पवित्र अमरनाथ गुफा स्थित हिम शिवलिंग

क्यों महत्वपूर्ण है अमरनाथ यात्रा

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भगवान शिव से जुड़े होने के कारण हिंदू धर्म में अमरनाथ यात्रा का विशेष महत्व है। यहां प्राकृतिक रूप से निर्मित हिम शिवलिंग है। हिम से निर्मित शिवलिंग होने के कारण श्रद्धालु भगवान शिव को बाबा बर्फानी भी कहते हैं। भगवान शिव में आस्था रखने वाले श्रद्धालु प्रति वर्ष जुलाई-अगस्त के महीने में यहां भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हैं।

अमरनाथ यात्रा 2023 की शुरुआत 1 जुलाई से हो रही है। अमरनाथ यात्रा 31 अगस्त 2023 को समाप्त होगी। अमरनाथ यात्रा 2023 कुल 62 दिनों तक चलेगी। अमरनाथ यात्रा पर जाने से पहले दर्शनार्थियों को रजिस्ट्रेशन कराना होता है। अमरनाथ यात्रा 2023 के लिए रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया 17 अप्रैल से प्रारंभ हो चुकी है। अमरनाथ यात्रा के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन jksasb.nic.in की वेबसाइट पर होता है। इसका लिंक नीचे दिया गया है –

अमरनाथ यात्रा के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन

अमरनाथ यात्रा 2023 से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

  • अमरनाथ यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन प्रारंभ होने की तिथि – 17 अप्रैल 2023
  • ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन कहां होता है? –  देशभर के नामित बैंकों की चुनिंदा शाखाओं में 
  • अमरनाथ यात्रा 2023 प्रारंभ होने की तिथि 1 जुलाई 2023
  • अमरनाथ यात्रा 2023 समाप्त होने की तिथि 31 अगस्त 2023
  • यात्रा पर जाने की आयु सीमा – 13 से 75 वर्ष
  • किन लोगों को यात्रा पर जाने की मनाही है? – 6 सप्ताह से अधिक की गर्भवती महिलाएं 
  • यात्रा परमिट के लिए आवश्यक दस्तावेज – भरा गया निर्धारित रजिस्ट्रेशन फॉर्म, नामित दिनांक के बाद जारी किया गया अनिवार्य स्वास्थ्य प्रमाणपत्र, चार पासपोर्ट आकार के फोटो और आधार। 
  • अमरनाथ यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन शुल्क – ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराने पर ₹220 एवं ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन कराने पर ₹120 तथा एनआरआई. तीर्थ यात्रियों के लिए ₹1520 
  • अमरनाथ यात्रा पर जाने के दो मार्ग कौन से हैं? – पहलगाम मार्ग और बालटाल मार्ग (इनके बारे में विस्तृत जानकारी आलेख में आगे दी गई है।) 
  • अमरनाथ यात्रा की शुरुआत कहां से होती है? – पहलगाम (अनंतनाग जिला) और बालटाल से (गांदरबल जिला) 
  • पहलगाम से अमरनाथ गुफा की दूरी कितनी है? – 45 किलोमीटर 
  • बालटाल से अमरनाथ गुफा की दूरी कितनी है? – 14 किलोमीटर 
  • अमरनाथ यात्रा के लिए हेलीकॉप्टर सुविधा किन मार्गों पर उपलब्ध है? श्रीनगर से नीलग्रथ (बालटाल), श्रीनगर से पहलगाम, नीलग्रथ (बालटाल) से पंचतरणी, और पहलगाम से पंचतरणी।
  • हेलीकॉप्टर यात्रा के लिए कहां बुकिंग कर सकते हैं? – श्री अमरनाथ यात्रा के लिए हेलीकॉप्टर टिकट की बुकिंग श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड की वेबसाइट www.shriamarnathjishrine.com से या सीधे बुकिंग पोर्टल heliservices.jksasb.nic.in से कर सकते हैं।

अमरनाथ यात्रा का रास्ता अत्यंत ही दुर्गम है जो ऊंची-नीची पहाड़ियों और संकरी खाइयों से होकर गुजरता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने इसी गुफा के अंदर देवी पार्वती को अमरता की कथा (जीवन और मृत्यु का रहस्य) सुनाई थी। अमरता की कथा कोई नश्वर जीव ना सुन ले इसलिए इसलिए भगवान शिव देवी पार्वती को कथा सुनाने इस निर्जन स्थान पर लेकर आए थे।

भगवान शिव ने मृत्यु को जीत लिया था इसलिए इन्हें मृत्युंजय या अमरेश्वर भी कहा जाता है। सामान्य जन अमरेश्वर को ही अमरनाथ कहकर पुकारते हैं।

पवित्र अमरनाथ गुफा कहां स्थित है?

पवित्र अमरनाथ गुफा जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर के उत्तर-पूर्व में स्थित है। श्रीनगर से इसकी दूरी लगभग 140 किलोमीटर है, वहीं जम्मू से इसकी दूरी लगभग 325 किलोमीटर है। अमरनाथ गुफा समुद्र तल से लगभग 13500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। अमरनाथ गुफा की लंबाई 19 मीटर (भीतर की ओर गहराई), चौड़ाई 16 मीटर और ऊंचाई 11 मीटर है।

अमरनाथ गुफा स्थित हिम शिवलिंग

अमरनाथ गुफा में स्थित शिवलिंग  हिम (बर्फ) से बना है जो प्राकृतिक रूप से निर्मित है। प्राकृतिक रूप से निर्मित होने के कारण इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहा जाता है। सावन के महीने में (आषाढ़ पूर्णिमा से लेकर रक्षाबंधन तक) लाखों श्रद्धालु यहां भगवान शिव के हिम शिवलिंग के दर्शन के लिए आते हैं।

पवित्र गुफा में जल की बूंदों के टपकने से इस शिवलिंग का निर्माण होता है। ये बूंदें इतनी ठंडी होती हैं कि नीचे गिरते ही बर्फ का रूप लेकर ठोस हो जाती हैं। हिम बूंदों से निर्मित शिवलिंग का आकार 12 से 18 फुट होता है। ऐसी मान्यता है कि चंद्रमा के घटने-बढ़ने के साथ शिवलिंग का आकार भी घटता-बढ़ता रहता है। सावन पूर्णिमा को यह अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है।

यह आश्चर्यजनक है कि पूरी गुफा में मात्र शिवलिंग ही है जो ठोस हिम का बना होता है जबकि गुफा में आमतौर पर कच्ची बर्फ होती है। अमरनाथ शिवलिंग से कई फुट दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही अलग-अलग हिमखंड हैं। यह आश्चर्य का विषय है कि इस गुफा में इतनी ऊंचाई तक हिम का शिवलिंग कैसे बनता है।

जिन प्राकृतिक स्थितियों में शिवलिंग का निर्माण होता है विज्ञान के  सिद्धांत उसके विपरीत हैं। विज्ञान के अनुसार बर्फ के जमने के लिए करीब शून्य डिग्री तापमान जरूरी है किंतु अमरनाथ यात्रा जो जुलाई-अगस्त में होती है उस समय इतना कम तापमान संभव नहीं होता। यही विज्ञान को अचंभित करने वाला और शिव भक्तों की आस्था को दृढ़ करने वाला कारक है। 

इस संबंध में यह तर्क दिया जाता है कि अमरनाथ गुफा के आसपास और उसकी दीवारों में मौजूद दरारों या छोटे-छोटे क्षेत्रों से शीतल हवा की आवाजाही होती है, इससे गुफा में और उसके आसपास हिम लिंग के रूप में आकार ले लेती है। यदि ऐसा होता तो कई अन्य लिंगों की भी रचना होनी चाहिए थी।

अमरनाथ गुफा के बारे में धार्मिक मान्यता

 हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले धर्मावलंबी ऐसा मानते हैं कि अमरनाथ की इस गुफा में भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरत्व की कथा सुनाई थी। इस कथा का वर्णन कई प्राचीन धर्म ग्रंथों और पुराणों में मिलता है।

ऐसी मान्यता है कि एक बार नारद मुनि घूमते-घूमते कैलाश पर्वत पर पहुंचे। वहां पार्वती जी ने उनका आदर-सत्कार किया और उनके आने का कारण पूछा। उन्होंने कहा – मैं तो इस लोक में घूमता ही रहता हूं। लेकिन अब इस लोक में घूमने की मेरी इच्छा समाप्त हो रही है क्योंकि अब आपस में प्रेम कम होता जा रहा है।

इस पर पार्वती जी ने कहा – संसार में भले ही प्रेम कम हो रहा हो लेकिन देवाधिदेव भगवान शिव हमें बहुत प्रेम करते हैं।

इस पर नारद जी ने कहा – यदि शिव जी आपको प्रेम करते हैं तो उन्होंने आपको अपने गले में पड़ी मुंडमाला का रहस्य जरूर बताया होगा।

पार्वती जी ने इस रहस्य को जानने से इनकार किया। उन्होंने कहा – शिव जी ने उन्हें कभी इसके बारे में कुछ नहीं बताया है।

तब नारद जी ने कहा – शिव जी आपको प्रेम नहीं करते, उनका प्रेम दिखावा मात्र है। यदि वे आपको प्रेम करते तो आपको इस मुंडमाला का रहस्य जरूर बताते। इतना कहकर नारद जी वहां से चले गए।

नारद जी के जाने के बाद पार्वती जी शिव जी के पास गईं। उन्होंने शिव जी से कहा – आप तो अजर-अमर हैं और मुझे आपको प्राप्त करने के लिए हर बार जन्म लेना पड़ता है और कठिन तपस्या करनी पड़ती है। आपकी अमरता का रहस्य क्या है और इस मुंडमाला से उस अमरता का क्या संबंध है।

आरंभ में शिव जी उस मुंडमाला के संबंध में कुछ भी कहने से इनकार करते रहे लेकिन पार्वती जी के बार-बार अनुरोध करने पर उन्होंने कहा – मेरे गले में मुंडों की जो यह माला है वह तुम्हारे ही मुंडों से निर्मित हुई है। प्रत्येक मुंड तुम्हारी एक मृत्यु का द्योतक है। तुम्हारी बार-बार मृत्यु की स्मृति में मैं अपनी माला में मुंडों को जोड़ता गया और इस प्रकार यह मुंडमाला निर्मित हुई। यह मुंडमाला तुम्हारे प्रति मेरे प्रेम का प्रतीक है।

यह जानकर पार्वती जी ने शिव जी से अपनी अमरता का रहस्य बताने का अनुरोध किया। उन्होंने शिव जी से यह भी अनुरोध किया कि वे उन्हें अमरता प्रदान करने वाला मंत्र सिखाएं। शिव जी नहीं चाहते थे कि अमरता का यह मंत्र पार्वती जी के अलावा कोई नश्वर जीव सुने। यदि कोई नश्वर जीव इसे सुन लेता है तो वह भी अमर हो जाता जो प्रकृति के नियमों के विपरीत होता।

निर्जन स्थान का ध्यान रखते हुए शिव जी अमरता की कथा सुनाने के लिए पार्वती जी को अमरनाथ की गुफा ले गए। भगवान शिव जब पार्वती जी को अमरकथा सुनाने ले जा रहे थे तो उन्होंने सर्वप्रथम नंदी (बैल) को रास्ते में छोड़ा। जिस स्थान पर बैल को छोड़ा गया वह स्थान बैलगाम कहलाया जो कालांतर में पहलगाम बन गया। इसके बाद शिव जी ने माथे से चंद्रमा को चंदनवाड़ी में उतारा। 

पिस्सुओं को पिस्सू टॉप पर और गले के शेषनाग को शेषनाग स्थल पर छोड़ा था। आज भी शेषनाग पर्वत पर नागों की आकृतियां विद्यमान हैं। महगुनस पर्वत पर उन्होंने गणेश जी को छोड़ दिया। इस स्थान का प्राचीन एवं शुद्ध उच्चारण महा-गणेश है जो स्थानीय भाषा के प्रभाव से धीरे-धीरे महगुनस उच्चरित होने लगा। पंचतरणी पहुंचकर उन्होंने पंचतत्व (क्षिति, जल, पावक, गगन और समीर) और गंगा जी का परित्याग कर दिया। भगवान शिव को इन पांच तत्वों का स्वामी माना जाता है। इसका उन्होंने गुफा में प्रवेश से पहले परित्याग कर दिया। यह आश्चर्य का विषय है कि अमरनाथ यात्रा के दौरान ये तमाम स्थल आज भी मिलते हैं।

सब कुछ का परित्याग कर भगवान शिव पार्वती जी के साथ अमरनाथ की गुफा में प्रवेश कर गए। इसके बाद मृगछाला बिछाकर पार्वती जी के साथ बैठे गए। बैठने के पश्चात उन्होंने कलाग्नि नामक रूद्र को प्रकट किया और आदेश दिया कि वह ऐसी अग्नि प्रकट करे जिससे समस्त जीवधारी जलकर भस्म हो जाएं। कलाग्नि ने ऐसा ही किया। तत्पश्चात भगवान शिव ने ध्यान मुद्रा में आकर अमरकथा कहना प्रारंभ किया।

 जब भगवान शिव अमरकथा सुना रहे थे तो दसवें स्कंध के बाद पार्वती जी को नींद आ गई। जब शिव जी 12वां स्कंध सुना रहे थे तब पार्वती की जी की नींद खुली और उन्होंने शिव जी से कहा मुझे क्षमा करें मुझे नींद आ गई थी और मैं दसवें स्कंध के बाद सुन नहीं पाई।  

तब शिव जी यह विचारने लगे कि कथा के दौरान कौन हूं हूं कर रहा था। उन्होंने देखा कि मृगछाला के नीचे बैठा एक सद्योजात शुक (सुग्गा या तोता) उस कथा को सुन रहा है। जब शिव जी कथा सुना रहे थे तब यह सद्योजात शुक अंडे की अवस्था में था लेकिन अमरता की कथा सुनकर इसके अंदर जीवन आ गया और इसने अमरता की कथा सुन ली।

जब कलाग्नि द्वारा वहां उपस्थित सभी जीवधारी को जलाकर भस्म किया गया तो यह अंडा भस्म नहीं हुआ। इसकी दो वजहें थीं। पहली यह कि अंडा मृगछाला के नीचे था जिसकी वजह से वह भगवान शिव की शरणागत था और दूसरी यह कि जब कलाग्नि द्वारा समस्त जीवधारी को भस्म किया जा रहा था तब वह जीव रूप में नहीं था। 

यह जानकर कि सद्योजात शुक ने अमरता की कथा सुन ली है भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हुए और उसे मारने के लिए दौड़े। भगवान शिव के क्रोध से बचने के लिए सद्योजात शुक तीनों लोक के चक्कर लगाता रहा लेकिन उसे कहीं जगह नहीं मिली।

अंत में वह महर्षि व्यास के आश्रम में गया। वहां महर्षि व्यास की पत्नी वटिका द्वार पर बैठी जम्हाई ले रही थी। सद्योजात शुक उनके मुंह के रास्ते उनके पेट में प्रवेश कर गया। भगवान शिव भी शुक के पीछे-पीछे महर्षि व्यास के आश्रम पहुंचे। जब वे वहां पहुंचे तब उन्हें पता चला कि शुक महर्षि व्यास की पत्नी वटिका के पेट के भीतर छुप गया है।

महर्षि व्यास ने भगवान शिव से कहा कि आप शुक के साथ जैसा व्यवहार करना चाहें कर सकते हैं लेकिन यह तो आप जानते हैं कि स्त्री को मारना पाप है। महर्षि व्यास की बात सुनकर भगवान शिव वापस लौट आए।

शुक के वटिका के पेट में पड़े रहने से वटिका के पेट में निरंतर दर्द रहता था। इसके उपचार के लिए महर्षि व्यास ब्रह्मा जी के पास गए। उन्होंने भगवान विष्णु के पास जाने की सलाह दी। तब महर्षि व्यास भगवान विष्णु के पास गए और उन्होंने अपनी व्यथा कथा कही। उनकी व्यथा सुनकर भगवान विष्णु शुक के पास आए और उन्होंने शुक से कहा कि तुम वटिका के पेट से बाहर आ जाओ।

तब शुक ने कहा – जब तक संसार निर्मोही नहीं हो जाता मैं मां के पेट से बाहर नहीं आ सकता हूं।

तब भगवान विष्णु ने अपनी माया से संसार को निर्मोही बना दिया। संसार के निर्मोही बनते ही शुक वटिका के पेट से बाहर आ गया। पेट में रहते ही शुक चारों वेदों और अठारहों पुराण का ज्ञाता हो गया था। 12 वर्षों तक शुक वटिका के पेट में रहा। पेट से बाहर आते ही उसका नाम शुकदेव हो गया।

इससे थोड़ी भिन्न भी एक कथा है जो लोक में प्रचलित है। उस कथा के अनुसार जब भगवान शिव पार्वती जी को अमरता की कथा सुना रहे थे वहां पर कबूतर के दो अंडे पहले से विद्यमान थे।अमरता का मंत्र सुनते ही वे दोनों वयस्क हो गए।

शिव भक्त मानते हैं कि आज भी गुफा में वह दोनों कबूतर दिखाई पड़ते हैं जिन्हें श्रद्धालु अमर पक्षी बताते हैं। ऐसी मान्यता है कि जिन श्रद्धालुओं को कबूतर का जोड़ा दिखाई देता है उन्हें शिव-पार्वती अपने प्रत्यक्ष दर्शनों से निहालकर उस प्राणी को मुक्ति प्रदान करते हैं। 

अमरनाथ यात्रा की शुरुआत कैसे हुई?

ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव के इस पवित्र गुफा की खोज एक भेड़ चराने वाले मुस्लिम गरेड़िये ने की थी। उस गरेड़िये का नाम बूटा मलिक था। एक बार पशु चराते हुए बूटा मलिक ऊंची पहाड़ी की तरफ निकल गया। वहां उसकी मुलाकात एक साधु से हुई। उस साधु ने बूटा मलिक को एक थैला दिया। उस थैले में कोयला भरा हुआ था। बूटा मलिक उस थैले को लेकर घर आ गया। जब वह घर आ गया तब उसने उस थैले को खोल कर देखा। उस थैले में कोयले के स्थान पर सोना भरा हुआ था। यह देख कर बूटा मलिक बहुत खुश हुआ। वह उस साधु का आभार प्रकट करने के लिए पुनः उसी पहाड़ी की तरफ गया जहां साधु से उसकी मुलाकात हुई थी।

जब वह वहां पहुंचा तो उसे वह साधु नहीं मिला। उस स्थान पर उसने एक पवित्र गुफा और अद्भुत हिम शिवलिंग के दर्शन किए। इस दिव्यता के दर्शन से अभिभूत होकर वह गांव पहुंचा और वहां उसने यह बात गांव वालों को बतायी। उसकी बात को सुनकर अन्य गांव वाले भी उस गुफा के दर्शन के लिए आए। इसके बाद से इस गुफा और हिम शिवलिंग के दर्शन की परंपरा बन गई। समय के साथ यह एक प्रमुख तीर्थ स्थल के रूप में लोगों की आस्था का केंद्र बन गया।

प्राचीन महाकाव्य एक और कहानी बताते हैं जो इस प्रकार है। कश्मीर घाटी पानी में डूबा हुआ था। यह एक बड़ी झील के समान था। कश्यप ऋषि ने कई नदियों और नालों के माध्यम से इस झील का पानी निकाला। उन्हीं दिनों भृगु ऋषि उस रास्ते से हिमालय की यात्रा पर आए थे। वह इस पवित्र गुफा का दर्शन करने वाले पहले व्यक्ति थे। जब लोगों ने हिमलिंग के बारे में सुना, तो उनके लिए अमरनाथ शिव का निवास और तीर्थस्थल बन गया। तब से लाखों भक्त कठिन इलाकों से तीर्थ यात्रा करते हैं और शाश्वत सुख प्राप्त करते हैं।

अमरनाथ यात्रा कब होती है?

अमरनाथ यात्रा का आयोजन प्रतिवर्ष श्री अमरनाथ जी श्राइन बोर्ड के द्वारा किया जाता है। इसका आयोजन प्रतिवर्ष जुलाई-अगस्त के महीने में किया जाता है। प्रत्येक वर्ष मौसम की स्थिति को देखते हुए और श्रावण पूर्णिमा की तिथि  (रक्षाबंधन) को ध्यान में रखकर इसकी तिथि का निर्धारण किया जाता है। 

अमरनाथ यात्रा के दौरान मौसम

अमरनाथ यात्रा के दौरान मौसम की अनिश्चितता बनी रहती है। यात्रा के दौरान किसी भी स्थान पर किसी भी समय वर्षा और बर्फबारी हो सकती है। यह विशेष रूप से ध्यान रखने की बात है कि मौसम में कभी भी अचानक परिवर्तन आ सकता है। खिली धूप वाला मौसम अत्यंत अल्प समय में वर्षा और बर्फबारी वाले मौसम में बदल सकता है। तापमान गिरकर -5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है। 

अमरनाथ गुफा तक पहुंचने के मार्ग 

अमरनाथ गुफा तक पहुंचने के मार्ग ऊंची-नीची पहाड़ियों एवं संकरी खाइयों से घिरे हैं। अमरनाथ गुफा तक पहुंचने के लिए पहलगाम और बालटाल से यात्रा प्रारंभ होती है। दो भिन्न रास्तों से चलते हुए यात्री अमरनाथ की गुफा तक पहुंच सकते हैं। अमरनाथ गुफा तक पहुंचने के दो मार्ग हैं –

अमरनाथ गुफा तक जाने के मार्ग
अमरनाथ गुफा तक जाने के मार्ग

पहलगाम-चंदनवाड़ी मार्ग

जम्मू या श्रीनगर से पहलगाम – जम्मू से पहलगाम की दूरी लगभग 315 किलोमीटर है जिसे सड़क मार्ग के द्वारा तय किया जा सकता है। श्रीनगर से पहलगाम की दूरी लगभग 96 किलोमीटर है। पहलगाम समुद्र तल से लगभग 2130 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। अमरनाथ यात्रा के लिए पहलगाम बेसकैंप है। ऊंचे पहाड़ों पर स्थित पहलगाम चीड़ के जंगलों से आच्छादित है। विशाल घास के मैदान और लीद्दर नदी इसके प्राकृतिक सौंदर्य का विस्तार करते हैं।

पहलगाम से चंदनवाड़ी – पहलगाम से यात्रा प्रारंभ करने के बाद पहला पड़ाव चंदनवाड़ी आता है। चंदनवाड़ी समुद्र से 2895 मीटर की ऊंचाई पर है। पहलगाम से चंदनवाड़ी की दूरी 16 किलोमीटर है। पहलगाम से चंदनवाड़ी सड़क मार्ग से जुड़ा है इसलिए इस मार्ग की यात्रा छोटी गाड़ियों के द्वारा की जाती है। पहलगाम से चंदनवाड़ी का रास्ता लीद्दर नदी के किनारे-किनारे चलता है जो इस रास्ते के सौंदर्य का विस्तार करते हैं। चंदनवाड़ी से अमरनाथ गुफा के लिए पैदल यात्रा प्रारंभ होती है। इस यात्रा को पैदल, पोनी (घोड़े या खच्चर) या फिर पालकी के द्वारा संपन्न किया जाता है।

चंदनवाड़ी से पिस्सू टॉप – चंदनवाड़ी के बाद अगला पड़ाव पिस्सू टॉप है। चंदनवाड़ी से 3 किलोमीटर चढ़ाई करने पर पिस्सू टॉप आता है। ऐसा माना जाता है कि जब देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध हो रहा था तब भगवान शिव ने यहां दर्शन दिया था। शिव की शक्ति के प्रभाव के कारण ही देवता राक्षसों का वध कर सके। यह माना जाता है कि राक्षसों के शवों से ही ऊंचे पर्वत का निर्माण हुआ है।

पिस्सू टॉप से शेषनाग – चंदनवाड़ी से चलने के बाद अगला पड़ाव शेषनाग आता है। पिस्सू घाटी की सीधी चढ़ाई शेषनाग नदी के किनारे किनारे चलती है। 12 किलोमीटर लंबी शेषनाग नदी का किनारा शेषनाग झील पर जाकर समाप्त होता है। यहां शेषनाग की पहाड़ी झील है। शेषनाग झील नीले पानी की एक खूबसूरत झील है। ऐसी मान्यता है कि शेषनाग झील में शेषनाग का वास है और 24 घंटे में एक बार शेषनाग बाहर आकर दर्शन देते हैं। शेषनाग की ऊंचाई समुद्र तल से 3574 मीटर है। इसकी सात पहाड़ी चोटियों के कारण इसका नाम शेषनाग पड़ा। ये चोटियां सांप के सिर की तरह दिखाई देती हैं। शेषनाग में रात्रि का पड़ाव होता है। शेषनाग में बर्फीली हवाएं चलती रहती हैं।

शेषनाग से पंचतरणी – शेषनाग से आगे की यात्रा बहुत कठिन मार्गों के द्वारा की जाती है। शेषनाग से पोषपत्री तथा फिर पंचतरणी की दूरी 14 किलोमीटर है। पोषपत्री में विशाल भंडारे का आयोजन होता है। शेषनाग से पंचतरणी के रास्ते में बैववैल टॉप और महगुनस दर्रा पड़ता है। महगुनस दर्रे की समुद्र तल से ऊंचाई 4276 मीटर है। महगुनस इस यात्रा का सबसे ऊंचा स्थल है। यहां ऑक्सीजन की कमी की समस्या आती है हालांकि किसी प्रकार की समस्या आने पर यहां चिकित्सा सुविधा उपलब्ध रहती है।

पहलगाम मार्ग के रास्ते में
पहलगाम मार्ग के रास्ते में (सौजन्य-मनीष)

महगुनस चोटी से लगभग 9.5 किलोमीटर की दूरी पर पंचतरणी है। पंचतरणी समुद्र तल से 3657 मीटर की ऊंचाई पर है। यह भैरव पर्वत की तलहटी में बसा है। यहीं पंचतरणी नदी है जहां से 5 धाराएं निकलती हैं। ऐसी मान्यता है कि पंचतरणी की 5 धाराओं की उत्पत्ति शिव जी की जटाओं से हुई थी। यह चारों तरफ से पहाड़ की ऊंची-ऊंची चोटियों से घिरा हुआ है। यहां भी ऑक्सीजन की कमी की समस्या होती है। पंचतरणी से 3 किलोमीटर चलने पर अमरगंगा और पंचतरणी का संगम स्थल मिलता है। यहां से श्री अमरनाथ की पवित्र गुफा की दूरी लगभग 3 किलोमीटर है। रास्ते में बर्फ ही बर्फ जमी होती है।

अमरगंगा में स्नान करके भक्तजन चढ़ावा लेकर श्री अमरनाथ जी के दर्शन करते हैं। इसमें पहले 3 किलोमीटर के रास्ते को संत सिंग की पौड़ी करते हैं। यह एक पगडंडीनुमा रास्ता है जिसके एक ओर पहाड़ तथा दूसरी ओर खाई है। यह रास्ता काफी जोखिम भरा होता है। अमरगंगा को पार करते ही मुख्य गुफा के दर्शन होते हैं। मुख्य गुफा के नजदीक रहने के लिए कैंपों की व्यवस्था की जाती है। वहां रुक कर भक्तगण भगवान भोलेनाथ के हिम शिवलिंग के दर्शन को प्रस्थान करते हैं।

अमरनाथ यात्रा 2023 पहलगाम मार्ग
सोनमर्ग-बालटाल मार्ग

सोनमर्ग-बालटाल मार्ग के द्वारा यात्रा करने के लिए सबसे पहले श्रीनगर आना पड़ता है। श्रीनगर से बालटाल सोनमर्ग होकर जाते हैं। सोनमर्ग को सोने का घास का मैदान भी कहा जाता है। श्रीनगर से बालटाल की दूरी लगभग 100 किलोमीटर है। श्रीनगर से बालटाल आने के लिए बस और छोटी गाड़ियों की सुविधा उपलब्ध है। 

जम्मू से बालटाल की दूरी लगभग 400 किलोमीटर है। बस या टैक्सी के द्वारा जम्मू से बालटाल पहुंचा जा सकता है। 

बालटाल से अमरनाथ जी की पवित्र गुफा तक की दूरी लगभग 14 किलोमीटर है। बालटाल से अमरनाथ की गुफा तक जाने के रास्ते में खड़ी चढ़ाई मिलती है। इस मार्ग को पैदल, पोनी (घोड़ा या खच्चर) या पालकी के द्वारा तय किया जाता है। बालटाल से अमरनाथ का मार्ग छोटा है, इस कारण इस मार्ग के द्वारा एक दिन के अंदर भगवान शिव की पवित्र गुफा का दर्शन कर वापस आया जा सकता है।

अमरनाथ यात्रा 2023 बालटाल मार्ग
पवित्र अमरनाथ गुफा तक पहुंचने के साधन

पवित्र अमरनाथ गुफा के दर्शन के लिए पहलगाम व बालटाल से यात्रा प्रारंभ करनी पड़ती है। इन दोनों स्थानों से पैदल, पोनी (घोड़ा या खच्चर) और पालकी में से किसी भी माध्यम से यात्रा किया जा सकता है। पवित्र गुफा की यात्रा के लिए हेलीकॉप्टर की सुविधा भी उपलब्ध कराई गई है। हेलीकॉप्टर किसी भी यात्री को गुफा तक नहीं पहुंचाता है। पहलगाम व बालटाल में से किसी भी स्थान से हेलीकॉप्टर लेने पर यह यात्रियों को पंचतरणी तक पहुंचाता है। उसके बाद यात्रियों को अपनी सुविधानुसार यात्रा करनी होती है। पैदल, पालकी या फिर पोनी का उपयोग कर यात्रा पूर्ण कर सकते हैं।

पहले हेलीकॉप्टर सेवाएं केवल दो मार्गों के लिए परिचालित थीं, लेकिन अब तीर्थयात्री चार मार्गों पर आने-जाने में इस सेवा का लाभ उठा सकते हैं। ये मार्ग हैं – श्रीनगर से नीलग्रथ (बालटाल), श्रीनगर से पहलगाम, नीलग्रथ (बालटाल) से पंचतरणी, और पहलगाम से पंचतरणी।

अमरनाथ यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन 

तीर्थयात्रियों की सुरक्षा और पहाड़ी मार्ग की वाहन क्षमता को ध्यान में रखते हुए प्रतिदिन एक निश्चित संख्या में ही यात्रियों को पवित्र अमरनाथ गुफा की यात्रा की अनुमति दी जाती है। पवित्र अमरनाथ गुफा की यात्रा के लिए प्रत्येक व्यक्ति को पहले से रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता है। रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया यात्रा शुरू होने से लगभग एक महीने पहले से प्रारंभ होती है। रजिस्ट्रेशन पहलगाम-चंदनवाड़ी मार्ग और सोनमर्ग-बालटाल मार्ग में से किसी मार्ग के लिए किया जा सकता है।

रजिस्ट्रेशन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें

  • 13 वर्ष से कम आयु के बालक एवं 75 वर्ष से अधिक आयु के वृद्ध को अमरनाथ यात्रा के रजिस्ट्रेशन की अनुमति नहीं है। 6 माह से अधिक की गर्भवती महिला को भी रजिस्ट्रेशन की अनुमति नहीं है।
  • यदि रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन क्रम में है, तो आवेदक को 50/- रुपये प्रति यात्री/यात्रा परमिट का भुगतान करना होगा।
  • अमरनाथ यात्रा के रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन पत्र श्री अमरनाथ जी श्राइन बोर्ड की वेबसाइट पर और बोर्ड द्वारा निर्दिष्ट बैंक की शाखाओं से प्राप्त किया जा सकता है।
  • रजिस्ट्रेशन एक व्यक्ति का भी कराया जा सकता है और समूह में भी कराया जा सकता है। प्रवासी भारतीय भी रजिस्ट्रेशन कराकर इस यात्रा में शामिल हो सकते हैं।
  • श्री अमरनाथ जी श्राइन बोर्ड द्वारा निर्दिष्ट जम्मू और कश्मीर बैंक लिमिटेड की शाखाओं के माध्यम से इस यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन कराया जा सकता है। निर्दिष्ट बैंक शाखाओं की सूची श्री अमरनाथ जी श्राइन बोर्ड की वेबसाइट पर उपलब्ध होती है। रजिस्ट्रेशन का लिंक नीचे दिया गया है – http://www.jammu.com/shri-amarnath-yatra/registration-form.php
  • प्रत्येक इच्छुक तीर्थयात्री को आवेदन पत्र जमा करते समय अनिवार्य स्वास्थ्य प्रमाण पत्र (सीएचसी) जमा करना होता है। पवित्र गुफा की यात्रा के क्रम में कठिन मौसमी परिस्थितियों यथा कम आर्द्रता, अत्यधिक ठंड, अल्ट्रावायलेट विकिरण में वृद्धि, हवा के दबाव में कमी इत्यादि का सामना करना पड़ता है इसलिए शारीरिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति को ही यात्रा पर जाने की अनुमति दी जाती है।
  • केवल अधिकृत डॉक्टर/संस्थान द्वारा जारी अनिवार्य स्वास्थ्य प्रमाण पत्र ही मान्य हैं। भारत में विभिन्न राज्यों के लिए अनिवार्य स्वास्थ्य प्रमाण पत्र (सीएचसी) जारी करने के लिए ऐसे अधिकृत संस्थानों/डॉक्टरों की सूची को लगातार अद्यतन किया जाता है और ऑनलाइन उपलब्ध कराया जाता है।
  • अधिकृत संस्थानों/डॉक्टरों की सूची श्री अमरनाथ जी श्राइन बोर्ड की वेबसाइट पर उपलब्ध होती है। एक निश्चित अवधि के लिए जारी किया गया अनिवार्य स्वास्थ्य प्रमाण पत्र ही यात्रा के लिए मान्य है।

अमरनाथ यात्रा के दौरान किन बातों का ध्यान रखें

  • फिटनेस का ध्यान रखना : यात्रा पर जाने से पहले एक महीने तक सुबह-शाम एक्सरसाइज कर अपने शरीर को तंदुरुस्त रखना चाहिए। यात्रा के दौरान जलवायु परिवर्तन और ऑक्सीजन की कमी की समस्या का सामना करना पड़ता है। इसके अनुकूल अपने शरीर को बनाने के लिए प्राणायाम जैसे योगाभ्यास करने चाहिए।
  • ड्रेस : यात्रा के दौरान तीर्थ यात्रियों को ऊनी कपड़े तथा विंडचीटर इत्यादि अपने साथ रखना चाहिए। यात्रा में ऊंची-नीची चढ़ाइयां होती हैं और फिसलन भी होता है इसलिए यात्रा के दौरान स्लीपर के बजाय जूते का इस्तेमाल करना चाहिए। महिलाओं को यह सलाह दी जाती है कि वह साड़ी पहनकर यात्रा ना करें।
  • चिकित्सा सुविधा : अमरनाथ की यात्रा के दौरान मेडिकल कैंप लगाकर डॉक्टरों द्वारा निशुल्क चिकित्सा सुविधा प्रदान की जाती है। फिर भी यात्री को अपनी जरूरत की दवाएं व ग्लूकोज, डिस्प्रिन जैसी सामान्य उपयोग की दवाएं अपने साथ रखनी चाहिए। ठंडी हवाओं से त्वचा की रक्षा के लिए कुछ कोल्ड क्रीम या वैसलीन अपने साथ रखें।
  • बीमा : अमरनाथ यात्रा के दुर्गम रास्तों और कठिन मौसमी स्थितियों को देखते हुए तीर्थ यात्रियों को यह सलाह दी जाती है कि वह अपना बीमा करा लें। पिछले कुछ वर्षों से श्री अमरनाथ जी श्राइन बोर्ड के द्वारा दुर्घटना बीमा कवर प्रदान किया जा रहा है।
  • भोजन का प्रबंध : अमरनाथ यात्रा के दौरान पूरे रास्ते लंगर की व्यवस्था होती है। इसके अतिरिक्त सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त निजी व्यक्तियों द्वारा छोटे रेस्तरां व चाय की दुकानों का संचालन किया जाता है। फिर भी यात्री अपने साथ बिस्कुट, डिब्बाबंद भोजन, ड्राई फ्रूट्स इत्यादि अपने साथ रखें। यात्रा के दौरान तेलीय चीजों को खाने से परहेज करें।
  • रहने की व्यवस्था : यात्रा मार्ग के विभिन्न पड़ाव पर रहने के लिए आवश्यक सुविधाओं से युक्त टेंट की व्यवस्था की जाती है। ये टेंट यात्रा का संचालन करने वाले अधिकारियों द्वारा निर्धारित दरों पर प्राप्त किए जा सकते हैं।
  • अन्य बातें जिनका ध्यान रखना चाहिए : अमरनाथ यात्रा के दौरान यात्रा प्रशासन के द्वारा जारी निर्देशों का पालन करें। अपनी जेब में अपने नाम, पता और साथ आने वाले यात्री के नाम की एक पर्ची रखें। यात्रा के दौरान वैसे स्थानों पर न रुकें जहां ना रुकने की चेतावनी दी गई है। तेज गति से यात्रा करने के बजाए धीमी व निरंतर यात्रा करें। यात्रा के दौरान किसी शॉर्टकट मार्ग को अपनाने का प्रयास ना करें। यात्रा में किसी नशीले पदार्थ का सेवन ना करें। रजिस्टर्ड पोनी वाले या पालकी वाले के साथ ही यात्रा करें। इसका हमेशा ध्यान रखें कि वह आपके साथ बना रहे।
    जय भोले…

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    सबसे ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ ज्योतिर्लिंग
    शिवलिंग के प्रकार और उत्पत्ति कथा


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4 thoughts on “क्यों महत्वपूर्ण है अमरनाथ यात्रा”

  1. शिव जी ने माता पार्वती को कथा क्यों सुनाई थी यह जानकारी मिली, नारद जी वाले प्रकरण की भी जानकारी नहीं थी मुझे पहले!
    आलेख के माध्यम से अमरनाथ जी के बारे में समग्र जानकारी प्राप्त होती है। धार्मिक मान्यताओं एवं यात्रा संबंधी सभी सूचनाएं उपलब्ध हैं।

    सरल एवं सुस्पष्ट भाषा का प्रयोग इस आलेख को और अधिक महत्वपूर्ण और उपयोगी बनाता है l

    सभी तरह के पाठक वर्गों के लिए निश्चित रूप से ज्ञानवर्धक और उपयोगी है।धर्म कथाओं पर गंभीर कार्य करने वाले लोगों की कमी है,ऐसा मेरा मानना है।लगता है यह कमी अब धीरे-धीरे दूर होगी।

    वेबसाइट बहुत ही अच्छा बना है,आने वाले समय में वेबसाइट सफल और सार्थक होगा।

    मेरी तरफ से बहुत-बहुत बधाइयां और शुभकामनाएं।

  2. हर हर महादेव 🙏🙏 जितना सुंदर महादेव उतना ही सुन्दर उनका वर्णन और बखान ।। आज के इस असमंजस माहौल में शुक्र है हमलोगो को धर्म से सही मायने में अवगत कराया आपने पवनजी अपने ज्ञान और शोध से।।

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