काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग – दर्शन से मोक्ष प्राप्ति

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वाराणसी (उत्तर प्रदेश) स्थित काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग में से सातवाँ ज्योतिर्लिंग है। इसे विशेश्वर या विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है। गंगा तट स्थित काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का दर्शन हिंदुओं के लिए सबसे पवित्र माना जाता है। काशी को भगवान शिव की नगरी और भोलेनाथ को काशी का महाराजा कहा जाता है। वाराणसी को अविमुक्त क्षेत्र भी कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना गया है। 

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग दो भागों में है। दाहिने भाग में शक्ति के रूप में मां भगवती विराजमान हैं। दूसरी ओर भगवान शिव वाम रूप (सुंदर) में विराजमान हैं। मां भगवती अन्नपूर्णा के रूप में काशी में रहने वालों का पेट भरती हैं। वहीं, महादेव मृत्यु के पश्चात तारक मंत्र देकर मुक्ति प्रदान करते हैं। महादेव को इसीलिए ताड़केश्वर भी कहते हैं। 

बाबा विश्वनाथ के अघोर दर्शन मात्र से ही जन्म-जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं। शिवरात्रि में बाबा विश्वनाथ औघड़ रूप में भी विचरण करते हैं। उनकी बारात में भूत, प्रेत, जानवर, देवता, पशु और पक्षी सभी शामिल होते हैं। बाबा विश्वनाथ काशी में गुरु और राजा के रूप में विराजमान हैं। वह दिनभर गुरु रूप में काशी में भ्रमण करते हैं। रात्रि में जब बाबा की श्रृंगार आरती की जाती है तो वह राज वेश में होते हैं। इसीलिए शिव को राजराजेश्वर भी कहते हैं।

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग कथा

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के संबंध में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार जब भगवान शंकर पार्वती जी से विवाह करने के बाद कैलाश पर्वत पर रहने लगे तब पार्वती जी इस बात से नाराज रहने लगीं कि आप कहां हमें इस निर्जन पर्वतों के बीच लेकर आ गए हैं। उन्होंने अपने मन की इच्छा भगवान शिव के सम्मुख रख दी। अपनी प्रिया की यह बात सुनकर भगवान शिव कैलाश पर्वत को छोड़कर देवी पार्वती के साथ काशी नगरी में आकर रहने लगे। इस तरह से काशी नगरी में आने के बाद भगवान शिव यहां ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए। तभी से काशी नगरी में विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग ही भगवान शिव का निवास स्थान बन गया।  

ऐसी मान्‍यता है कि हिमालय छोड़कर भगवान शिव ने यहीं अपना स्थायी निवास बनाया था। इसी वजह से ऐसा माना जाता है कि प्रलय काल का इस नगरी पर कोई असर नहीं पड़ता है। जब भी प्रलय आएगा तब भगवान शिव काशी को अपने प्रिय त्रिशूल पर धारण कर लेंगे और प्रलय के टल जाने के बाद काशी को उसके स्थान पर पुन: रख देंगे। काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग किसी मनुष्य की पूजा, तपस्या से प्रकट नहीं हुआ, बल्कि यहां निराकार परमेश्वर ही शिव बनकर विश्वनाथ के रूप में साक्षात प्रकट हुए।

ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्‍नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास

काशी विश्‍वनाथ का मंदिर गंगा नदी के तट पर स्थित है। इस मंदिर का 3,500 वर्षों का लिखित इतिहास है। इस मंदिर का निर्माण कब किया गया था इसकी जानकारी तो नहीं है लेकिन इसके इतिहास से पता चलता है कि इस पर कई बार हमले किए गए लेकिन उतनी ही बार इसका निर्माण भी किया गया। 

दिल्ली सल्तनत के संस्थापक कुतुब-अल-दीन ऐबक के समय 1194 ई. में इस मंदिर को नष्ट कर दिया गया था। हालाँकि, एक गुजराती व्यापारी ने दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश के शासनकाल के दौरान इसका पुनर्निर्माण किया था। हालाँकि इसे एक बार फिर हुसैन शाह शर्की द्वारा और फिर 14वीं और 15वीं शताब्दी के बीच सिकंदर लोदी द्वारा विध्वंस का सामना करना पड़ा। हालाँकि बाद में राजा मानसिंह और राजा टोडरमल ने अकबर के समय में इसका पुनर्निर्माण करवाया था।

श्री विश्वनाथ मन्दिर को मुगल बादशाह औरंगजेब ने नष्ट करके उस स्थान पर मस्जिद बनवा दी थी, जो आज भी विद्यमान है। इस मस्जिद के परिसर को ही ‘ज्ञानवाणी’ कहा जाता है। प्राचीन शिवलिंग आज भी ‘ज्ञानवापी’ कहा जाता है। 

बार-बार के हमलों और पुन: निर्मित किये जाने के बाद काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने करवाया था। यह भी माना जाता है कि महाराजा रंजीत सिंह ने 1853 में इस मंदिर के शिखर के पुनर्निर्माण के लिए एक हजार किलो सोना दान किया था। 1983 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इसका प्रबंधन अपने हाथ में ले लिया और पूर्व काशी नरेश विभूति सिंह को इसके ट्रस्टी के रूप में नियुक्त किया।

मंदिर का स्थापत्य 

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तर भारत के मंदिरों की तरह काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण भी नागर शैली में किया गया है। मुख्य मंदिर का आकार चतुर्भुजाकार है। मुख्य मंदिर अन्य देवताओं के छोटे-छोटे मंदिरों से घिरा हुआ है। मंदिर में स्थापित ज्योतिर्लिंग गहरे भूरे रंग के पत्थर से निर्मित है। 

बाबा विश्वनाथ दरबार में गर्भगृह का शिखर है। इसमें ऊपर की ओर गुंबद श्रीयंत्र से मंडित है। बाबा विश्वनाथ के दरबार में तंत्र की दृष्टि से चार प्रमुख द्वार इस प्रकार हैं – शांति द्वार, कला द्वार, प्रतिष्ठा द्वार और निवृत्ति द्वार। इन चारों द्वारों का तंत्र की दुनिया में अलग ही स्थान है। पूरी दुनिया में ऐसी कोई जगह नहीं है जहां शिव-शक्ति एकसाथ विराजमान हों और साथ में तंत्र द्वार भी हो।

बाबा विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग गर्भगृह के ईशान कोण में मौजूद है। मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण मुख पर है और बाबा विश्वनाथ का मुख अघोर की ओर है। इससे मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवेश करता है। इसीलिए सबसे पहले बाबा विश्वनाथ के अघोर रूप का दर्शन होता है। यहां से प्रवेश करते ही पूर्व कृत पाप-ताप विनष्ट हो जाते हैं।

काशी विश्वनाथ कॉरिडोर – दिसंबर 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के चरण 1 का उद्घाटन किया। यह कॉरिडोर प्राचीन मंदिर को गंगा के घाटों से जोड़ेगा। यह मंदिर गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है। इस परियोजना के अंतर्गत मंदिर परिसर में पर्यटक सुविधा केंद्र, वैदिक केंद्र, मुमुक्षु भवन, भोगशाला, शहर संग्रहालय, दर्शक दीर्घा, फूड कोर्ट आदि का निर्माण किया जाना है। इस परियोजना की कुल लागत लगभग 800 करोड रुपए है। 

श्री काशी विश्वनाथ की 5 आरतियाँ 

  • मंगला आरती : – 3.00 – 4.00 (सुबह)
  • भोग आरती : – 11.15 से 12.20 (दिन)
  • संध्या आरती : – 7.00 से 8.15 (शाम)
  • श्रृंगार आरती : – 9.00 से 10.15 (रात)
  • शयन आरती : – 10.30-11.00 (रात्रि)

काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन और अन्य सुविधाओं से संबंधित जानकारी https://www.shrikashivishwanath.org/ पर उपलब्ध है।

वाराणसी के अन्य दर्शनीय स्थल

दशाश्‍वमेध घाट, असीघाट, मणिकर्णिका घाट, तुलसी मानस मंदिर, दुर्गा कुंड मंदिर, चुनार का किला, रामनगर किला, सारनाथ, लोलार्क कुंड, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, जैन मंदिर, जंतर-मंतर, भारत माता मंदिर, संकट मोचन मंदिर, ललिता गौरी मंदिर, कालभैरव मंदिर, डंडी राज गणेश मंदिर।

काशी विश्वनाथ मंदिर कैसे पहुंचें

हवाई जहाज द्वारा यात्रा : काशी विश्वनाथ मंदिर से 25 किलोमीटर की दूरी पर बाबतपुर में स्थित लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है। देश के विभिन्न शहरों से यहां के लिए हवाई जहाज की सुविधा उपलब्ध है।  हवाई अड्डे से मंदिर तक जाने के लिए कैब या टैक्सी की सुविधा उपलब्ध है। 

रेल द्वारा यात्रा : देश के विभिन्न शहरों से वाराणसी शहर के लिए ट्रेन की सुविधा उपलब्ध है। वाराणसी जंक्शन से काशी विश्वनाथ मंदिर की दूरी लगभग 3 से 4 किलोमीटर है। स्टेशन से मंदिर तक जाने के लिए कैब, टैक्सी या ऑटो की सुविधा उपलब्ध है। 

सड़क मार्ग द्वारा यात्रा : वाराणसी सड़क मार्ग द्वारा विभिन्न शहरों से जुड़ा हुआ है। उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों और पड़ोसी राज्य के प्रमुख शहरों से वाराणसी के लिए बस सेवा उपलब्ध है। निजी वाहनों के माध्यम से भी काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर के दर्शन के लिए आया जा सकता है। 

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