धर्म-दर्शन

मनुस्मृति क्या है?

मनुस्मृति क्या है?

धर्म के 10 लक्षण माने गए हैं तथा उनसे सम्बद्ध धर्म तत्वों की विवेचना जिन ग्रंथों में की गई है उन्हें धर्मशास्त्र के नाम से जाना जाता है। धर्म शास्त्रों को स्मृति ग्रंथ कहा जाता है। स्मृति ग्रन्थों के नाम पुरातन ऋषि परम्परा के आधार पर निश्चित हुए हैं। स्मृति ग्रन्थों का रचनाकाल दो सौ वर्ष ईसा पूर्व से लेकर कम से कम चौथी शताब्दी तक माना जाता है। धर्मशास्त्र में धर्म के विविध लक्षणों …

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धर्म का स्वरूप

धर्म का स्वरूप

मनुष्य जीवन को परिभाषित करने वाले और उसे बेहतर बनाने वाले कारक तत्व का नाम धर्म है। धर्म कोई स्थिर तत्व नहीं है और ना ही उसका स्वरूप एकांगी है। यह जीवन के सभी पहलुओं और तत्वों से जुड़ा हुआ है। इस कारण धर्म का स्वरूप अत्यंत ही व्यापक हो जाता है।  धर्म केवल आत्मा-परमात्मा का सम्बन्ध स्थापित करने वाला ही नहीं बल्कि हमारे सभी कर्म, सभी व्यवहार क्रोध, करुणा, दया, स्नेह, त्याग, तप, तितिक्षा …

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धर्म का अर्थ और परिभाषा

धर्म का अर्थ और परिभाषा

धर्म शब्द संस्कृत का एक ऐसा शब्द है जिसके अर्थ बड़े व्यापक होते हैं। इस शब्द का अनुवाद संसार की किसी भी भाषा के एक शब्द में नहीं किया जा सकता। धर्म शब्द का पर्याय है पुण्य, श्रेय, सुकृत, वृष (सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाला), न्याय, स्वभाव, आचार, उपमा, ऋतु, अहिंसा, उपनिषद्, धनु, यम, सोमप, सत्संग इत्यादि।  धर्म का स्वरूप इतना विशाल है कि उसको किसी एक व्याख्या में नहीं बांधा जा सकता है। …

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धर्म क्या है?

धर्म क्या है?

धर्म क्या है, इसे समझने और व्याख्यायित करने का प्रयास प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक के विद्वानों द्वारा किया जाता रहा है। धर्म देश, काल, जाति, समुदाय तथा समस्त प्राणधारियों के जीवन में प्रवहमान अनुशासन और नियम की धारा है। वह भौतिक तथा आध्यात्मिक उन्नतियों का मूल है। सच्चरित्रता उसकी कसौटी है। किसी से द्रोह न करना, सत्य का पालन करना, समस्त प्राणियों को यथायोग्य उनका भाग प्रदान करना, सभी के लिए हृदय …

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उपनिषदों का विवेच्य विषय

उपनिषदों का विवेच्य विषय

उपनिषद ब्रह्म प्रतिपादन के सन्दर्भ में वेद की सारगर्भ बातों का समाहार हैं। उपनिषदों में केवल पाण्डित्यपूर्ण एवं गम्भीर दार्शनिक विचारधारा मात्र ही नहीं है, अपितु वे यथार्थमय लोक के सामान्य तत्वों से भी परिचय कराते हैं, जिनका सम्बन्ध जीवन के विविध क्षेत्रों से है। किन्तु यह निश्चित है कि इन उपनिषदोंं का मूल प्रतिपाद्य दार्शनिक विचारधारा ही है। सामान्य दृष्टि से यद्यपि सभी उपनिषदोंं का अपना निजी स्वरूप है, परन्तु सूक्ष्म दृष्टि से प्राचीन …

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