धर्म का स्वरूप
मनुष्य जीवन को परिभाषित करने वाले और उसे बेहतर बनाने वाले कारक तत्व का नाम धर्म है। धर्म कोई स्थिर तत्व नहीं है और ना ही उसका स्वरूप एकांगी है। यह जीवन के सभी पहलुओं और तत्वों से जुड़ा हुआ है। इस कारण धर्म का स्वरूप अत्यंत ही व्यापक हो जाता है। धर्म केवल आत्मा-परमात्मा का सम्बन्ध स्थापित करने वाला ही नहीं बल्कि हमारे सभी कर्म, सभी व्यवहार क्रोध, करुणा, दया, स्नेह, त्याग, तप, तितिक्षा …