हरतालिका तीज व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। हरतालिका तीज व्रत विशेष रूप से स्त्रियों का व्रत है। हरतालिका तीज के दिन भगवान शंकर और पार्वती का विधि अनुरूप पार्थिव पूजन किया जाता है।
हरतालिका शब्द हरत और आलिका शब्द से मिलकर बना है। हरत का अर्थ है हरण करना और आलिका का अर्थ है सखी। क्योंकि पार्वती जी को उनकी सखी के द्वारा हरण करके वन में ले जाया गया था जहां उन्होंने अपने व्रत और पूजन के द्वारा शिवजी को प्रसन्न कर विवाह के लिए राजी किया था। इस कारण इस व्रत को हरितालिका व्रत कहा जाता है।
तीज के प्रकार
भारत के भिन्न-भिन्न हिस्सों में अलग-अलग समय में तीज मनाया जाता है। तीज का अर्थ होता है तीसरा या तृतीया। तीज का व्रत मानसून के मौसम में किया जाता है। भारत में मुख्य रूप से तीन प्रकार के तीज को मनाने का प्रचलन है –
हरियाली तीज
- हरियाली तीज सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है।
- हरियाली तीज को श्रावणी तीज, छोटी तीज, मधुश्रवा भी कहा जाता है।
- हरियाली तीज पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में मुख्यतः मनाया जाता है।
- इसे हरियाली तीज इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसी दिन कुमारी कन्याएं हरी दूब लेकर घर-घर जाती हैं और गोधन को, गौवों को जीवन प्रदान करने वाली दूब सौभाग्य और सदाशयता के प्रतीक के रूप में पहुंचाकर प्रेम और सौहार्द के वचनों को सुदृढ़ करती हैं।
- हरियाली तीज के दिन भगवान शिव और पार्वती की पूजा की जाती है।
- इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं।
- इस दिन महिलाएं हरी चूड़ियां और हरे वस्त्र धारण करती हैं एवं हाथों पर मेहंदी लगाती हैं।
- यह व्रत पति की लंबी आयु एवं परिवार की सुख-समृद्धि की कामना से किया जाता है।
- हरियाली तीज के बाद से ही हिंदुओं के पर्व-त्योहारों की शुरुआत होती है जैसे – रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, दशहरा, दीपावली इत्यादि।
कजरी तीज
- कजरी तीज भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है।
- कजरी तीज को बूढ़ी तीज, कजली तीज और सातुड़ी तीज भी कहा जाता है।
- कजरी तीज उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार में मुख्यतः मनाया जाता है।
- कजरी तीज पति के दीर्घायु होने की कामना से किया जाता है।
- इसके लिए माता पार्वती से प्रार्थना की जाती है।
- कजरी तीज के दिन महिलाएं नए वस्त्र धारण कर और सज-संवरकर व्रत करती हैं।
- इस व्रत को महिलाओं के साथ-साथ कुंवारी लड़कियां भी करती हैं ताकि उन्हें अच्छा पति मिल सके।
हरतालिका तीज
- हरतालिका तीज भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है।
- हरतालिका तीज को बड़ी तीज भी कहा जाता है।
- हरतालिका तीज मुख्यतः उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में मनाया जाता है।
- हरतालिका तीज में भगवान शिव और पार्वती की पूजा की जाती है एवं अपने सुहाग की समृद्धि के लिए प्रार्थना की जाती है।
- इसमें महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और अगले दिन सुबह पूजा कर पारण करती हैं।
हरतालिका तीज व्रत की कथा
हरतालिका तीज व्रत की कथा का वर्णन भविष्योत्तर पुराण में मिलता है। इस व्रत की कथा भगवान शिव जी ने स्वयं पार्वती को सुनाई थी। कथा इस प्रकार है –
उत्तर दिशा में हिमालय नाम का पर्वत है। पार्वती जी हिमालय की पुत्री हैं। पार्वती जी ने भगवान शंकर को अपने पति के रूप में मान लिया था। शिव जी को पति के रूप में पाने के लिए पार्वती जी ने बड़ी कठिन तपस्या की थी। बारह वर्ष तक अर्धमुखी (उल्टे) रखकर सिर्फ वायु का सेवन किया। चौबीस वर्ष तक सूखे पत्ते खाकर रहीं। माघ के महीने में जल में वास किया। वैशाख के महीने में पंचाग्नि तप किया। सावन के महीने में निराहार रहकर बाहर वास किया। पार्वती जी को इस प्रकार व्रत करते देखकर उनके पिता हिमालय को बड़ा दुख होता था।
उन्हीं दिनों नारद मुनि हिमालय के पास आए। हिमालय ने उनका स्वागत-सत्कार एवं विधिवत पूजन किया तथा उनसे प्रार्थना की – हे मुनिवर! आप अपने आने का कारण बताएं। मैं किस प्रकार आपकी सेवा कर सकता हूं।
तब नारद जी ने कहा – हे हिमालय! मुझे भगवान विष्णु ने आपके पास भेजा है। वे आपकी कन्या से विवाह करना चाहते हैं।
यह सुनकर हिमालय प्रसन्न हुए और उन्होंने नम्रतापूर्वक उत्तर दिया – यदि भगवान विष्णु मेरी कन्या के साथ विवाह करना चाहते हैं तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है।
यह सुनकर नारद जी भगवान विष्णु के पास गए और उनसे कहा – मैंने हिमालय की पुत्री पार्वती के साथ आपके विवाह का निश्चय किया है। आशा है आप उसे स्वीकार करेंगे।
नारद जी के चले जाने के बाद हिमालय ने भगवान विष्णु के प्रस्ताव की जानकारी पार्वती को दी और कहा – हे पुत्री! मैंने भगवान विष्णु के साथ तुम्हारा विवाह सुनिश्चित किया है।
पार्वती भगवान शिव को अपने पति के रूप में मान चुकी थीं, इसलिए पिता के इस प्रस्ताव से वह बहुत आहत हुईं। पिता के सामने तो उन्होंने कुछ नहीं कहा परंतु उनके जाते ही दुखी होकर विलाप करने लगीं।
पार्वती जी की व्याकुलता को और उनके विलाप को देखकर एक सखी ने कहा – आप इतनी दुखी क्यों हैं? आप अपने दुख का कारण मुझे बताएं, मैं उसे दूर करने का कुछ उपाय करूंगी।
तब पार्वती जी बोलीं – मेरे पिताजी ने मेरा विवाह विष्णु जी के साथ तय कर दिया है परंतु मैं शिव जी के साथ विवाह करना चाहती हूं। मुझे कोई उपाय नहीं सूझ रहा है इसलिए मैं चाहती हूं कि मैं अपने प्राण त्याग दूं। तुम्हारे पास यदि कोई उपाय है तो बताओ।
सखी ने कहा – प्राण त्यागने की कोई आवश्यकता नहीं है। मैं आपको ऐसे गहन वन में ले चलूंगी जहां आपके होने की जानकारी आपके पिता को नहीं चल पाएगी।
इसके पश्चात सखी पार्वती जी को लेकर वन में चली गई।
इधर हिमालय पार्वती जी को अपने घर में ना पाकर इधर-उधर खोजने लगे। जब पार्वती जी नहीं मिलीं तो हिमालय की चिंता बढ़ गई। वह सोचने लगे कि मैंने तो नारद जी को वचन दे दिया है और जब विष्णु जी बारात लेकर आएंगे तो मैं उन्हें क्या उत्तर दूंगा। इस चिंता और पार्वती जी के न होने की व्याकुलता में हिमालय मूर्छित होकर गिर पड़े।
हिमालय की यह अवस्था देखकर अन्य सभी पर्वतों ने इसका कारण जानना चाहा। तब उन्होंने बताया कि उनकी पुत्री पार्वती कहीं मिल नहीं रही है और उन्होंने भगवान विष्णु से पार्वती का विवाह सुनिश्चित कर दिया है। हिमालय की बात जानकर सभी पर्वत पार्वती जी को खोजने इधर-उधर निकल पड़े।
वहीं पार्वती जी सघन वन की एक गुफा में नदी किनारे शिव जी का भजन-पूजन करने लगीं। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया अर्थात तीज को हस्ति नक्षत्र में पार्वती जी ने बालू (रेत) का शिवलिंग स्थापित करके निराहार व्रत करते हुए पूजन प्रारंभ किया और रात्रि जागरण किया।
पार्वती जी द्वारा किए गए कठिन व्रत-पूजन से शिव जी प्रसन्न हो गए और उन्होंने प्रकट होकर पार्वती जी से कहा – हे प्रिय! तुम्हारे व्रत के प्रभाव से मेरा आसन डिग गया है। बताओ तुम्हें क्या वरदान चाहिए।
तब पार्वती जी ने कहा – यदि आप प्रसन्न हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी बनाना स्वीकार कर लें।
शिव जी ने ऐसा ही करने का वचन दिया और कैलाश को चले गए। मनोकामना पूर्ण होने पर पार्वती जी ने पूजन की सामग्री का नदी में विसर्जन किया, स्नान किया और सखी समेत पारण किया।
उसी समय हिमालय पार्वती जी को खोजते-खोजते उस स्थान पर पहुंच गए जहां पार्वती जी ने शिव जी का पूजन किया था। पार्वती जी के पास जाकर हिमालय ने कहा – बेटी तुम यहां कैसे पहुंच गई?
तब पार्वती जी ने कहा – आपने मेरा विवाह विष्णु जी के साथ तय कर दिया था, इस कारण से मैं घर से भागकर इस निर्जन वन में आ गई। यहां मैंने शिव जी का पूजन किया और उन्होंने प्रसन्न होकर मेरे साथ विवाह करने की स्वीकृति प्रदान कर दी है। यदि आप मुझे शिव जी के साथ विवाह करने की अनुमति प्रदान करते हैं तो मैं आपके साथ चलने को तैयार हूं।
पार्वती जी की बात सुनकर हिमालय ने अपनी सहमति जता दी और पार्वती जी को लेकर घर आ गए। इसके कुछ समय पश्चात पार्वती जी का विवाह शिव जी के साथ विधिपूर्वक संपन्न हुआ। इस विवाह का विस्तृत विवरण शिव पुराण में किया गया है।
हरतालिका व्रत विधि
- हरतालिका व्रत करने से पूर्व घर की अच्छे से साफ-सफाई करनी चाहिए।
- इस व्रत के दिन निर्जला व्रत का विधान है।
- हरतालिका तीज व्रत में पूजन प्रदोष काल में किया जाता है। प्रदोष काल सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त को कहा जाता है। प्रदोष काल दिन और रात के मिलन का समय होता है।
- पूजन के लिए मंडप का निर्माण कर उसे केले के पत्ते व पताकाओं से आदि से सजाना चाहिए।
- उस मंडप में पार्वती समेत बालू का शिवलिंग स्थापित करना चाहिए।
- इसके पश्चात व्रत के सुचारूरूपेण पालन का संकल्प करना चाहिए।
- संकल्प के पश्चात गणेश जी का विधिवत पूजन किया जाना चाहिए।
- इसके पश्चात शिव-पार्वती का आवाहन, आसन, अर्ध्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, आभूषण इत्यादि से षोडशोपचार विधि के द्वारा पूजन किया जाना चाहिए।
- चंदन अक्षत धूप दीप आदि से पूजन करके ऋतु के अनुकूल फल-मूल का नैवेद्य अर्पण करना चाहिए।
- पूजा करके और कथा सुनकर अपनी सामर्थ्य के अनुरूप ब्राह्मणों को दक्षिणा देना चाहिए।
- सौभाग्यवती स्त्रियों को सुहाग की वस्तुएं दान देनी चाहिए।
- व्रत की रात्रि में जागरण का विधान है।
- रात्रि में शिव पार्वती की कथा सुननी चाहिए, कीर्तन करना चाहिए एवं उनकी स्तुति करनी चाहिए।
- दूसरे दिन सवेरे उठकर पूजा समाप्ति कर पारण करना चाहिए।
- हरतालिका व्रत एक वर्ष करने के बाद उसे प्रत्येक वर्ष करना चाहिए। इसे बीच में छोड़ा नहीं जाता है। यदि स्वास्थ्य कारणों से या गर्भावस्था के कारण कोई महिला इस व्रत को करने में असमर्थ है तो उसके बदले घर की कोई और महिला यह व्रत रख सकती हैं। व्रत रखने वाली महिला को सुहाग का सामान और दक्षिणा देना चाहिए।
हरतालिका तीज का महत्व
हरतालिका व्रत स्त्रियों के सौभाग्य में वृद्धि करने वाला और उनकी रक्षा करने वाला व्रत है। जो स्त्री इस व्रत को करती है वह अटल सौभाग्य और संपूर्ण सुखों को प्राप्त कर अंत में मोक्ष लाभ की प्राप्ति करती है। यदि किसी स्त्री के द्वारा यह व्रत नहीं हो पाता है तो उसे कम से कम हरतालिका व्रत की कथा सुननी चाहिए इससे भी सौभाग्य में वृद्धि होती है।