हिंदू धर्म ग्रंथों में पुराणों का विशेष महत्व है। छांदोग्य उपनिषद में पुराणों को पंचम वेद कहा गया है। वस्तुतः वेद, उपनिषद, दर्शन आदि अन्य धर्म शास्त्रों में वर्णित गूढ़ तथ्यों को सरल रूप में व्याख्यायित करने के लिए पुराणों की रचना की गई है जिससे साधारण मनुष्य धर्म व अध्यात्म संबंधी विषयों को सरलता से समझ सके। इस आलेख में 18 पुराणों के नाम और उनका संक्षिप्त परिचय दिया गया है।
हिंदू धर्म ग्रंथों के बारे में जानने के लिए आप निम्न आलेख को देख सकते हैं –
हिंदू धर्मग्रंथों के नाम एवं उनका संक्षिप्त परिचय
18 पुराणों के नाम की सूची
ब्रह्म पुराण
- ब्रह्म पुराण में कुल 243 अध्याय हैं। इसमें श्लोकों की संख्या 10,000 से ज्यादा है। ब्रह्म पुराण दो भागों में विभाजित है।
- विष्णु पुराण में ब्रह्म पुराण को प्रथम पुराण माना गया है।
- यह पुराण आदि ब्राह्म के नाम से भी प्रसिद्ध है।
- ब्रह्म पुराण में ब्रह्मा का विशेष रूप से उल्लेख है किंतु सूर्य से जगत की उत्पत्ति मानकर सूर्य को अधिक महत्व दिया गया है।
- ब्रह्म पुराण में वर्णित है कि धर्म ही परम पुरुषार्थ है (धर्मे मतिभवतु व पुरुषोत्तमाना)।
- वर्णित विषय –
पहला भाग – देव, असुर, प्रजापति, दक्ष इत्यादि की उत्पत्ति का वर्णन, भगवान सूर्य के वंश की कथा, भगवान रामचंद्र की कथा, द्वीप-द्वीपान्तर, समुद्र, वर्ष पाताल और स्वर्ग का विस्तार से वर्णन, सब नरकों के नाम, सूर्य की प्रशंसा, पार्वती के जन्म और विवाह की कथा आदि।
दूसरा भाग – तीर्थ यात्रा के विषय में बड़े विस्तार से कथा लिखी गई है। यमलोक का वर्णन करते हुए पितरों के लिए श्राद्ध की विधि बताई गई है। वैष्णव धर्म, चारों युगों की कथा, प्रलय की कथा इत्यादि।
संबंधित आलेख
आधुनिक समय में पुराण का महत्व क्या है?
पुराण के लक्षण कौन-कौन हैं?
पद्म पुराण
- पद्म पुराण को पांच खंडों में विभाजित किया गया है। पांचों खंडों को मिलाकर इसमें श्लोकों की संख्या 55 हजार से ज्यादा है।
- नारायण की नाभि से एक पद्म की उत्पत्ति तथा उस पर आसीन ब्रह्मा जी द्वारा इस पुराण की कथा का उद्घाटन करने के कारण इस पुरान का नाम पद्मपुराण पड़ा।
- पद्म पुराण विष्णु भक्ति का प्रधान पुराण है।
- वर्णित विषय –
सृष्टि खंड – इतिहास के साथ विस्तारपूर्वक धर्म की कथाएं लिखी गई हैं। पुष्कर माहात्म्य, ब्रह्म यज्ञ विधान, वेद पाठी आदि के लक्षण, दान व्रत, पार्वती विवाह, तारक की कथा, ग्रहों की पूजा इत्यादि।
भूमि खंड – माता-पिता आदि की पूजा, सुव्रत की कथा, वृत्रासुर के मारने की कथा, नहुष की कथा, ययाति की कथा, सूत-शौनक संवाद इत्यादि।
स्वर्ग खंड – ब्रह्मांड की उत्पत्ति, भूमि के साथ और लोकों के ठहरने की कथा, तीर्थों का वर्णन, नर्मदा की उत्पत्ति की कथा, कुरुक्षेत्र आदि पवित्र तीर्थों का वृत्तान्त, काशी, गया, प्रयाग का माहात्म्य वर्णन, वर्णाश्रम धर्मों की कथा, व्यास और जैमिनी का संवाद, समुद्र मंथन की कथा इत्यादि।
पाताल खंड – भगवान श्री राम के द्वारा अश्वमेध यज्ञ करना, राज्याभिषेक, जगन्नाथ और वृंदावन का माहात्म्य, कृष्ण अवतार की लीलाओं का वर्णन, माघ मास में स्नान, दान और पूजा पाठ का फल, पृथ्वी और वराह संवाद, यमराज और ब्राह्मण की कथा, दधीचि की कथा इत्यादि।
उत्तर खंड – गौरी के प्रति शिवजी का पर्वत वर्णन, जालंधर दैत्य की कथा, श्रीशैल माहात्म्य, राजा सगर की कथा, गंगा, प्रयाग, काशी और गया की कथा, 24 प्रकार की एकादशी की कथा, एकादशी माहात्म्य, विष्णु सहस्त्रनाम, जंबूद्वीप के अनेक तीर्थों की कथा, नृसिंह की उत्पत्ति, गीता माहात्म्य, श्रीमद्भागवत का माहात्म्य, मत्स्य आदि अवतारों की कथा इत्यादि।
विष्णु पुराण
- विष्णु पुराण वैष्णव धर्म का मूल आधार है।
- दार्शनिक दृष्टि से विष्णु पुराण को भागवत के बाद दूसरा स्थान प्राप्त है।
- विष्णु पुराण में 6 अंश हैं। 6 अंशों को मिलाकर इसमें कुल 126 अध्याय हैं। इसमें श्लोकों की संख्या 7000 के लगभग है।
- विष्णु पुराण का उत्तर खंड ही विष्णु धर्मोत्तर पुराण कहलाता है।
- वर्णित विषय –
पहला अंश – सृष्टि की कथा, देव आदि की सृष्टि, चारों वर्णों की सृष्टि, भृगु की उत्पत्ति, इंद्र के प्रति दुर्वासा का शाप, प्रह्लाद चरित, नरसिंह अवतार इत्यादि।
दूसरा अंश – जंबूद्वीप का वर्णन, 6 द्वीपों का वर्णन, सातों पातालों का वर्णन, नरक का वर्णन, सूर्य आदि ग्रहों और सातों लोकों का वर्णन, वर्षा के होने के कारण, भरत की कथा इत्यादि।
तीसरा अंश – मनुओं और मन्वंतरों की कथा, वेदव्यास के 28 नामों का वर्णन, वेदव्यास का माहात्म्य, सामवेद और अथर्ववेद की शाखाओं का वर्णन, पुराणों के नाम और उनके लक्षण, गृहस्थ के सदाचार, श्राद्ध का फल इत्यादि।
चौथा अंश – वंश के विस्तार की कथा, ब्रह्मा और दक्ष आदि की उत्पत्ति, पुरूरवा का जन्म, इक्ष्वाकु का जन्म, गंगा का पृथ्वी पर अवतरण, विश्वामित्र के यज्ञ की कथा, सीता जी का जन्म, नहुष और ययाति की कथा, श्री कृष्ण के जन्म और विवाह की कथा, नंद राज्य, कलि की उत्पत्ति और राजाओं के चरित इत्यादि।
पांचवां अंश – भगवान विष्णु के कृष्ण अवतार की कथा का विस्तार से वर्णन किया गया है। इसमें कृष्ण की लीलाओं और उनके कार्यों की विस्तार से चर्चा।
छठा अंश – कलि के स्वरूप और कली के धर्मों का कथन, कल्प की कथा, प्रलय में ब्रह्मा की स्थिति, केशिध्वज की कथा, धर्मधेनु वध, आत्मज्ञान, देहात्मवाद की निंदा, विष्णु पुराण की प्रशंसा और विष्णु नाम स्मरण का माहात्म्य इत्यादि।
शिव पुराण
- शिव पुराण को कहीं-कहीं वायु पुराण भी कहा गया है।
- शिव पुराण में छह संहिताएं हैं। इन संहिताओं में लगभग 24000 श्लोक हैं। शिव पुराण में लगभग 112 अध्याय हैं।
- शिव पुराण पुराणों के पंच लक्षणों को पूरा करता है।
- वर्णित विषय –
ज्ञान संहिता – ब्रह्मा और नारद का संवाद, ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति, विभिन्न ज्योतिर्लिंगों का वर्णन, ओंकार की उत्पत्ति, शिव का शब्द महत्व, शिव पूजा की विधि, शिवलिंग पूजा की विधि, पार्वती की तपस्या और शिव के साथ विवाह, षोडशोपचार से शिव पूजा की विधि, गणेश के सिर कटने की कथा, शिवरात्रि का महत्व, काशी में मोक्ष प्राप्ति की कथा इत्यादि।
विद्येश्वर संहिता – ब्रह्मा और विष्णु के युद्ध, शिवलिंग का बनना, उसकी प्रतिष्ठा की विधि और मूर्ति पूजा का वर्णन, पंच महायज्ञ का वर्णन, शिव पर बेलपत्र चढ़ाने का माहात्म्य, रुद्राक्ष का माहात्म्य, प्रणव (ओंकार) का वर्णन, संन्यासियों के लिए अंत्येष्टि कर्म का कथन इत्यादि।
कैलाश संहिता – ओंकार के अर्थ का वर्णन, प्रणव का उद्धार और उसके पूजन की विधि, शंख पूजा, गुरु पूजा और शिव पूजा का विधान, संन्यासियों के लिए अंत्येष्टि कर्म का कथन इत्यादि।
सनत्कुमार संहिता – जगत की सृष्टि और सात दीपों का वर्णन, नरक आदि का वर्णन, रूद्र माहात्म्य और शिव की पांच मूर्तियों की कथा, सनत्कुमार का चरित्र और उनकी सिद्धि का वर्णन, तीर्थों की कथा, दान की महिमा, धर्म-कर्म का उपदेश, शिव के श्मशान भूमि में रहने का कारण, ध्यान का वर्णन, काशी माहात्म्य, मण्डूकी की कथा, नंदी की कठिन तपस्या का वर्णन, नंदी विवाह, त्रिपुर की कथा, शिवलोक का वर्णन इत्यादि।
वायवीय संहिता – शिव की कृपा से ब्रह्मा की जगत रचना, कृष्ण को पुत्र की प्राप्ति, शक्ति आदि की सृष्टि का वर्णन, शक्तिरूपिणी स्त्रियों की रचना, दक्ष यज्ञ की कथा, शिव-पार्वती संवाद, पशुपत व्रत का वर्णन, भस्म की महिमा, उपमन्यु की कथा, ओम नमः शिवाय मंत्र का महत्व, शिव पूजा विधि, शिव के 112 अवतारों का वर्णन इत्यादि।
धर्म संहिता – श्री कृष्ण की शिव मंत्र दीक्षा, त्रिपुरदाह का वर्णन, अंधक दैत्य का वध, काम के प्रकार, काम तत्व का निरूपण, नित्य नैमित्तिक शिव पूजा की विधि, धर्म की कथा, हाथी के दान की कथा, शिव के सहस्त्र नाम, परशुराम के तुलादान की कथा, पंचब्रह्म की कथा, अरुंधती और देवताओं का संवाद, पृथु के पुत्र आदि की कथा, मन्वंतरों की कथा, साधुओं की संगति से लोगों की परम गति का लाभ इत्यादि।
भागवत पुराण
- भागवत दो हैं। एक श्रीमद्भागवत और दूसरा देवी भागवत। विष्णु के भक्त श्रीमद्भागवत को पुराणों में गिनते हैं जबकि देवी के भक्त देवी भागवत को।
- श्रीमद्भागवत वैष्णव ग्रंथ है जबकि देवी भागवत शाक्त ग्रंथ है।
श्रीमद्भागवत
- श्रीमद्भागवत में 12 स्कंध हैं। सभी स्कंधों को मिलाकर 335 अध्याय हैं। इसमें 18000 श्लोक हैं।
- वर्णित विषय –
पहला स्कंध – नैमिष क्षेत्र की कथा, अवतार कथा के प्रसंग में भगवान श्रीकृष्ण के चरित्र का वर्णन, श्री कृष्ण द्वारा परीक्षित की रक्षा, श्री कृष्ण का द्वारिका गमन, धृतराष्ट्र का स्वर्ग के लिए प्रस्थान इत्यादि।
दूसरा स्कंध – विष्णु की भक्ति की महिमा, विराट सृष्टि का वर्णन, विराट पुरुष की विभूति का वर्णन इत्यादि। दूसरे स्कंध से ही भागवत की कथा का आरंभ होता है।
तीसरा स्कंध – विदुर-उद्धव संवाद, कृष्ण द्वारा कंस का वध, विराट पुरुष की सृष्टि की कथा, ब्रह्मा की सृष्टि, भगवान विष्णु के वराह अवतार की कथा, कपिल मुनि का जन्म, ध्यान में योग के द्वारा आत्म स्वरूप का ज्ञान इत्यादि।
चौथा स्कंध – मनु की कन्याओं का वर्णन, दक्ष का यज्ञ, ध्रुव के पराक्रम का वर्णन, राजा पृथु द्वारा अश्वमेध यज्ञ इत्यादि।
पांचवां स्कंध – प्रियव्रत की कथा, भगवान विष्णु का जन्म, राजा भरत का विवाह, सुमेरु पर्वत के आसपास का वर्णन, समुद्र सहित छह द्वीपों का वर्णन, सूर्य की गति, चंद्रमा और उसकी गतियों, शेषनाग इत्यादि।
छठा स्कंध – प्रजा की रचना करने के लिए दक्ष का हरिभजन, इंद्र को नारायण कवच का उपदेश, वृत्रासुर की कथा, चित्रकेतु की कथा, दिति के पुंसवन व्रत की कथा इत्यादि।
सातवां स्कंध – भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की कथा और हिरण्यकशिपु का वध, चारों आश्रमों के धर्म का वर्णन इत्यादि।
आठवां स्कंध – स्वायंभुव, स्वारोचिष, उत्तम और तामस इन चार मनुओं का वर्णन, गजेंद्र मोक्ष का वर्णन, समुद्र मंथन का वर्णन, भगवान विष्णु का वामन अवतार एवं मत्स्य भगवान की लीलाओं का वर्णन इत्यादि।
नवां स्कंध – वैवस्वत मनु के पुत्र का वंश वर्णन, मांधाता के जामाता सौभरि की कथा, कुश और इक्ष्वाकु के पुत्र शशाद के कुल का वर्णन, निमि के वंश का वर्णन, परशुराम के पिता जमदग्नि का वध, विश्वामित्र के वंश की कथा, नहुष के पुत्र ययाति की कथा, दिवोदास की कथा, अनु द्रुहु व तुर्वसु के वंश की कथा इत्यादि।
दसवां स्कंध – भगवान विष्णु के कृष्ण अवतार की कथा कही गई है। कृष्ण के जन्म, उनकी लीलाओं, कंस का वध, कृष्ण के विवाह, सुदामा की कथा, युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ, सुभद्रा हरण इत्यादि।
ग्यारहवां स्कंध – यदुवंश के विध्वंस के लिए मूसल के पैदा होने की कथा, श्री कृष्ण का वैकुंठ गमन, विष्णु के अवतारों की विभूति का वर्णन, ज्ञान की कथा, आत्मा और अन्य सब पदार्थों की उत्पत्ति और नाश, भक्ति योग का वर्णन, कुसंग से योग मार्ग में रुकावट इत्यादि।
बारहवां स्कंध – कलियुग का प्रभाव, वर्णसंकरता का वर्णन, मगध वंश के भविष्य के राजाओं की नामावली, कल्कि अवतार की कथा, राजा परीक्षित को मोक्ष की प्राप्ति, जनमेजय का सर्प यज्ञ, पुराणों के लक्षण, महापुरुषों का वर्णन, मार्कण्डेय की तपस्या इत्यादि।
देवी भागवत
- श्रीमद्भागवत की तरह देवी भागवत में भी 12 स्कंध हैं। इसकी भी श्लोक संख्या 18000 है। इसमें कुल 317 अध्याय हैं।
- वर्णित विषय –
पहला स्कंध – पुराण के लक्षण, 18 महापुराणों के नाम, उपपुराणों के नाम, शुकदेव जी के जन्म व जीवन की कथा, नारद-व्यास संवाद, हयग्रीव अवतार की कथा, मधु-कैटभ दैत्यों की कथा, बृहस्पति की स्त्री तारा के साथ चंद्रमा का मेल-मिलाप, पुरूरवा का जन्म, धृतराष्ट्र, विदुर व पांडु की उत्पत्ति की कथा इत्यादि।
दूसरा स्कंध – सत्यवती की कथा, मत्स्यगंधा की कथा, व्यासदेव के जन्म की कथा, महामिष राजा का वृतांत, राजा शांतनु की उत्पत्ति व गंगा से विवाह, कर्ण की जन्म कथा, धृतराष्ट्र की मृत्यु, श्रीकृष्ण का वैकुंठ गमन, परीक्षित की कथा, जन्मेजय का सर्प यज्ञ इत्यादि।
तीसरा स्कंध – निर्गुण सगुण की कथा, सगुण के लक्षण, सत्यव्रत ऋषि की कथा, देवदत्त ब्राह्मण की कथा, ध्रुवसंधि की कथा, जयद्रथ का द्रौपदी हरण, विश्वामित्र की कथा, सुदर्शन की कथा, श्री राम का जन्म एवं वन गमन, नवरात्र का व्रत-उपदेश इत्यादि।
चौथा स्कंध – कृष्ण अवतार की कथा का प्रश्न, कर्म फल की प्रधानता, वरुण का धेनु हरण, पुत्र के लिए दिति का व्रत, प्रहलाद का राज्यारोहण, शुक्राचार्य का पुत्र यज्ञ, देवासुर संग्राम इत्यादि।
पांचवां स्कंध – सभी देवों में शिव की प्रधानता का वर्णन, महिषासुर की कथा, मंदोदरी उपाख्यान, ध्रूमलोचन युद्ध, शुंभ-निशुंभ की कथा, चंड-मुंड का वध, रक्तबीज का युद्ध, महामाया का महात्म्य वर्णन, शिवलिंग की थाह लेने के लिए ब्रह्मा और विष्णु का उद्योग, सुरथ और समाधि की देवी उपासना इत्यादि।
छठा स्कंध – वृत्रासुर की कथा, इंद्र के स्वर्ग छोड़कर मानसरोवर जाने की कथा, इंद्र और नहुष की कथा, कलियुग महिमा, शुनःशेप की कथा, लक्ष्मी को शिव का वरदान, अगस्त्य और वशिष्ठ की उत्पत्ति, जनक की उत्पत्ति, हैहय-गण की कथा, नारद के पुत्र से जुड़ी कथा इत्यादि।
सातवां स्कंध – इंद्र और सूर्य वंश की कथा, च्यवन ऋषि की कथा, शर्याति की कथा, मांधाता के वंश का वर्णन, सत्यव्रत की कथा, हरिश्चंद्र एवं उसके पुत्र रोहित की कथा, शताक्षी देवी का महात्म्य, दक्ष के घर सती की उत्पत्ति, तारकासुर का वर्णन, योग का वर्णन, ब्रह्म ज्ञान का उपदेश, भक्ति और ज्ञान का वर्णन, देवी पूजा का विधान इत्यादि।
आठवां स्कंध – वराह अवतार की कथा, जंबूद्वीप का वर्णन, सुमेरु पर्वत का वर्णन, नद, नदी और देवी का वर्णन, सूर्य व चंद्रमा की गति का वर्णन, नरकों के नाम इत्यादि।
नवां स्कंध – देवी की अनेक मूर्तियों का वर्णन और पूजा विधि, विष्णु और महादेव की उत्पत्ति, सरस्वती कवच और स्तोत्र, कलि का वर्णन, कल्कि अवतार की कथा, पृथ्वी की उत्पत्ति, गंगा की उत्पत्ति व पूजा, तुलसी की कथा, विश्वध्वज का उपाख्यान, सीता हरण, सीता का द्रौपदी रूप से जन्म ग्रहण, द्रोपदी के पांच पति होने का कारण, शंखचूड़ और शिव का युद्ध, महालक्ष्मी की कथा, समुद्र मंथन की कथा, सती सावित्री और सत्यवान की कथा, जन्माष्टमी और शिवरात्रि व्रत का विधान, 86 कुंडों का वर्णन, मनसा देवी की कथा, सुरभि की कथा, दुर्गा और राधा का महात्म्य इत्यादि।
दसवां स्कंध – शिव द्वारा विंध्याचल की गति रोकना, चाक्षुष मनु की कथा, महाकाली चरित, मधु-कैटभ वध, शुंभ-निशुंभ वध, महिषासुर वध, भ्रामरी देवी की कथा इत्यादि।
ग्यारहवां स्कंध – सदाचार और नित्यक्रिया का वर्णन, रुद्राक्ष की महिमा, भस्म धारण का महात्म्य, त्रिपुंड का महात्म्य, गायत्री की 24 मुद्रा और गायत्री जाप के महात्म्य इत्यादि।
बारहवां स्कंध – गायत्री की अद्भुत महिमा का वर्णन, गायत्री सहस्त्रनाम, गायत्री स्तोत्र, गायत्री की कृपा से गौतम की सिद्धि की कथा इत्यादि।
नारद पुराण
- नारद पुराण में वर्णित है कि इसमें 25000 श्लोक हैं। नारद पुराण के दो भाग हैं पूर्व और उत्तर। पूर्व में 125 और उत्तर में 82 अध्याय हैं।
- यह पुराण वैष्णव पुराण की श्रेणी में आता है।
- इस पुराण की विशेषता यह है कि इसके प्रत्येक अध्याय के अंत में श्लोकों की संख्या दी गई है।
- वर्णित विषय –
पूर्व भाग – गंगा की उत्पत्ति और महात्म्य, भागीरथ के गंगा लाने की कथा, श्राद्ध विधि, यमलोक के मार्ग का वृतांत, मोक्ष धर्म का वर्णन, परलोक की व्याख्या, वेदांगों का वर्णन, शुकदेव जी की उत्पत्ति की कथा, नारद के पहले जन्म का वृतांत, मधु कैटभ की उत्पत्ति, सरस्वती का अवतार, पुराणों की अनुक्रमणिका इत्यादि।
उत्तर भाग – द्वादशी महात्म्य, मोहिनी चरित, मोहिनी और राजा रुक्मांगद की कथा, विभिन्न तीर्थ स्थानों यथा गया, काशी, पुरुषोत्तम, प्रयाग, कुरुक्षेत्र, हरिद्वार, बद्रिकाश्रम, कामाख्या, प्रभासतीर्थ, गोकर्ण, अवंती आदि का महात्म्य इत्यादि।
मार्कण्डेय पुराण
- मार्कण्डेय पुराण में कुल 138 अध्याय हैं। इस में श्लोकों की संख्या लगभग 9000 है।
- मार्कण्डेय पुराण में पक्षियों को प्रवचन का अधिकारी बनाकर उनके द्वारा सब धर्मों का निरूपण किया गया है।
- इसमें संसार की असारता का वर्णन करते हुए भगवान का चरित वर्णन है।
- वर्णित विषय –
पक्षियों की धर्मसंज्ञा, पूर्व जन्म की कथा, बलदेव जी की तीर्थ यात्रा, द्रोपदेय कथा, हरिश्चंद्र चरित, दत्तात्रेय कथा, हैहय कथा, अलर्क चरित, 9 तरह की सृष्टि रचना, कल्प-कल्पांतरों की कथा, द्वीप-द्वीपांतरों की कथा, मनु का चरित, दुर्गा की कथा, वत्सप्रीति चरित, इक्ष्वाकु, तुलसी, रामचंद्र, कुरु वंश, सोम,वंश पुरूरवा, नहुष, ययाति श्री कृष्ण आदि।
अग्नि पुराण
- अग्नि पुराण व वह्नि पुराण दो प्रकार का प्रचलित है।
- अग्नि पुराण में 383 अध्याय हैं जबकि वह्नि पुराण में 181 अध्याय हैं। इस पुराण में 15000 श्लोक माने गए हैं।
- वर्णित विषय –
अग्नि पुराण – समस्त अवतारों की कथा, शालग्राम आदि की पूजा, सर्वदेव प्रतिष्ठा, गंगा आदि तीर्थ का महात्म्य, द्वीपों का वर्णन, ऊपर और नीचे के लोकों की कथा, आश्रमों के धर्म, व्रत आदि का विधान, गायत्री का अर्थ वर्णन, लिंग स्तोत्र, राजाओं के अभिषेक का मंत्र, राजधर्म वर्णन, रत्नों के लक्षण, धनुर्विद्या और व्यवहार ज्ञान, देवासुर संग्राम की कथा, आयुर्वेद का वर्णन, पशु चिकित्सा, वेदांगों का वर्णन, योग शास्त्र और ब्रह्म ज्ञान का निरूपण, पुराण के सुनने का फल इत्यादि।
वह्नि पुराण – अग्नि और ब्रह्मा के स्तुति, स्नान और भोजन की विधि, वराह, नरसिंह और वामन अवतार की कथा, वृषदान का वर्णन, अन्नदान का महात्म्य, दिवाली की कथा, च्यवन और नहुष की कथा, गंगा अवतार की कथा, सीता स्वयंवर से लेकर भगवान श्री राम के लंका वापस आने तक की कथा इत्यादि।
भविष्य पुराण
- भविष्य पुराण में 4 पर्व और 585 अध्याय हैं।
- भविष्य पुराण शैव पुराण की श्रेणी में आता है।
- वर्णित विषय –
ब्राह्म पर्व – राजा शातनिक को व्यास जी की आज्ञा से सुमन्त द्वारा धर्मशास्त्र सुनाया गया। इसमें ब्रह्मांड की सृष्टि, चातुर्वर्ण्य व्यवस्था, संस्कार, व्रतों का महात्म्य, सामुद्रिक शुभाशुभ लक्षण, नक्षत्र पूजा विधि इत्यादि। इसमें व्यास-भीष्म संवाद, ब्रह्मदेव-विष्णु संवाद और व्योम पूजा का विधान है।
मध्यम पर्व – लोक वर्णन, ब्राह्मण महात्म्य, बाग लगाने की विधि, यज्ञ की विधि, गृह-वास्तु की विधि, पीपल का पेड़ लगाने और जलाशय की प्रतिष्ठा करने की विधि, वृक्षों की उत्तम मध्यम और अधम श्रेणियों का वर्णन इत्यादि।
उत्तर पर्व – श्री कृष्ण-युधिष्ठिर संवाद, अनेक व्रतों का माहात्मय, दशावतार चरित्र, दान और पूजा का माहात्म्य, कृष्ण के द्वारकापुरी जाने का वर्णन इत्यादि।
प्रतिसर्ग पर्व – प्रतिसर्ग पर्व चार खंडों में विभाजित है।
- पहला खंड – कृत युग के राजाओं के वर्णन में वैवस्वत मनु से लेकर सुदर्शन नरपति के राज्य काल तक का हाल, द्वापर युग के नरपतियों का विवरण, मलेच्छ यज्ञ का वृत्तांत, मलेच्छ भाषा और उनके देशों का हाल, आर्य देश में मलेच्छ आगमन के कारण, मगध राज का वर्णन, गौतम बुद्ध की उत्पत्ति, चार प्रकार के क्षत्रियों की उत्पत्ति का विवरण इत्यादि।
- दूसरा खंड – विक्रम का यज्ञ, भर्तृहरि का वृत्तांत, सत्यनारायण की पूरी कथा, पाणिनी का वृत्तांत, महानन्दि नृप की कथा और व्याकरण महाभाष्यकार पतंजलि के वृतांत का उल्लेख इत्यादि।
- तीसरा खंड – कौरवों, यादवों और पांडवों के पुनर्जन्म की कथा, शालिवाहन के द्वारा शकों के पराजय की कथा, राजा भोज की दिग्विजय यात्रा, जयचंद और पृथ्वीराज की कथा, संयोगिता स्वयंवर, पृथ्वीराज का क्षत्रियों से युद्ध, ईदल-पद्मिनी विवाह और कुतुब मीनार का उल्लेख इत्यादि।
- चौथा खंड – बुंदेलखंड का वृतांत, जाटों का हाल, उदयपुर और कन्नौज का वृतांत, दिल्ली के मुसलमान राजाओं का हाल, मध्वाचार्य, वराहमिहिर, जयदेव, चैतन्य, शंकराचार्य, गोरखनाथ आदि की उत्पत्ति, कबीर, नरसी, पीपा, नानक आदि का साधु चरित्र, अकबर व औरंगजेब आदि मुगलों का वर्णन, शिवाजी का वर्णन, नादिरशाह के आक्रमण का वर्णन, अंग्रेजों का आर्य देश में आगमन इत्यादि।
ब्रह्मवैवर्त पुराण
- ब्रह्मवैवर्त पुराण चार खंडों में विभाजित है जिसमें अध्यायों की कुल संख्या 276 है।
- वर्णित विषय –
ब्रह्म खंड – सृष्टि रचना, रासमंडल में राधा की उत्पत्ति, वेद आदि शास्त्रों की उत्पत्ति, कश्यप वंश का वर्णन, नारद का गंधर्व रूप में जन्म, नारद की उत्पत्ति कथा, बाणासुर कृत शिव स्तोत्र इत्यादि।
प्रकृति खंड – ब्रह्मांड की उत्पत्ति, देव और देवी-गणों की उत्पत्ति, सरस्वती पूजा विधान, पृथ्वी की उत्पत्ति, भागीरथ का गंगा को पृथ्वी पर लाना, भगवान शिव द्वारा शंखचूड़ वध, तुलसी पत्र का महत्व, सावित्री-सत्यवान की कथा, इंद्र के प्रति दुर्वासा का शाप, समुद्र मंथन और लक्ष्मी प्राप्ति, जरत्कारु का मनसा देवी के साथ विवाह, राधा-सुदामा विवाद, दुर्गा के 16 नामों की व्याख्या, दुर्गा स्तुति व प्रकृति पूजा का फल निरूपण इत्यादि।
गणेश खंड – पुण्यक व्रत कथा, गणेश जन्म की कथा, गणेश का मंगलाचार, कार्तिकेय का अभिषेक, लक्ष्मी चरित, कार्तवीर्य और जमदग्नि का युद्ध, ब्रह्मा-परशुराम संवाद, शंकर-परशुराम संवाद, गणेश-परशुराम संवाद, गणेश के एकदंत होने की कथा, राजा सुचंद्र-परशुराम युद्ध इत्यादि।
श्रीकृष्ण जन्म खंड – नारद-नारायण संवाद, राधा-सुदामा का परस्पर शाप, श्रीकृष्ण का जन्म, जन्माष्टमी व्रत का वर्णन, श्रीकृष्ण का नामकरण, राधा के 16 नाम, कालिया दमन, दुर्वासा का विवाह, अष्टावक्र की कथा, श्रीकृष्ण का संक्षिप्त चरित, इंद्र और अहिल्या की पाप-कथा, कंस का वध, कृष्ण का विवाह, शिशुपाल और दंतवक्र का वध, कौरव-पांडव युद्ध, उषा-अनिरुद्ध का गंधर्व विवाह, पांडवों का स्वर्गारोहण, महापुराण और उपपुराण के लक्षण और उनके नाम इत्यादि।
लिंग पुराण
- लिंग पुराण के दो भाग हैं। इन दोनों भागों को मिलाकर कुल 163 अध्याय हैं। लिंग पुराण में लगभग एक 11000 श्लोक हैं।
- लिंग पुराण में शिव के 28 अवतारों का वर्णन मिलता है।
- वर्णित विषय –
पूर्व भाग – संसार की रचना का वर्णन, ब्रह्मांड की उत्पत्ति, योग मार्ग से शिव पूजा, लिंग पूजा विधि, ब्रह्मा और विष्णु के झगड़े मिटाने के लिए लिंग की उत्पत्ति, शिव द्वारा शैव-महिमा का वर्णन, जंबूद्वीप के नव वर्षों का वर्णन, शिव के मुख्य चार स्थानों का वर्णन, गंगा की उत्पत्ति, सूर्य और ग्रहों का वर्णन, पराशर की उत्पत्ति, कृष्ण अवतार कथा, त्रिपुर की कथा, प्रणव की महिमा, काशी महात्म्य, वराह और नरसिंह अवतार की कथा, पार्वती की तपस्या और शिव विवाह, गणेश की उत्पत्ति इत्यादि।
उत्तर भाग – कौशिक कथा, विष्णु महात्म्य, लक्ष्मी प्राप्ति के उपाय, शिव के पशुपति नाम का अर्थ, शिव स्तुति, शिव पूजा नियम, अघोर पूजा, तुलादान का वर्णन, अनेक प्रकार के दानों की विधि, मृत्युंजय विधि, लिंग पुराण के पढ़ने, सुनने और सुनाने का फल इत्यादि।
वाराह पुराण
- वाराह पुराण में कुल 218 अध्याय हैं। इसमें लगभग 24000 श्लोक हैं।
- इसमें मुख्य रूप से वराह भगवान की महिमा का वर्णन किया गया है।
- वर्णित विषय –
सृष्टि कथा, वराह द्वारा रुद्र, सनत्कुमार और मरीचि आदि की उत्पत्ति, प्रियव्रत की कथा, अश्वशिरा की कथा, धर्मव्याध की कथा, सुप्रतीक की कथा, श्राद्धकाल और पितृ-गीता का वर्णन, अग्नि की उत्पत्ति, अश्विनी कुमार के जन्म की कथा, गौरी की उत्पत्ति, पार्वती-महादेव विवाह, गणेश जन्म कथा, नाग उत्पत्ति की कथा, कात्यायनी देवी की उत्पत्ति, वृत्रासुर वृत्तांत, कुबेर की उत्पत्ति, रुद्र की उत्पत्ति, नचिकेता की कथा, आरुणिक की कथा, एकादशी के व्रत की कथा, ग्रहण योग्य और त्याग योग्य स्त्री का वर्णन, अमरावती वर्णन, वैष्णवी चरित, अंधकासुर व्रत कथा, महिषासुर की कथा, पृथ्वी-सनत्कुमार संवाद, चांडाल-ब्रह्मराक्षस संवाद, बदरिकाश्रम, मथुरा, द्वारावती, चक्रतीर्थ का महात्म्य, कपिल चरित, श्राद्ध की उत्पत्ति, यमदूतों का स्वरूप, गोकर्णेश्वर व श्रृंगेश्वर महात्म्य, पुराण पाठ और श्रवण का फल इत्यादि।
स्कंद पुराण
- स्कंद पुराण सबसे बड़ा है।
- इसमें लगभग 81000 से भी ज्यादा श्लोक हैं। यह कितने खंडों में विभाजित है यह स्पष्ट नहीं है। नारद पुराण के अनुसार स्कंद पुराण सात खंडों में विभाजित है। यहां उन्हीं सात खंडों का उल्लेख किया गया है।
- वर्णित विषय –
माहेश्वर खंड – दक्ष की कथा, शिव की कथा, शिव विवाह, शिव महात्म्य, रावण की शिव पूजा, समुद्र मंथन का वर्णन, नहुष और ययाति की कथा, वृत्रासुर की कथा, दधीचि की कथा, वलि और वामन अवतार की कथा, शिवरात्रि व्रत महात्म्य, शिव जी द्वारा जुए में पार्वती से हारना, दान का महात्म्य, सोमनाथ की उत्पत्ति, कर्मों का फल, घटोत्कच विवाह, काली चरित, गायत्री महात्म्य इत्यादि।
वैष्णव खंड – अयोध्या आदि नगरों का महात्म्य चैत्र आदि मासों का महात्म्य मार्कण्डेय की कथा, दुर्वासा की कथा, इंद्रादि अवतार कथा, नृसिंह स्तोत्र इत्यादि।
ब्रह्म खंड – धर्मारण्य की कथा, हयग्रीव की कथा, देवासुर युद्ध, रामचरित, शिव मंत्र का महात्म्य, गोकर्ण महात्म्य, रुद्राक्ष महात्म्य, काश्मीर राजा की कथा, पुराण के सुनने का फल इत्यादि।
काशी खंड – विंध्याचल का वर्णन, पतिव्रता की कथा, यमलोक का वर्णन, चंद्र और सूर्य लोक आदि लोकों का वर्णन, गंगा की महिमा, ज्ञानवापी (काशी) का वृत्तांत, सदाचार कथन, स्त्रियों के लक्षण, गृहस्थ धर्म के वर्णन, मृत्यु के लक्षण, दिवोदास राजा का वर्णन, विशेश्वर की कथा, काशी के और शिवलिंगों की कथा, सती देह त्याग इत्यादि।
रेवा खंड – अवतार कथा, अनेक तीर्थों का वर्णन, मांधाता की कथा, कावेरी महात्म्य, दुर्वासा चरित, ओंकार की महिमा, नरक वर्णन, गोदान महात्म्य, शिवलोक का वर्णन, रेवा चरित की कथा इत्यादि।
तापी खंड – तापी के दोनों ओर के देवालयों का वर्णन, हरिहर क्षेत्र और अन्य तीर्थों के महात्म्य का वर्णन, तापी के सागर मिलन की कथा इत्यादि।
प्रभास खंड – मुख्यतः तीर्थों और क्षेत्रों का वर्णन है। इसके अतिरिक्त प्रभास क्षेत्र की महिमा, सरस्वती नदी की महिमा, सावित्री महात्म्य, च्यवन ऋषि की कथा, शिवरात्रि की महिमा इत्यादि।
वामन पुराण
- वामन पुराण में कुल 55 अध्याय हैं। इसमें लगभग 10000 श्लोक हैं।
- इसमें वामन अवतार की कथा विस्तार से कही गई है।
- वर्णित विषय –
पुलस्त्य-नारद संवाद, शंकर की तीर्थ यात्रा, सती का देह त्याग, नर-नारायण के साथ प्रहलाद का युद्ध, सुकेशी राक्षस की कथा, पुष्कर द्वीप की कथा, शुंभ-निशुंभ दैत्य का वध, कुरु राजा की कथा, पार्वती की तपस्या और शिव-पार्वती विवाह, महिषासुर का वध, धूमलोचन, चंड, मुंड, रक्तबीज, मुर इत्यादि दैत्यों के विनाश की कथा, अंधकासुर-शंकर विवाद, दंडक राजा की कथा, वामन अवतार की कथा, 12 महीनों में विष्णु की पूजा का नियम, वृद्ध पुरुष की प्रशंसा इत्यादि।
कूर्म पुराण
- कूर्म पुराण के दो भाग हैं। पहले भाग में 52 अध्याय और दूसरे में 44 अध्याय हैं।
- मूल कूर्म पुराण में 17000 श्लोक हैं परंतु वर्तमान में प्रचलित कूर्म पुराण में लगभग 7000 श्लोक हैं।
- वर्णित विषय –
पूर्व भाग – इंद्रद्युन्न की कथा, वर्णाश्रम धर्म निरूपण, संसार की उत्पत्ति, देवी का अवता,र भृगु और मनु आदि की सृष्टि रचना, हिरण्यकशिपु और अंधक की पराजय, वामन अवतार, सूर्यवंश का वर्णन, इक्ष्वाकु वंश का वर्णन, पुरूरवा और जयद्रथ के वंश की कथा, व्यास की तीर्थ यात्रा का वर्णन, प्रयाग महात्म्य, सात द्वीपों का वर्णन, यमुना महात्म्य, मन्वंतरों की कथा इत्यादि।
उत्तर भाग – ज्ञान की प्रशंसा, ज्ञान योग, ईश्वर की महिमा, अष्टांग योग का वर्णन, ब्रह्मचारी के धर्म, भोजन विधि, श्राद्ध के नियम, वानप्रस्थ और संन्यास धर्मों का वर्णन, प्रलय का वर्णन, अनेक प्रायश्चितों और अनेक तीर्थों के महात्म्य इत्यादि।
मत्स्य पुराण
- मत्स्य पुराण में 291 अध्याय हैं। इस पुराण में श्लोकों की संख्या लगभग 14000 है।
- मत्स्य पुराण में 18 पुराणों की सूची प्राप्त होती है।
- वर्णित विषय –
जगत की सृष्टि, चंद्र और सूर्य वंश का वर्णन, पितृ वंश का वर्णन, श्राद्ध विधि, ययाति का चरित, कच को संजीवनी विद्या का लाभ, शर्मिष्ठा और देवयानी की कथा, यदुवंश की कथा, अग्नि वंश की कथा, अगस्त्य की उत्पत्ति, सूर्य व चंद्र ग्रहण में स्नान की विधि, कल्याण सप्तमी आदि व्रतों का वर्णन, शिव चतुर्दशी व्रत, विष्णु व्रत, प्रयाग महात्म्य, हिमालय का वर्णन, जम्बू दीप का वर्णन, खगोल वर्णन, त्रिपुर दाह की विस्तारपूर्वक कथा, तारक वध, कालनेमि की पराजय, देव-दानव युद्ध, हिरण्यकश्यप वध, कावेरी महात्म्य, नर्मदा महात्म्य, भृगु-अंगिरा के वंश का वर्णन, अत्रि, विश्वामित्र, वशिष्ठ, पराशर, अगस्त्य का वर्णन, सावित्री की कथा, वामन अवतार की कथा, मगध देश में भविष्य के राजाओं की कथा, अन्ध्र, यवन व मलेच्छगण के राज्यों का वर्णन, विविध दानों का फल और विधि, समुद्र मंथन की कथा इत्यादि।
गरुड़ पुराण
- गरुड़ पुराण 2 खंड में विभाजित है। दोनों खंडों को मिलाकर कुल 288 अध्याय हैं। इसमें 18000 श्लोक हैं।
- हिंदू समाज में श्राद्ध के समय गरुड़ पुराण कथा का वाचन होता है।
- वर्णित विषय –
पूर्व खंड – सृष्टि रचना, विष्णु और लक्ष्मी की पूजा विधि, विष्णु सहस्त्रनाम, सूर्य पूजा, सर्प मंत्र, शिव पूजा, विषहरण, गायत्री महात्म्य, दुर्गा पूजा, देवी प्रतिष्ठा का वर्णन, प्रियव्रत वंश वर्णन, भारतवर्ष का वर्णन, पाताल और नरकों का वर्णन, स्त्रियों के शुभ-अशुभ लक्षण, रत्नों और मोतियों की पहचान, गया महात्म्य, 11 मनुपुत्रों का वर्णन, गृह शांति, वानप्रस्थ और संन्यासी के धर्म का वर्णन, शिवरात्रि और एकादशी आदि व्रतों का वर्णन, जन्मेजय के वंश का वर्णन, पतिव्रता महात्म्य, रामायण की कथा, विभिन्न रोगों की औषधि, पशुओं की चिकित्सा, विष्णु कवच का वर्णन, प्रलय का वर्णन, आठ प्रकार के योग का वर्णन, ज्ञानामृत का वर्णन, ब्रह्म ज्ञान का वर्णन, आत्मज्ञान का कथन, गीतासार, योग का प्रयोजन इत्यादि।
उत्तर खंड – गरुड़ और विष्णु का प्रश्नोत्तर, मरणोत्तर गति का वर्णन, नरकों का वर्णन, शवदाह विधि, बभ्रुवाहन और प्रेत का संवाद, मनुष्य जन्म लाभ की महिमा, प्रेत योनि छुड़ाने का उपाय, यमलोक का मार्ग, मनुष्यों की आयु का निर्धारण, बाल मृत्यु का कर्म निर्णय, दान महात्म्य, जीव की उत्पत्ति, सांड़ को छोड़ने का फल और विधि, पूर्व जन्म के कर्मों का संबंध वर्णन, आत्महत्यारे के श्राद्ध करने का निषेध, वार्षिक श्राद्ध, गरुड़ पुराण को पढ़ने और सुनने का फल इत्यादि।
ब्रह्मांड पुराण
- ब्रह्मांड पुराण के दो भाग हैं। पहले भाग को प्रक्रियापाद और दूसरे को उपोद्धातपाद कहते हैं। ब्रह्मांड पुराण में कुल 142 अध्याय हैं। इस पुराण में श्लोकों की कुल संख्या 12000 है।
- वर्णित विषय –
प्रक्रियापाद – सृष्टि वर्णन, देवों और असुरों की उत्पत्ति, योगधर्म, ओंकार की महिमा, कल्प संख्या, ब्रह्म की उत्पत्ति, ज्वर का वर्णन, भरत वंश वर्णन, जंबूद्वीप वर्णन, पर्वतों और नदियों का वर्णन, द्वीप-द्वीपांतरों का वर्णन, नीचे और ऊपर के लोकों का वर्णन, चंद्र, सूर्य और गृह-नक्षत्र आदि का वर्णन, पितरों का वर्णन, पर्वों का निर्णय, कलियुग का विशेष वर्णन, धर्म-अधर्म निरूपण, वेदों के विभाग का वर्णन, पृथु के वंश का वर्णन इत्यादि।
उपोद्धातपाद – श्राद्ध का वर्णन, वरुण, इक्ष्वाकु और मिथिला के वंशों का वर्णन, राजयुद्ध, परशुराम चरित, भविष्य कथा, वैवस्वत मनु का वंश, चंद्र वंश का वर्णन, भविष्य के मनुओं का वर्णन, 14 लोकों और नरकों का वर्णन, प्रलय और फिर संसार की रचना का वर्णन इत्यादि।
गागर मेंं सागर भरने के लिए धन्यवाद
श्री मान हमे ये पुराण ऑनलाइन ऑडर करना है, तो कृपा कर के मार्ग दर्शन प्रदान करे।
I read Ganesh Puran
That’s missing here
I am reading Datatreya Puran but that’s not written by Ved Vyas
Parshuram is also a sort of Puran I have read .
These are not mentioned here.
पुराणों की संख्या के संबंध में भिन्न-भिन्न मान्यताएं हैं। विभिन्न विद्वान इसकी संख्या 18 से लेकर 108 के बीच सुनिश्चित करते हैं। इन पुराणों को चार अलग-अलग वर्गों में रखा गया है जिन्हें महापुराण, पुराण,अतिपुराण एवं उपपुराण कहा गया है। इस आलेख में सिर्फ अट्ठारह महापुराण का वर्णन है। इन अट्ठारह महापुराणों के नामों के संदर्भ में भी विद्वानों की भिन्न-भिन्न राय है। एक आलेख में सभी 108 पुराणों का उल्लेख करना संभव नहीं है। आलेख के विस्तार को देखते हुए सिर्फ महापुराणों का ही उल्लेख किया गया है। इसका यह अर्थ नहीं है कि अन्य पुराण नहीं हैं। अन्य प्रमुख पुराणों की चर्चा भिन्न आलेख में करने की योजना है। जल्द ही वह आलेख आपके लिए उपलब्ध होगा।
From where to buy this purans?
Currently ,
Ashur is monotheist th god of Judaism, Islam , Christianity and Islamic Sufi faiths such as Baha’i , Sikhism , many others that deliver pothi .
Why this particular name is missing in Bhavishya Puran.
Where Mohammad name do appear. And names of few Islamic tyrant kings. Monotheist ‘ the god ‘ with consort Isther and their Churches across globe are active. No where , ashur is mentioned in Bhavishya Puran. As , in those days Sanskrit was global language but people of the region changed into Hebrew. Ever since then, language changed. Asur is demon worshipped in Kaliyug. This is absent in Bhavishya Puran.
Pingback: 18 पुराण के नाम: जानिए 18 पुराणों के नाम और उनका महत्व