शालिग्राम पत्थर

क्या है शालिग्राम पत्थर की विशेषता?

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अयोध्या में भगवान श्री राम के भव्य मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। इस मंदिर में स्थापित होने वाली भगवान श्री राम और माता सीता की मूर्ति का निर्माण शालिग्राम पत्थर से किया जाएगा। शालिग्राम पत्थर को हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है और इसे भगवान विष्णु के प्रतिनिधित्व के रूप में पूजा जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने अपना भौतिक रूप छोड़ दिया था और शालिग्राम पत्थर में परिवर्तित हो गए थे। शालिग्राम पत्थर के बारे में माना जाता है कि इसमें दिव्य गुण है और इसे अपने पास रखने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। 

शालिग्राम पत्थर आमतौर पर नेपाल में गंडकी नदी में पाए जाते हैं। भगवान श्री राम और माता सीता की मूर्ति के निर्माण के लिए भी शालिग्राम पत्थर नेपाल की गंडकी नदी से ही लाए जा रहे हैं। वहां से शालिग्राम के दो विशाल पत्थरों को लाया जा रहा है जिसमें एक का वजन 26 और दूसरे का वजन 14 टन है।

काला शालिग्राम पत्थर
काला शालिग्राम पत्थर

शालिग्राम पत्थर एक जीवाश्म पत्थर है जो सामान्यतः काला एवं गोलाकार होता है। नदी जल में पाए जाने के कारण और जल के घर्षण की वजह से इसकी ऊपरी सतह चिकनी हो जाती है। काले रंग के अतिरिक्त शालिग्राम पत्थर लाल, नीले, पीले एवं हरे रंग में भी मिलता है। पीली, नीली एवं काली किस्मों को अधिक पवित्र माना जाता है।

शालिग्राम से जुड़ी पौराणिक कथा 

(क्यों तुलसी ने दिया विष्णु को पत्थर बनने का शाप)

दक्ष प्रजापति की 13 कन्याओं का विवाह महर्षि कश्यप से हुआ था। महर्षि कश्यप और दक्ष प्रजापति की 13 कन्याओं में से एक दनु से विप्रचित नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। दनु से ही दैत्य कुल की उत्पत्ति हुई। विप्रचित से दंभ नामक पुत्र पैदा हुआ। यह भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था। भगवान विष्णु के आशीर्वाद से इसे शंखचूड़ नामक अत्यंत बलशाली पुत्र हुआ। 

दैत्यों का राजा शंखचूड़ भी धार्मिक प्रवृत्ति का था। शंखचूड़ में भगवान ब्रह्मा की कठिन तपस्या की और यह वरदान प्राप्त किया कि उसे कोई जीत न सके। ब्रह्मा जी के आशीर्वाद से उसका विवाह तुलसी के साथ हुआ। इसके पश्चात उसने अपने पराक्रम से समस्त देवलोक को जीत लिया। 

जब शंखचूड़ ने समस्त देवलोक को जीत लिया तो अपने देवलोक को वापस पाने के लिए देवतागण भगवान शंकर के पास गए और उनसे विनती की कि शंखचूड़ से हमें मुक्ति दिलाकर हमारा उद्धार करें। भगवान शंकर ने कहा – असुरराज शंखचूड़ भले ही देवताओं का शत्रु एवं प्रबल विरोधी हो गया है परंतु वह अभी भी धार्मिक है और सच्चे हृदय से धर्म का पालन करता है। लेकिन आप लोग मेरे पास आए हैं इसलिए मैं आपकी सहायता करने का वचन देता हूं। मैं शंखचूड़ का संहार कर आपको आपका राज्य वापस दिलाऊंगा। 

इसके पश्चात भगवान शंकर ने देवताओं को शंखचूड़ से मुक्ति दिलाने के लिए शंखचूड़ के साथ अनेकों वर्षों तक युद्ध किया। शंखचूड़ की पत्नी तुलसी के सतीत्व व्रत के कारण उसे हराना भगवान शिव के लिए मुश्किल हो रहा था। तब भगवान विष्णु शंखचूड़ का रूप धारण कर तुलसी के पास गए और तुलसी से कहा कि ब्रह्मा जी के द्वारा संधि कराए जाने के कारण शिव के साथ युद्ध समाप्त हो गया है। 

इसके पश्चात भगवान विष्णु तुलसी के साथ रमण करने लगे। बाद में जब तुलसी को इस बात की जानकारी हुई तो वह आत्मग्लानि से भर उठी। उसने क्रोधित होकर भगवान विष्णु को शाप दिया कि तुम पूजा के योग्य नहीं हो। तुम्हारे मन में दया भाव नाम की कोई वस्तु नहीं है। तुमने मेरे सतीत्व को भंग किया है और मेरे पति शंखचूड़ को मार डाला है, इसलिए मैं तुम्हें शाप देती हूं कि तुम आज से, अभी से पत्थर के हो जाओगे।

देवी तुलसी का शाप सुनकर भगवान विष्णु अत्यंत दुखी हुए और वे भगवान शिव का स्मरण करने लगे। तब भगवान शिव वहां प्रकट हुए और उन्होंने देवी तुलसी को समझाते हुए कहा – यह पूर्व निश्चित था। शंखचूड़ को मिले शाप के कारण उसका जन्म दानव कुल में हुआ था और इसी कारण उसकी मृत्यु मेरे हाथों हुई है। 

उन्होंने तुलसी से कहा – मेरे आशीर्वाद के फलस्वरूप तुम्हें दिव्य देह की प्राप्ति होगी और तुम्हारी श्रीहरि विष्णु में विशेष प्रीति होगी, इसलिए इस शरीर का त्याग कर दो। जब तुम नया शरीर धारण करोगी तो तुम गंडकी नाम की नदी होगी और सभी के द्वारा पूजित होने के कारण प्रधान रूपा तुलसी के रूप में विख्यात होगी। गंडकी के तट पर सदा भगवान विष्णु भी पाषाण के रूप में स्थित होंगे। उस शिला को इस जगत में शालिग्राम के नाम से प्रसिद्ध मिलेगी। 

तत्पश्चात देवी तुलसी ने अपने शरीर का त्याग कर दिया और गंडकी नदी बन गई। तब भगवान विष्णु भी उस नदी के तट पर शालिग्राम के रूप में निवास करने लगे।

आठ पवित्र पत्थर

शालिग्राम पत्थर को हिंदू धर्म के आठ पवित्र पत्थरों में से एक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि उनकी पूजा करने वाले भक्त के लिए सौभाग्य, समृद्धि और आशीर्वाद लाते हैं, और अक्सर उन्हें पूजा की वेदी में रखा जाता है या घर में पूजा की जाती है।

हिंदू धर्म में आठ पवित्र पत्थर हैं जिन्हें अष्टमंगला या अष्टमंगल्य के रूप में जाना जाता है, जिनकी पूजा करने वाले भक्त को आशीर्वाद और समृद्धि प्राप्त होती है। ये पवित्र पत्थर हैं :

  • हीरा (Diamond)
  • पन्ना (Emerald)
  • पीला नीलम या पुखराज (Yellow Sapphire)
  • रूबी या माणिक (Ruby)
  • गोमेद (Hessonite)
  • लहसुनिया (Cat’s Eye)
  • मोती (Pearl)
  • शालिग्राम (Saligram)

इनमें से प्रत्येक पत्थर एक विशिष्ट ग्रह देवता से जुड़ा हुआ है और माना जाता है कि इसे पहनने या धारण करने वाले व्यक्ति को संबद्ध देवता लाभ और सुरक्षा प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए, हीरा शुक्र से जुड़ा है और माना जाता है कि यह प्यार, सफलता और धन लाता है, जबकि मोती चंद्रमा से जुड़ा होता है और माना जाता है कि यह शांति और मानसिक स्पष्टता लाता है।

हिंदू ज्योतिष में, इन आठ पवित्र पत्थरों के उपयोग को रत्न ज्योतिष के रूप में जाना जाता है और यह इस विश्वास पर आधारित है कि पत्थर किसी व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों की ऊर्जा को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं। कौन सा रत्न धारण करना है इसका चुनाव किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति पर आधारित होता है और यह एक योग्य ज्योतिषी द्वारा निर्धारित किया जाता है।

ज्योतिषीय महत्व के कारण इन्हें किसी प्रतिष्ठित स्रोत से प्राप्त किया जाता है और उचित प्रक्रियाओं के अनुसार पहना या पूजा जाता है। ऐसा माना जाता है कि उचित पवित्र पत्थर पहनने से व्यक्ति के जीवन में संतुलन और सद्भाव आता है, साथ ही कुंडली में किसी भी हानिकारक ग्रहों के नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में कमजोर या अशुभ शुक्र है, तो उसे अपनी ऊर्जा में सुधार करने और अपने जीवन में प्यार और वित्तीय सफलता लाने के लिए हीरा पहनने की सलाह दी जा सकती है।

शालिग्राम पत्थर के प्रकार 

शालिग्राम पत्थर विभिन्न आकार, संरचना और रंगों में आते हैं, जिनमें से प्रत्येक भगवान विष्णु के एक अलग पहलू का प्रतिनिधित्व करता है। शालिग्राम पत्थरों के कुछ सबसे सामान्य रूपों में शामिल हैं :

श्री शालिग्राम : यह शालिग्राम का सबसे सामान्य रूप है और आमतौर पर काले या गहरे भूरे रंग का होता है। यह ब्रह्मांड के निर्वाहक के रूप में भगवान विष्णु के विभिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करता है।

पद्म शालिग्राम : शालिग्राम के इस रूप की विशेषता इसके लाल रंग और इसकी सतह पर कमल के आकार की उपस्थिति है। यह ब्रह्मांड के निर्माता के रूप में भगवान विष्णु के विभिन्न तत्वों का निदर्शन कराता है।

मुक्ता शालिग्राम : शालिग्राम के इस रूप की विशेषता इसके सफेद रंग और इसकी सतह पर कई छोटे छिद्रों की उपस्थिति है। यह भगवान विष्णु को उनके पहलू में आत्माओं के मुक्तिदाता के रूप में दर्शाता है।

गौरी शंकर शालिग्राम : शालिग्राम के इस रूप की विशेषता इसकी अनूठी आकृति है, जो एक साथ जुड़े हुए दो पत्थरों के समान है। यह भगवान शिव और देवी पार्वती के मिलन के रूप में भगवान विष्णु का प्रतिनिधित्व करता है।

शालिग्राम पत्थर की विशेषता 

शालिग्राम को हिंदू धर्म में एक अत्यधिक पवित्र वस्तु माना जाता है और भगवान विष्णु के भक्तों के लिए इसका बहुत महत्व है। हिंदू परंपरा में, यह माना जाता है कि शालिग्राम पत्थर रखने और नियमित रूप से पूजा करने से व्यक्ति और उनके परिवार को शांति, समृद्धि और आशीर्वाद मिल सकता है। हालांकि, एक सही स्रोत से शालिग्राम रत्न प्राप्त करना और इसके पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए उचित पूजा प्रक्रियाओं का पालन करना महत्वपूर्ण है। हिंदू धर्मावलंबियों के लिए शालिग्राम की विशिष्टता का अपना महत्व है। 

भगवान विष्णु के प्रतिनिधि के रूप में : शालिग्राम को भगवान विष्णु का भौतिक रूप माना जाता है और भक्तों द्वारा इसकी पूजा की जाती है। शालिग्राम रत्न को अपने जीवन में भगवान विष्णु की कृपा और उपस्थिति लाने के तरीके के रूप में देखा जाता है।

आध्यात्मिक लाभ : माना जाता है कि शालिग्राम की पूजा करने से व्यक्ति को शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक लाभ मिलता है, साथ ही उनके परिवार को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। यह भी माना जाता है कि यह जीवन में कठिनाइयों और बाधाओं को दूर करने और सौभाग्य लाने में मदद करता है।

आयुर्वेदिक गुण : इसके आध्यात्मिक महत्व के अलावा, उपचारात्मक गुणों के कारण भी शालिग्राम की महत्ता है। विभिन्न उपचारों के लिए आयुर्वेदिक दवाओं में इसका उपयोग किया जाता है।

हिंदू परंपराओं से जुड़ाव : शालिग्राम हिंदू परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और हिंदू धर्म के इतिहास और पौराणिक कथाओं से निकटता से जुड़ा हुआ है। शालिग्राम की पूजा को हिंदू परंपरा से जोड़ने और सांस्कृतिक विरासत को बनाए रखने के तरीके के रूप में देखा जाता है।

भगवान विष्णु के प्रतिनिधित्व और आध्यात्मिक और चिकित्सीय लाभों के स्रोत के रूप में शालिग्राम हिंदू धर्म में बहुत महत्व रखता है। शालिग्राम की पूजा करना हिंदू परंपरा से जुड़ने और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने का एक तरीका माना जाता है।

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2 thoughts on “क्या है शालिग्राम पत्थर की विशेषता?”

  1. प्रशांत कुमार

    जानकारी अच्छी लगी। भगवान शालिग्राम के बारे में कई नई जानकारी प्राप्त हुई।
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।

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