विष्णु के मत्स्य अवतार की कथा

विष्णु के मत्स्य अवतार की कथा : हयग्रीव का वध और वेदों की रक्षा

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भगवान विष्णु के 10 प्रमुख अवतारों में मत्स्य अवतार का स्थान प्रथम है। मत्स्य अर्थात मछली का रूप धारण कर भगवान विष्णु ने दैत्यों का संहार किया और पृथ्वी को प्रलय से बचाया। श्रीमद्भागवत में कहा गया है –

प्रलयपयसि धातुः सुप्तशक्तेर्मुखेभ्यः 

श्रुतिगणमपनीतं प्रत्युपादत्त हत्वा। 

दितिजमकथयद् यो ब्रह्म सत्यव्रतानां

तमहमखिलहेतुं जिह्ममीनं नतोस्मी।

अर्थात प्रलय कालीन समुद्र में जब ब्रह्मा जी सो गए थे, उनकी सृष्टि-शक्ति लुप्त हो चुकी थी, उस समय उनके मुख से निकली श्रुतियों को चुराकर हयग्रीव दैत्य पाताल में ले गया था। भगवान विष्णु ने उसे मारकर वे श्रुतियां ब्रह्मा जी को लौटा दीं एवं राजर्षि सत्यव्रत तथा सप्तर्षियों को ब्रह्म तत्व का उपदेश दिया। उन समस्त जगत के परम कारण लीला मत भगवान को मैं नमस्कार करता हूं। 

विष्णु के मत्स्य अवतार की कथा

सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी के द्वारा वेदों का निर्माण किया गया था। एक बार जब ब्रह्मा जी सो रहे थे तो हयग्रीव नामक दैत्य ने उन वेदों को चुरा लिया और समुद्र में जाकर छुपा दिया। इससे चारों ओर अधर्म और पाप बढ़ गया। हयग्रीव को समाप्त करने और वेदों को पुनः प्राप्त करने के उद्देश्य से भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया। 

कृतयुग के आरंभ में सत्यव्रत मनु नाम से विख्यात एक राजर्षि थे। राजा सत्यव्रत क्षमाशील, समस्त गुणों से संपन्न और सुख-दुख को एक समान समझने वाले वीर पुरुष थे। इन्होंने अपने पुत्र को राज्य का भार सौंप दिया और स्वयं तपस्या करने के लिए मलय पर्वत के शिखर पर चले गए। वहां उन्होंने ब्रह्मा जी की कई वर्षों तक कठिन तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उनसे कहा कि आप इच्छित वर मांगे। तब सत्यव्रत ने उन्हें प्रणाम कर कहा – हे देव, मैं आपसे केवल एक ही उत्तम वर प्राप्त करना चाहता हूं, वह यह है कि प्रलय काल उपस्थित होने पर मैं चराचर समस्त भूत समुदाय की रक्षा करने में समर्थ हो सकूं। ब्रह्मा जी ने उन्हें ऐसा करने का आशीर्वाद दिया।

धर्म ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार एक दिन जब सत्यव्रत मनु नदी तट पर पूजन और तर्पण कर रहे थे तभी उनकी अंजलि में एक सुनहरी मछली आ गई। मछली ने सत्यव्रत से कहा – आप मुझे अपने साथ ले चलें अन्यथा यहां बड़ी मछलियां या अन्य जीव मुझे खा जाएंगे। शास्त्रों में लिखा है कि डरे हुए का डर छुड़ाना, निर्बल की सहायता करना और विपत्ति में फंसे हुए जीव को धैर्य देकर उसका हाथ पकड़ना यह सब महापुण्य के काम हैं। मछली के ऐसा कहने पर सत्यव्रत मनु को आश्चर्य हुआ परंतु वे उसे अपने कमंडल में रखकर राजमहल लेते आए। 

राजमहल तक आते-आते मछली का आकार बढ़ कर कमंडल के बराबर हो गया। तब सत्यव्रत ने राजमहल के अंदर मछली को एक अन्य जल पात्र में रख दिया। अगले दिन मछली का आकार उस जल पात्र के बराबर हो गया। तब सत्यव्रत ने मछली को एक तालाब के अंदर डाल दिया, लेकिन अगले दिन मछली का आकार उस तालाब के बराबर हो गया। 

मछली के इस अद्भुत विकास को देखकर सत्यव्रत को यह समझ आ गया कि यह कोई साधारण मछली नहीं है। उन्होंने मछली से कहा – आप कोई साधारण मछली नहीं हैं, कृपा कर आप अपना असली परिचय दें। तब भगवान विष्णु मछली से बाहर निकल कर अपने वास्तविक रूप में आए और मछली के रूप में अवतार लेने के अपने उद्देश्य के बारे में बताया। 

उन्होंने कहा – मैं वेदों को चुरा लेने वाले दैत्य हयग्रीव का वध करने आया हूं जिसने समुद्र में वेदों को छुपा दिया है। भगवान विष्णु ने बताया कि 7 दिन बाद जलप्रलय आने वाला है और सृष्टि की रक्षा के लिए मैंने यह अवतार धारण किया है। सातवें दिन घनघोर वर्षा होगी, समुद्र का जल स्तर बढ़ जाएगा, चारों तरफ जल ही जल होगा। 

भगवान विष्णु ने सत्यव्रत से कहा कि आप एक बड़ी सी नौका तैयार कर लें एवं प्रलय के दिन उसमें सप्तऋषियों, औषधियों, बीजों एवं प्राणियों के सूक्ष्म शरीर को लेकर बैठ जाना। प्रलय के समय मैं उस नाव के पास आऊंगा। आप अपनी नाव मेरी सूंड से बांध देना। 

सत्यव्रत ने ऐसा ही किया। प्रलय के दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य के रूप में समुद्र के भीतर स्थापित हयग्रीव के राज्य में प्रवेश किया और हयग्रीव सहित अन्य दैत्यों का वध कर दिया तथा वेदों को अपने मुंह में दबाकर बाहर आ गए तथा मनु द्वारा तैयार नौका को खींच कर इस संसार को जलप्रलय से बचाया। प्रलय समाप्त होने के बाद भगवान विष्णु ने वेदों को ब्रह्मा जी को वापस सौंप दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार धारण कर पृथ्वी को प्रलय से बचाया और वेदों की रक्षा की।

हयग्रीव 

ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचना के क्रम में सप्त ऋषियों की भी उत्पत्ति की थी। ब्रह्माजी के मानस पुत्र सप्तर्षियों में से एक ऋषि महर्षि मरीचि थे। महर्षि मरीचि के पुत्र महर्षि कश्यप थे। महर्षि कश्यप का विवाह दक्ष प्रजापति की 13 कन्याओं से हुआ था। उन्हीं में से एक कन्या दनु थी। महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी दनु का पुत्र हयग्रीव था। हिरण्याक्ष और हिरणकशिपु हयग्रीव का ही छोटा भाई था जिसकी माता दिति थी। इसी की बहन होलिका थी। हिरण्याक्ष के वध के लिए भगवान विष्णु ने वराह अवतार धारण किया था और हिरणकशिपु के वध के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लिया था।

भगवान विष्णु के दशावतार से जुड़े अन्य अवतारों का वर्णन निम्न आलेख में किया गया है –
भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की कथा
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भगवान विष्णु के परशुराम अवतार की कथा
भगवान विष्णु का बुद्ध अवतार। क्या गौतम बुद्ध और भगवान बुद्ध एक ही हैं?
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