क्या है अक्षय तृतीया का महत्व? जानें इस व्रत की पूजा विधि 

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वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया कहते हैं। अक्षय तृतीया को अक्षय तीज भी कहा जाता है। अक्षय का अर्थ है जिसका क्षय ना हो अर्थात जिसकी समाप्त नहीं होता हो। शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन दिये हुए दान और किये गये स्नान, जप, होम, तर्पण आदि सभी कर्मों का फल अनंत होता है। वे सभी अक्षय (नष्ट न होने वाले) होते हैं। अक्षय तृतीया के व्रत को सम्पूर्ण पापों का नाश करने वाला और सभी सुखों को प्रदान करने वाला माना गया है। स्नान, दान और परोपकार से युक्त अक्षय तृतीया के महत्व का विस्तृत वर्णन इस आलेख में किया गया है।

अक्षय तृतीया कब मनाया जाता है?

अक्षय तृतीया वसन्त ऋतु में होती है। प्रत्येक वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया का व्रत मनाया जाता है। यह तृतीया यथासम्भव चतुर्थी से युक्त होनी चाहिए, द्वितीया से युक्त नहीं। वर्ष 2023 में अक्षय तृतीया 22 अप्रैल को है।

हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया का विशेष महत्व है क्योंकि कई प्रमुख घटनाओं को इस तिथि के साथ जोड़ा जाता है। 

  • भगवान विष्णु के 10 अवतारों में शामिल छठे अवतार भगवान परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ था। इसलिए इस दिन परशुराम जयन्ती भी मनायी जाती है। 

परशुराम अवतार की कथाभगवान परशुराम से जुड़ी कथा की विस्तृत जानकारी के लिए आप निम्न आलेख देख सकते हैं –
भगवान विष्णु के परशुराम अवतार की कथा

  • भगवान विष्णु के 24 अवतारों में शामिल नर-नारायण और हयग्रीव का अवतरण भी अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ था।
  • ब्रह्मा के पुत्र अक्षय कुमार का प्राकट्य भी इसी दिन माना जाता है।
  • अक्षय तृतीया के दिन ही सतयुग का आरम्भ हुआ था, इसलिए इसे कृतयुगादि तृतीया भी कहते हैं। 
  • यह माना जाता है कि महाभारत के युद्ध की समाप्ति इसी दिन हुई थी।
  • द्वापर युग की समाप्ति और कलियुग के प्रारंभ होने की तिथि भी अक्षय तृतीया ही मानी जाती है।
  • आदित्य पुराण के अनुसार हिमालय से गंगा का निर्गमन ज्येष्ठ शुक्ल दशमी (गंगा दशहरा) को हुआ था तथा पृथ्वी पर गंगा का अवतरण वैशाख शुक्ल तृतीया अर्थात अक्षय तृतीया के दिन हुआ था।

अक्षय तृतीया का महत्व

इस तिथि की पूज्यता, पुण्यता, पवित्रता एवं धार्मिकता का यशोगान स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण ने भी किया है। भगवान श्रीकृष्ण के शब्दों में यह वैशाख शुक्ल तृतीया तिथि महती पुण्यदायिनी एवं धार्मिक व सांस्कृतिक दृष्टि से गौरवशालिनी, पापमोचिनी और स्वर्गप्रदायिनी है। इस तिथि के माहात्म्य के श्रवण के बाद अन्य कोई माहात्म्य श्रवण की आवश्यकता नहीं रह जाती है। अक्षय तृतीया के महत्व से जुड़ी कथा भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं युधिष्ठिर को सुनाई थी।

अक्षय तृतीया की कथा

अक्षय तृतीया से सम्बन्धित निम्नलिखित कथा भविष्य पुराण में कही गयी है – 

पूर्वकाल में प्रिय, सत्यवादी, देवता और ब्राह्मणों का पूजक धर्म नामक एक धर्मात्मा वणिक रहता था। उसने एक दिन कथा प्रसंग में सुना कि यदि बैशाख शुक्ल की तृतीया रोहिणी नक्षत्र एवं बुधवार से युक्त हो तो उस दिन का दिया हुआ दान अक्षय हो जाता है। 

यह सुनकर उसने अक्षय तृतीया के दिन गंगा में अपने पितरों का तर्पण किया और घर आकर जल और अन्न से पूर्ण घट, सत्तू, दही, चना, गुड़, ईख, खाँड़ और सुपर्ण श्रद्धापूर्वक ब्राह्मणों को दान दिया। कुटुम्ब में आसक्त रहने वाली उसकी पत्नी उसे बार-बार रोकती थी, किन्तु वह अक्षय तृतीया को अवश्य ही दान करता था। कुछ समय के बाद उसका देहान्त हो गया।  

अगले जन्म में उसका जन्म कुशावती (द्वारका) नगरी में हुआ और वह वहाँ का राजा बना। दान के प्रभाव से उसके एश्वर्य और धन की कोई सीमा नहीं थी। उसने पुनः बड़ी-बड़ी दक्षिणा वाले यज्ञ किये। वह ब्राह्मणों को गौ, भूमि, सुवर्ण आदि देता रहता और दीन-दुखियों को भी संतुष्ट करता, किन्तु उसके धन का कभी ह्रास नहीं होता। वह उसके पूर्व जन्म में अक्षय तृतीया के दिन दान देने का फल था।

अक्षय तृतीया पूजा विधि

अक्षय तृतीया का महत्व एवं पूजा विधि

  • इस दिन गंगा स्नान का विशेष माहात्म्य है। गंगा जल में स्नान करके मनुष्य सब पापों से मुक्ति पाता है। 
  • इस तिथि को स्नानोपरांत लक्ष्मी-नारायण का दर्शन करना चाहिए। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का पूजन विशेष फलदायी माना गया है।
  • इस दिन भगवान कृष्ण को चन्दन चढ़ाने का विशेष महत्व है। अक्षय तृतीया पर चन्दन चढ़ाना वसन्त की समाप्ति और ग्रीष्म ऋतु के आरम्भ का द्योतक है। 
  • यवदान और यवों (जौ) से विष्णु पूजा का विधान है।
  • मत्स्य पुराण के अनुसार इस दिन विष्णु की पूजा अक्षत से की जानी चाहिए। विष्णु अक्षत-पूजा से विशेष प्रसन्न होते हैं और पूजा करने वाले की संतति भी अक्षय बनी रहती है। (सामान्यतया अक्षत के द्वारा विष्णुपूजन निषिद्ध है, पर केवल इस दिन अक्षत से उनकी पूजा की जाती है। अन्यत्र अक्षत के स्थान पर सफेद तिल का विधान है।) 
  • इस व्रत के विधान के अनुसार रात को अन्न, शहद, ऋतु में उपयुक्त सामग्री, अन्न, गौ, भूमि, सुवर्ण, और वस्त्र जो पदार्थ अपने को प्रिय और उत्तम लगे, उन्हें ब्राह्मण को देना चाहिए।
  • देवी पुराण में लिखा है कि बैशाख की तृतीया और रोहिणी नक्षत्र में जल के घड़े को पूजकर दान करने से शिव-लोक प्राप्त होता है। 
  • जल के घड़े का दान गरमी के आगमन और दूसरों को राहत पहुंचाने की भावना का प्रतिबिंबन करता है।
  • इस दिन भगवान् परशुराम जयन्ती भी होती है, अतः मन्दिरों में जयन्ती में होने वाले पंचामृतस्नानादि भी किये जाते हैं। 
  • इस तिथि को पितृ तर्पण का बड़ा महात्म है। 

अक्षय तृतीया के दिन सोना क्यों खरीदते हैं?

अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की पूजा का विशेष महत्व है। यह मान्यता है कि पीले रंग की वस्तुओं द्वारा पूजन से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। साथ ही साथ सोना, चांदी इत्यादि बहुमूल्य धातुओं को लक्ष्मी जी का प्रतीक माना जाता है। इन बहुमूल्य वस्तुओं को खरीदने का अर्थ है लक्ष्मी जी को अपने घर लाना। इसलिए अक्षय तृतीया के दिन सोना, चांदी, रत्न और शुभ वस्तुओं को खरीदना मंगलकारी माना गया है। 

अक्षय तृतीया में दान का महत्व

अक्षय तृतीया स्नान और दान का पर्व है। दान के विषय में कहा जा सकता है कि इस उत्सव में जिन वस्तुओं का दान किया जाता है वे दान लेने वाले को और दान देने वाले को लाभप्रद हो सकती हैं। इस समय ग्रीष्म ऋतु के सब अनाज तैयार होकर घर में आ जाते हैं। भारत की प्राचीन तथा धार्मिक प्रथा के अनुसार पहले दान और पीछे भोजन का नियम है | तदनुसार कृषिप्रधान भारतवर्ष के लिए यह ऋतु दान करने के निमित्त प्रशस्ततर है। शुक्ल पक्ष की जया तिथि (तृतीया) को सभी मांगलिक कार्यों के लिए शुभ माना जाता है। दूसरे तृतीया गौरी का दिन है। इस कारण ही अक्षय तृतीया के दिन दान का विशेष महत्व है।

उपसंहार

भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहां व्रतों एवं त्योहारों का संबंध कृषि संबंधी घटनाक्रमों से होता है। अक्षय तृतीया का पर्व भी कृषि स्थितियों में परिवर्तन से जुड़ा हुआ है। यह पर्व तब मनाया जाता है जब वैशाख के महीने में फसल कट कर घर आ जाती है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि अक्षय तृतीया का पर्व एवं व्रत कल्याणकारी कार्य करने की प्रेरणा देने वाला व्रत है। इसमें स्नान आदि का विशेष महत्व है जो मानव जीवन में स्वच्छता के महत्व को इंगित करता है। इसी प्रकार इस व्रत में दान का भी विशेष महत्व है। और दान भी उन वस्तुओं का करने को प्रेरित किया गया है जो ऋतु के अनुकूल जीवन के लिए उपयोगी हैं। अक्षय तृतीया का व्रत मौसम के अनुकूल अपने कार्य व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए भी प्रेरित करता है।

अक्षय तृतीया का व्रत अपने खाने-पीने और आराम के साथ ही अपने आस-पास के लोगों का भी ख्याल रखने के लिए प्रेरित करता है। जो बात हम अपने लिए हितकर समझते हैं, उसका लाभ अन्य व्यक्तियों को भी देना चाहिए। इसी भावना से अक्षय तृतीया के व्रत के दिन अनेक व्यक्ति गर्मियों के मौसम में यात्रियों को पानी पिलाने के लिए प्याऊ बना देते हैं। कुछ लोग सत्तू, चना-चबैना आदि से गरीबों की सहायता करते हैं।

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