महर्षि गौतम कौन थे?

महर्षि गौतम कौन थे? दक्षिण भारत में गंगा अवतरण की कथा

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भारत में ऋषि-मुनियों की एक सुदीर्घ परंपरा रही है। ऋषि-मुनियों ने अपने ज्ञान और चिंतन के माध्यम से भारतीय धर्म परंपरा को एवं जीवन व्यवहार को समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन्हीं ऋषि-मुनियों में एक नाम महर्षि गौतम का है। इस आलेख में इसी विषय पर चर्चा की गई है कि महर्षि गौतम कौन थे, उनके जीवन से जुड़ी घटनाएं कौन-कौन सी हैं और भारतीय धर्म संस्कृति में उनका क्या योगदान है।

महर्षि गौतम कौन थे?

महर्षि गौतम कौन थे? इस प्रश्न का ठीक-ठीक उत्तर देना कठिन है। सप्तर्षियों में शामिल महर्षि गौतम का उल्लेख कृतयुग से लेकर कलियुग तक मिलता है।

गौतम का उल्लेख ऋग्वेद में अनेक बार हुआ है, किन्तु किसी ऋचा के रचयिता के रूप में नहीं। यह स्पष्ट है कि उनका सम्बन्ध आंगिरसों से था, क्योंकि गोतम प्रायः उनका उल्लेख करते है । ॠग्वेद की एक ऋचा में इनका पितृवाचक ‘राहुगण’ शब्द आया है। शतपथ ब्राह्मण में इन्हें इन्हें विदेह जनक एव याज्ञवल्क्य का समकालीन एवं एक सूक्त का रचयिता कहा गया है। अथर्ववेद के दो परिच्छेदों में भी इनका उल्लेख है। 

गौतम और अहल्या की पौराणिक कथा प्रसिद्ध है। मिथिला प्रान्त में दरभंगा के निकट अहल्या-स्थान है। यहाँ आज भी लोग गौतमकुण्ड और अहल्याकुण्ड में स्नान कर अपने को पवित्र मानते हैं। कहा जाता है कि रामचन्द्रजी इसी रास्ते जनकपुर गये थे। जनकपुर जाते हुए राम जी ने अहिल्या का उद्धार किया था। अहिल्या उद्धार की यह कथा लोक प्रसिद्ध है।

महर्षि गौतम की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर ही भगवान महादेव ब्रह्मगिरि क्षेत्र में त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हुए तथा गंगा का दक्षिण भारत में अवतरण संभव हो सका। गंगा दक्षिण भारत में आज गौतमी गंगा या गोदावरी के नाम से जानी जाती है। महर्षि गौतम न्याय शास्त्र के प्रवर्तक रहे हैं।

महर्षि गौतम का जीवन परिचय

    • पिता का नाम – दीर्घतम या राहुगण
    • वंश का नाम – आंगिरस वंश (भारद्वाज ऋषि का संबंध इसी वंश से है।)
    • महर्षि गौतम के अन्य नाम – अक्षपाद या अक्षचरण, मेधातिथि
    • पत्नी का नाम – अहिल्या या अहल्या
    • पुत्र का नाम – वामदेव, नोवस, वाजश्रवस्, शतानन्द, शरद्वान
    • पुत्री का नाम – विजया, अंजनी
    • आश्रम – मिथिला / ब्रह्मगिरि
    • वंशज – हनुमान जी, कृपाचार्य
    • रचित पुस्तकें – न्यायसूत्र वैदिकवृत्ति, न्याय धर्मसूत्र, न्यायदर्शनम्
    • योगदान – न्याय दर्शन के आदि प्रवर्तक, त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना और दक्षिण भारत में गंगा अवतरण का श्रेय।

महर्षि गौतम किस काल के हैं?

महर्षि गौतम के समय को लेकर विद्वानों में मतभेद पाया जाता है। महर्षि गौतम का उल्लेख कृत युग, त्रेता युग एवं द्वापर युग में मिलता है। इसके अतिरिक्त महर्षि गौतम का उल्लेख ऋग्वेद में भी कई स्थानों पर किया गया है। साथ ही साथ न्याय दर्शन के प्रवर्तक के रूप में महर्षि गौतम का नाम लिया जाता है। 

कृत युग में महर्षि गौतम के अहिल्या से विवाह और इंद्र द्वारा छल किए जाने पर अहल्या को शाप देने का प्रसंग मिलता है। त्रेता युग में राम द्वारा अहिल्या के उद्धार की कथा तो लोक प्रसिद्ध है ही। द्वापर युग में महाभारत के शांति पर्व में भीष्म-गौतम के संवाद का उल्लेख किया गया है।

बहुत से विद्वान न्यायसूत्र में बौद्धों के शून्यवाद और विज्ञानवाद का खण्डन देखकर उसका रचनाकाल बौद्ध युग में ठहराते हैं। इस हिसाब से गौतम का समय बुद्ध के अनन्तर और नागार्जुन, वसुबन्धु के आसपास हो जाता है। शून्यवाद के प्रणेता नागार्जुन का समय द्वितीय शताब्दी के प्रारम्भ में है।

क्या पौराणिक गौतम और दार्शनिक गौतम दोनों एक हैं?

अब प्रश्न यह है कि यह पौराणिक गौतम और दार्शनिक गौतम दोनों एक हैं या दो। पुराणादि में विश्वास रखने वालों का मत है कि अहिल्या के स्वामी गौतम ऋषि ही न्यायसूत्र के रचयिता गौतम हैं। राम कथा में यह प्रसंग आता है कि जब रामचंद्र जी वनवास के लिए प्रस्थान कर रहे थे तो उन्हें समझाने-बुझाने के लिए तर्कशास्त्र विशारद गौतम को बुलाया गया था। महाभारत के शान्तिपर्व में गौतम का मेधातिथि नाम से उल्लेख पाया जाता है। भास के प्रतिमा नाटक में भी न्यायकर्ता मेधातिथि का जिक्र मिलता है।

गौतम के न्याय दर्शन को आधार मारने वाले विद्वानों का मत है कि पौराणिक गौतम और दार्शनिक गौतम अलग-अलग हैं। इसका कारण यह है कि गौतम के न्यायसूत्रों में  शून्यवाद और विज्ञानवाद का खण्डन का खंडन किया गया है।

सातवें मन्वंतर के सप्तर्षियों में शामिल

विभिन्न मन्वंतरों में अलग-अलग सप्तर्षि हुए हैं जिनका उल्लेख कृष्ण यजुर्वेद, शतपथ ब्राह्मण, बृहदारण्यक उपनिषद्, विष्णु पुराण सहित विभिन्न धर्मग्रंथों में किया गया है। सातवें मन्वंतर में जिन 7 ऋषियों का उल्लेख किया गया है उनमें महर्षि गौतम भी शामिल हैं। सातवें मन्वंतर में शामिल सप्तर्षि हैं – वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज।

महर्षि गौतम को अन्य किस नाम से जाना जाता है?

अक्षपाद – महर्षि गौतम ‘अक्षपाद’ या ‘अक्षचरण’ नाम से भी प्रसिद्ध हैं। अक्षपाद नाम के सम्बन्ध में एक रोचक लोक कथा है। कहा जाता है कि महर्षि गौतम प्रतिदिन निस्तब्ध रात्रि में एकान्त भ्रमण करते और शास्त्रचिन्तन में तल्लीन हो सूत्ररचना करते चलते थे। वे अपनी विचारधारा में इतने मग्न हो जाते थे कि आगे क्या है, इसकी उन्हें कुछ भी सुध नहीं रहती थी। एक दिन वे किसी पदार्थ का विश्लेषण करते-करते कुएँ में जा गिरे। इस प्रकार उनके चिन्तन में बाधा पड़ते देख विधाता ने उनके पाँवों में भी दृष्टिशक्ति प्रदान कर दी। तबसे वे ‘अक्षपाद’ (जिसके पाँव में आंख हो) कहलाने लगे।

मेधातिथि – गौतम के मेधातिथि नाम का उल्लेख महाभारत के शांति पर्व में मिलता है। भास के प्रतिमानाटक में भी न्यायकर्ता मेधातिथि का जिक्र किया गया है।

महर्षि गौतम का संबंध किस स्थान से है?

मिथिला – पौराणिक कथाओं के अनुसार महर्षि गौतम का आश्रम जनकपुर के पास था। वर्तमान समय में मिथिला प्रान्त में दरभंगा के निकट अहल्या-स्थान है। यहाँ आज भी लोग गौतमकुण्ड और अहल्याकुण्ड में स्नान कर अपने को पवित्र मानते हैं। भगवान श्रीराम ने जनकपुर जाने के क्रम में ही अहिल्या का उद्धार किया था। गौतम ऋषि के आश्रम में ऋषि द्वारा शाप दिए जाने के कारण पाषाण रूप में स्थिति थीं।

त्रयंबक क्षेत्र – महर्षि गौतम का संबंध त्रयंबक क्षेत्र (ब्रह्मगिरी) से भी जोड़ा जाता है। महर्षि गौतम की तपस्या से प्रसन्न होकर ही भगवान महादेव ज्योतिर्लिंग के रूप में त्रयंबकेश्वर (नासिक के पास) में स्थापित हुए थे। ऐसी मान्यता है कि उस क्षेत्र में गौतमी गंगा (गोदावरी) का अवतरण महर्षि गौतम की तपस्या के कारण ही संभव हो सका। ब्रह्मगिरी को महर्षि गौतम की तपोभूमि माना जाता है।

प्रभास क्षेत्र – वायुपुराण में यह वर्णित है कि महेश्वर ने ब्रह्मा से कहा कि 27वीं चतुर्युगी में प्रभास क्षेत्र (द्वारिका के समीप) ‘सोमशर्मा’ नाम के ब्राह्मण के रूप मे उत्पन्न होऊँगा और अक्षपाद, कणाद, उलूक और वत्स नामक मेरे चार पुत्र होंगे। अक्षपाद को महर्षि गौतम मानते हुए महर्षि गौतम का क्षेत्र प्रभास बताया जाता है।

इंद्र का छल और अहिल्या को शाप

इंद्र द्वारा अहिल्या के साथ छल किए जाने और महर्षि गौतम द्वारा अहिल्या व इंद्र को श्राप देने की कथा का वर्णन रामायण, महाभारत तथा विभिन्न पुराणों में मिलता है।

अहिल्या पुरुवंश की राजकुमारी और राजा मुग्दल की पुत्री थी। यह भी कहा जाता है कि अहिल्या भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री थी। अहिल्या अनिंद्य सुंदरी थी। महर्षि गौतम का विवाह अहिल्या या अहल्या से हुआ था।

गौतम-अहिल्या की कथा

एक बार जब महर्षि गौतम अपने आश्रम में नहीं थे तब अहल्या के रूप-सौंदर्य पर मोहित होकर देवराज इंद्र महर्षि गौतम के आश्रम में आए। इंद्र ने महर्षि गौतम का ही रूप धारण कर लिया था। अहिल्या को धोखा देकर इंद्र ने अहिल्या के साथ समागम किया। जब इस बात का पता महर्षि गौतम को लगा तो उन्होंने इंद्र और अहिल्या दोनों को श्राप दे दिया। 

गौतम ऋषि की पत्नी इन्द्र ने धोखा देकर अहल्या से समागम किया जिसका पता लगने पर गौतम ऋषि ने दोनों को शाप दे दिया। शाप के कारण इंद्र के शरीर पर उसी समय एक हजार योनि चिह्न अंकित हो गए। महर्षि गौतम ने अहिल्या को एकांत में शिला रूप में रहकर अनंत काल तक प्रभु की तपस्या करने का शाप दिया। उन्होंने यह भी कहा कि प्रभु श्रीराम के चरण स्पर्श से ही तुम्हारी मुक्ति संभव है।

अहल्या शिला बन कर अनेक काल तक तपस्या करती रही। गौतम ऋषि ने कहा था कि त्रेतायुग में श्रीरामचन्द्र के चरण स्पर्श से शाप से मुक्ति मिलेगी। त्रेतायुग में राक्षसों का वध कर राम-लक्षमण के साथ जब महर्षि विश्वामित्र जनक जी की राजधानी जा रहे थे तब रास्ते में एक सूना आश्रम दिखाकर विश्वामित्र ने उन्हें अहल्या की कहानी सुनाई। शिला पर श्री रामचन्द जी का पैर पड़ते ही एक सुन्दर स्त्री प्रत्यक्ष हुई। इस प्रकार भगवान श्रीराम ने अहिल्या को श्राप से मुक्त किया।

महर्षि गौतम की तपस्या और दक्षिण भारत में गंगा का अवतरण

विभिन्न धर्म ग्रंथों में ऐसा वर्णित है कि अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए इक्ष्वाकु वंश के राजा भगीरथ ने कठिन तपस्या की थी। गंगाजल के स्पर्श से ही भगीरथ के पितरों का उद्धार संभव था। भागीरथ की तपस्या के परिणामस्वरूप गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ। भागीरथ द्वारा पृथ्वी पर लाई गई गंगा हिमालय से निकलकर उत्तर भारत में बहती हुई गंगासागर में समुद्र में मिल जाती है।

इससे भिन्न गंगा अवतरण की कथा का वर्णन उपनिषदों में मिलता है। उपनिषदों में वर्णित कथा के अनुसार उत्तर भारत में गंगा के अवतरण से पूर्व ही दक्षिण भारत में गंगा का अवतरण हुआ था। दक्षिण भारत की गंगा को गौतमी गंगा या गोदावरी कहा जाता है। ब्रह्म पुराण में गौतमी गंगा (गोदावरी) के माहात्म्य का वर्णन करने के क्रम में महर्षि गौतम द्वारा गंगा के पृथ्वी पर आगमन की कथा कही गई है।

दक्षिण भारत के ब्रह्मगिरि क्षेत्र में महर्षि गौतम की तपोभूमि थी। महर्षि गौतम चाहते थे कि ब्रह्मगिरि क्षेत्र से गंगा प्रवाहित हो जिससे संपूर्ण क्षेत्र परम पावन और पूजनीय हो जाए। इसके किनारों पर सहस्रों तीर्थों की स्थापना हो, जिनके दर्शन मात्र से प्राणियों की संपूर्ण इच्छाएँ पूर्ण हों। 

इस कारण एक समय दक्षिण भारत में गंगा के अवतरण के लिए महर्षि गौतम ने भगवान महादेव की कठिन तपस्या की। महर्षि गौतम की तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव ने उन्हें इच्छित वर मांगने को कहा। तब महर्षि गौतम ने भगवान महादेव से कहा कि हे प्रभु, आप अपनी विशाल जटाओं में अवस्थित देवी गंगा की एक धारा ब्रह्मगिरि पर्वत पर प्रवाहित कर दें।

महर्षि गौतम की इच्छा के अनुरूप भगवान महादेव ने गंगा की एक धारा को ब्रह्मगिरी क्षेत्र में प्रवाहित कर दिया। यही धारा गौतमी गंगा या गोदावरी के नाम से जानी जाती है।

त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना

त्रयंबक क्षेत्र के ब्राह्मणों ने ईर्ष्यावश गौतम ऋषि के ऊपर गौ हत्या का पाप आरोपित कर दिया। गौ हत्या के पाप से मुक्ति के लिए महर्षि गौतम ने भगवान शंकर की आराधना की। गौतम ऋषि की आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें गौ हत्या के पाप से मुक्त कर दिया। 

जब भगवान शंकर ने छल करने वाले ब्राह्मणों को दंड देना चाहा तो गौतम ऋषि ने उनसे कहा – प्रभु उन्हें माफ कर दें क्योंकि उनकी वजह से ही मुझे आपका दर्शन प्राप्त हुआ है।

साथ ही साथ गौतम ऋषि ने भगवान शिव से यह अनुरोध किया कि आप यहीं विराजमान हो जाएं। महर्षि गौतम के अनुरोध को स्वीकार करते हुए भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में त्रयंबक क्षेत्र में विराजमान हो गए।

देश में 12 ज्योतिर्लिंग हैं जिनमें त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का स्थान आठवां है। त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग की विशेषता यह है कि यहां ब्रह्मा, विष्णु और महेश एक साथ विराजते हैं।

त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कथा और संबंधित विषयों की विस्तृत जानकारी के लिए आप निम्न आलेख देख सकते हैं –
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का रहस्य

न्याय दर्शन के प्रवर्तक महर्षि गौतम

न्याय दर्शन के आदि प्रवर्तक या संकलयिता महर्षि गौतम हैं। यह बात नहीं है कि गौतम के पहले तर्कविद्या थी ही नहीं। तर्क का अस्तित्व तो उसी समय से मानना पड़ेगा जब से मनुष्य के मस्तिष्क में बुद्धि है। उपनिषद के समय में भी नाना विषयों को लेकर तर्क-वितर्क करने की परिपाटी प्रचलित थी किन्तु इतना अवश्य मानना पड़ेगा कि गौतम के पहले तर्कविद्या सुव्यवस्थित रूप में नहीं थी। कम-से-कम गौतम के पूर्व का कोई ग्रन्थ ऐसा नहीं है जिसमें तर्क, प्रमाण इत्यादि का नियमबद्ध निरूपण हो। गौतम ने तर्क-विद्या के लिये वही किया है जो पाणिनि ने व्याकरण के लिये किया है। 

न्याय दर्शन के प्रवर्तक गौतम

गौतम के न्यायदर्शन के प्रमुख तत्व

  • न्याय (तर्क) के द्वारा वेद से प्रतिपाद्य प्रमाणों और पदार्थों का विवेचन किया जाता है।
  • न्यायदर्शन के दो उद्देश्य रहे हैं – 
  1. वैदिक दर्शन का समन्वय और समर्थन, 
  2. वेदविरोधी बौद्ध आदि नास्तिक दर्शनों का खण्डन। 
  • जिस प्रकार वैशेषिक दर्शन का प्रमुख विषय पदार्थ मीमांसा है उसी प्रकार न्याय दर्शन का प्रमुख विषय प्रमाण मीमांसा है।
  • न्याय दर्शन के अनुसार प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टांत, सिद्धांत, अवयव, तर्क, निर्णय, वाद जल्प, वितण्डा, हेत्वाभास, छल, जाति और निग्रहस्थान इन सोलह तत्त्वों के ज्ञान से निःश्रेयस अथवा मोक्ष की प्राप्ति सम्भव है। 
  • न्यायदर्शन ईश्वर के अस्तित्व को मानता है। इसके अनुसार ईश्वर एक तथा आत्मा अनेक हैं। ईश्वर सर्वज्ञ तथा आत्मा (जीव) अल्पंश है। ज्ञान आत्मा का एक गुण है। 
  • मन और विचार से पृथक न्याय शास्त्र जगत के स्वतन्त्र अस्तित्व को मानता है। 
  • सृष्टि का उपादान कारण प्रकृति तथा निमित्त कारण ईश्वर है। ईश्वर प्रकृति से जगत के विभिन्न पदार्थों की सृष्टि करता है। 
  • न्याय दर्शन एक वस्तुवादी दर्शन है जो जनसाधरण के लिए सुगम है।

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1 thought on “महर्षि गौतम कौन थे? दक्षिण भारत में गंगा अवतरण की कथा”

  1. Rishi Gautam is not mahatma budh. Mahatma budh name was not Gautam, his name was Siddhartha . Both were not in the same period then why mahatma budh name put in Rishi Gautam column. Mahatma budh was kashtriya and Rishi Gautam was Brahmin.

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