौरीकुंड से केदारनाथ मंदिर तक जाने के लिए सड़क मार्ग की सुविधा उपलब्ध नहीं है। गौरीकुंड से केदारनाथ दर्शनार्थी पैदल जा सकते हैं या घोड़ा, पालकी, पिट्ठू आदि साधनों की सुविधा ले सकते हैं। 

सड़क मार्ग द्वारा यात्रा : गौरीकुंड उत्तराखंड राज्य के प्रमुख स्थलों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा है। गौरीकुंड के नजदीकी शहरों हरिद्वार, ऋषिकेश, देहरादून तक दूसरे राज्य से भी बस सेवा उपलब्ध है।वहां पहुंचकर सड़क मार्ग से गौरीकुंड पहुंचा जा सकता है। गौरीकुंड से ऋषिकेश की दूरी लगभग 210 किलोमीटर और गौरीकुंड से हरिद्वार की दूरी लगभग 230 किलोमीटर है।

गौरीकुंड से केदारनाथ की यात्रा
गौरीकुंड से केदारनाथ पैदल यात्रा मार्ग

गौरीकुंड से केदारनाथ की यात्रा : गौरीकुंड से केदारनाथ की दूरी लगभग 16 किलोमीटर है। इस दूरी को दर्शनार्थियों को पैदल ही तय करना होता है क्योंकि यहां सड़क मार्ग की सुविधा उपलब्ध नहीं है। रास्ते दुर्गम एवं पहाड़ी हैं। असमर्थ एवं वृद्ध व्यक्तियों के लिए घोड़ा, पालकी, पिट्ठू आदि साधन उपलब्ध रहते हैं जिनकी सहायता से इस दूरी को तय किया जा सकता है। गौरीकुंड के संबंध में यह पौराणिक मान्यता है कि माता पार्वती (माता गौरी) ने भगवान शिव से विवाह के लिए यहां ध्यान लगाया था।

केदारनाथ मंदिर पहुंचने का मार्ग

केदारनाथ मंदिर पहुंचने का मार्ग
केदारनाथ यात्रा मार्ग

परंपरानुसार केदारनाथ यात्रा करते समय तीर्थयात्री पहले यमुनोत्री और गंगोत्री जाते हैं और अपने साथ यमुना और गंगा उद्गम स्रोत से पवित्र जल लेते हैं और केदारनाथ को चढ़ाते हैं।

पारंपरिक तीर्थ मार्ग : हरिद्वार – ऋषिकेश – टिहरी (चंबा) – धरासु – यमुनोत्री – उत्तर काशी – गंगोत्री – फाटा – सोनप्रयाग – गौरीकुंड – केदारनाथ 

वैकल्पिक मार्ग : ऋषिकेश – देवप्रयाग – श्रीनगर – रुद्रप्रयाग – अगस्तमुनि – गुप्तकाशी/ऊखीमठ – फाटा – सोनप्रयाग – गौरीकुंड – केदारनाथ 

उत्तराखंड के चार धाम

ऐसी मान्यता है कि केदारनाथ की यात्रा चार धाम यात्रा के साथ ही पूर्ण होती है। उत्तराखंड के चार धाम निम्न हैं – 

  1. यमुना का उद्गम यमुनोत्री
  2. गंगा का उद्गम गंगोत्री
  3. केदारनाथ
  4. बद्रीनाथ 

इन चारों पूजा स्थलों को मिलाकर केदारखंड कहा जाता है। केदारखंड की यात्रा का क्रम इस प्रकार है कि पहले दर्शनार्थी यमुनोत्री एवं गंगोत्री से जल लेते हैं एवं केदारनाथ के दर्शन के पश्चात बद्रीनाथ का दर्शन करते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो कोई व्यक्ति बिना केदारनाथ भगवान का दर्शन किए यदि बद्रीनाथ क्षेत्र की यात्रा करता है, तो उसकी यात्रा निष्फल अर्थात व्यर्थ हो जाती है। केदारनाथ से बद्रीनाथ की दूरी लगभग 315 किलोमीटर है। 

पंच केदार 

शास्त्रों एवं पुराणों के अनुसार केदारनाथ पंच केदार का एक स्थल है। पंच केदार के अन्य चार स्थल तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मदमहेश्वर और नेपाल स्थित पशुपतिनाथ हैं। जब पांडव भगवान शिव के दर्शन के लिए केदारनाथ आए तो शिवजी नहीं चाहते थे कि पांडवों को उनका दर्शन हो इसलिए वह वहां से महिष रूप में भूमिगत होने लगे। भीम द्वारा पकड़ लिए जाने के कारण उनके महिष रूप का धड़ हिस्सा केदारनाथ में ही स्थित हो गया परंतु अग्रभाग का अन्य अंग भिन्न-भिन्न स्थानों पर प्रकट हुआ। जिन पांच स्थानों पर भगवान शिव के अंग प्रकट हुए उन स्थानों को सामूहिक रूप से पंच केदार कहा जाता है। केदारनाथ इनमें श्रेष्ठ तीर्थ स्थान माना जाता है इसलिए इसे केदारों का नाथ अर्थात केदारनाथ कहा जाता है।

पंच केदार में शामिल स्थल और  उन स्थानों से जुड़े शिवजी के अंग

अन्य दर्शनीय स्थल 

वासुकी ताल, गौरीकुंड (गर्म पानी के झरने), सोनप्रयाग (सोन गंगा तथा मंदाकिनी नदियों के संगम पर स्थित), उखीमठ (केदारनाथ मंदिर की प्रतिमा का शीतकालीन स्थल), पंच केदार, गुप्तकाशी, त्रिगुणीनारायण और गांधी सरोवर।

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