भारत में भगवान शिव की पूजा मानव और लिंग दो रूपों में की जाती है। लेकिन शिव मंदिरों में प्रधान देवता की मूर्ति के रूप में शिवलिंग की स्थापना की जाती है और मुख्य रूप से उनकी पूजा होती है। भारत में शिवलिंग पूजा की परंपरा प्राचीन काल से ही रही है जिसके साहित्यिक और पुरातात्विक प्रमाण उपलब्ध हैं। कूर्म पुराण एवं लिंग पुराण में लिंग पूजा के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डाला गया है। वामन पुराण में उन पवित्र स्थानों के माहात्म्य का वर्णन किया गया है जहां प्राचीन शिवलिंगों की स्थापना की गई थी। महाभारत में उपमन्यु आख्यान में शिवलिंग पूजा की महिमा का वर्णन किया गया है।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर एक महत्वपूर्ण प्राचीन हिन्दू मंदिर है, जहां स्थित सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की गणना 12 ज्योतिर्लिंगों में प्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में होती है। सोमनाथ मंदिर गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में प्रभास पाटन के पास स्थित है। सोमनाथ को अनंत देवालय भी कहा जाता है। स्कंद पुराण के प्रभास खंड में वर्णित है कि सृष्टि निर्माण के प्रत्येक काल में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग विद्यमान रहा है।
भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का स्थान तीसरा है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में क्षिप्रा नदी के तट पर पवित्र उज्जैन नगर में स्थित है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग भारत का एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जो दक्षिणमुखी है। शास्त्रों में कहा गया है कि दक्षिण दिशा के स्वामी स्वयं भगवान यमराज हैं। जो भी व्यक्ति इस मंदिर में आकर भगवान शिव की सच्चे मन से प्रार्थना करता है, उसे मृत्यु उपरांत यमराज द्वारा दी जाने वाली यातनाओं से मुक्ति मिलती है।
हिंदुओं के पवित्र तीर्थस्थलों में से एक रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग मंदिर बहुत ही विशाल व प्रसिद्ध मंदिर है। शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से 11वां ज्योतिर्लिंग “रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग” है। यह तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। यह तीर्थ हिन्दुओं के चार धामों में से एक है। रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग मंदिर को रामनाथस्वामी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। भारत के उत्तर में काशी की जो मान्यता है, वही दक्षिण में रामेश्वरम की है।
हिंदू धर्म के पवित्र तीर्थ स्थलों में केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का विशेष महत्व है। 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ ज्योतिर्लिंग सबसे ऊंचाई पर स्थित ज्योतिर्लिंग है। उत्तराखण्ड के सीमान्त जनपद रूद्रप्रयाग के उत्तरी भाग में हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य केदारनाथ ज्योतिर्लिंग स्थित है। श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग को केदारेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। केदारनाथ ज्योतिर्लिंग मंदाकिनी नदी के तट पर समुद्र तल से 3584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग जिस क्षेत्र में स्थित है उसका ऐतिहासिक नाम केदार खंड है। केदारनाथ मन्दिर उत्तराखंड के चार धाम और पंच केदार का एक हिस्सा है।
वाराणसी (उत्तर प्रदेश) स्थित काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग में से सातवाँ ज्योतिर्लिंग है। इसे विशेश्वर या विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है। गंगा तट स्थित काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का दर्शन हिंदुओं के लिए सबसे पवित्र माना जाता है। काशी को भगवान शिव की नगरी और भोलेनाथ को काशी का महाराजा कहा जाता है। वाराणसी को अविमुक्त क्षेत्र भी कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना गया है।
12 ज्योतिर्लिंगों में से आठवां ज्योतिर्लिंग त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग है, जो महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित है। यह एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जहाँ ब्रह्मा, विष्णु और महेश एकसाथ विराजते हैं। तीन नेत्रों वाले भगवान शिव के यहाँ विराजमान होने के कारण इस जगह को त्र्यंबक (तीन नेत्रों वाले) कहा जाता है। त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर तीन पहाड़ियों के बीच स्थित है, जिनमें ब्रह्मगिरी, नीलगिरि और कालगिरी शामिल हैं। ब्रह्मगिरी को शिव का स्वरूप माना जाता है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर हिंदू धर्म का एक प्रसिद्ध मन्दिर है जहां भगवान शिव को समर्पित 12 ज्योतिर्लिंगों में से 10वां ज्योतिर्लिंग स्थित है। भगवान शिव का यह प्रसिद्ध मंदिर गोमती द्वारका और बैत द्वारका के बीच गुजरात में सौराष्ट्र के तट पर स्थित है। द्वारका पुरी से इसकी दूरी लगभग 15 किलोमीटर है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में से द्वितीय ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह आंध्रप्रदेश के कृष्णा जिले में स्थित है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार ‘मल्लिका’ माता पार्वती का नाम है और ‘अर्जुन’ भगवान शिव का है। इस प्रकार सम्मिलित रूप से ज्योतिर्लिंग का नाम ‘मल्लिकार्जुन’ हो गया। इस ज्योतिर्लिंग में भगवान शिव और देवी पार्वती दोनों की ज्योतियां प्रतिष्ठित हैं।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग मंदिर हिन्दूओं का एक प्रमुख तीर्थस्थल है यह मंदिर पूर्णतः भगवान शिव को समर्पित है। भीमाशंकर मंदिर में स्थित ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है तथा 12 ज्योतिर्लिंग में से भीमाशंकर को छठा ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह मंदिर महाराष्ट्र के पुणे से लगभग 110 किलोमीटर की दूरी पर तथा नासिक से 210 किलोमीटर की दूरी पर सह्याद्रि नामक पर्वत पर स्थित है।
महाराष्ट्र में औरंगाबाद के नजदीक दौलताबाद से बारह मील दूर वेरुल गाँव के पास घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर स्थित है। बारह ज्योतिर्लिंगों में यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है। इसे घुश्मेश्वर, घुसृणेश्वर या घृष्णेश्वर कहा जाता है। यह शिवलिंग शिव की परम भक्त रही घुश्मा की भक्ति का स्वरूप है। ज्योतिर्लिंग ‘घुश्मेश’ के समीप ही एक सरोवर भी है, जिसे शिवालय के नाम से जाना जाता है। बौद्ध भिक्षुओं द्वारा निर्मित एलोरा की प्रसिद्ध गुफाएँ इस मंदिर के समीप ही स्थित हैं।
समुद्र मंथन की कथा का वर्णन पुराणों में मिलता है। अमृत प्राप्ति के लिए देवताओं और असुरों ने मंदराचल पर्वत और वासुकि नाग की सहायता से क्षीरसागर का मंथन किया। समुद्र मंथन के लिए ही भगवान विष्णु द्वारा कूर्म अवतार धारण किया गया। समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को पीने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया जिसके कारण वे नीलकंठ कहलाए। पद्म पुराण के स्वर्ग खंड, श्रीमद्भागवत के आठवें स्कंध, देवी भागवत के नवें स्कंध, ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृति खंड, स्कंद पुराण के माहेश्वर खंड और मत्स्य पुराण में समुद्र मंथन की कथा का विस्तार से वर्णन किया गया है।
विभिन्न पौराणिक ग्रंथों में भगवान विष्णु के दशावतार की चर्चा संक्षेप में या विस्तार के साथ की गई है। भगवान विष्णु के 10 अवतार हैं – मत्स्य अवतार, कूर्म अवतार, वराह अवतार, नरसिंह अवतार, वामन अवतार, परशुराम अवतार, राम अवतार, कृष्ण अवतार और कल्कि अवतार। दशावतार में भगवान विष्णु का वामन अवतार पांचवां अवतार है। भगवान विष्णु ने इंद्र को उसका राज्य वापस दिलाने के लिए एवं राजा बलि के अहंकार को समाप्त करने के लिए वामन अवतार ग्रहण किया था। वामन अवतार भगवान विष्णु का ऐसा पहला अवतार है जब वह पहली बार मनुष्य रूप में अवतरित होते हैं।
भारत के प्रसिद्ध शैव तीर्थस्थलों में झारखंड स्थित देवघर का बैद्यनाथ धाम (बाबा धाम) अत्यंत महत्वपूर्ण है। श्री शिव महापुराण के अनुसार 12 ज्योतिर्लिंग की गणना के क्रम में श्री बैद्यनाथ को नौवां ज्योतिर्लिंग बताया गया है। जहां पर यह मन्दिर स्थित है उस स्थान को देवघर अर्थात देवताओं का घर कहते हैं। यह स्थान माता सती के 52 शक्तिपीठों में से एक है। कहा जाता है कि यहाँ पर आने वालों की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। इस कारण इस लिंग को “कामना लिंग” भी कहा जाता हैं। इस स्थान के अनेक नाम प्रचलित हैं, जैसे – हरितकी वन, चिताभूमि, रणखंड, रावणेश्वर कानन, हाद्रपीठ।
कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार पूरे भारतवर्ष में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। देशभर में भगवान श्री कृष्ण की झांकी निकाली जाती है। कृष्ण जन्माष्टमी व्रत करते हुए लोग उपवास रखते हैं। भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण के जन्म के उपलक्ष्य में जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। इस सृष्टि का पालन करने वाले भगवान विष्णु के कई अवतार हुए हैं। उन अवतारों में कृष्ण अवतार को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
किसी भी मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि मानी जाती है। किंतु माघ (फाल्गुन कृष्ण पक्ष) की चतुर्दशी सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है और महाशिवरात्रि कही जाती है। गरूड़, स्कंद, पद्म, अग्नि आदि पुराणों में इसका वर्णन मिलता है। इस देश में जितने प्रकार के पूजा, व्रत, उपवास प्रचलित हैं, उनमें महाशिवरात्रि व्रत के समान महत्ता अन्य किसी की नहीं है। इस वर्ष 18 फरवरी 2023 को महाशिवरात्रि है।
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी व्रत मनाया जाता है। अनंत चतुर्दशी को अनंत चौदस भी कहा जाता है। अनंत चतुर्दशी जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु की उपासना का प्रतीक पर्व है। विष्णु पुराण में इस व्रत की महिमा का विस्तृत वर्णन किया गया है। इस व्रत के संबंध में यह लोककथा प्रचलित है कि जिस समय युधिष्ठिर अपना राज-पाट हार कर वनवास कर रहे थे तो भगवान कृष्ण उनसे मिलने आए। उनकी कष्ट-कथा सुनकर श्री कृष्ण ने उन्हें अनंत व्रत करने की सलाह दी, जिसे करने के पश्चात वे कष्ट मुक्त हो गए।
श्रावण पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन का त्यौहार पूरे देश में उत्साह, आनंद और पवित्रता के साथ मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनकी मंगल कामना करती हैं। यह पर्व कर्म, आयु और आरोग्य की वृद्धि के लिए मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक वर्ष रक्षाबंधन मनाने की तिथि भिन्न होती है। हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष 2022 में रक्षाबंधन का त्यौहार 11 अगस्त को है।
हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी मनाया जाता है। बिहार एवं भारत के कुछ पूर्वी हिस्से में श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को भी नाग पंचमी मनाया जाता है जिसे मौना पंचमी भी कहते हैं। वर्ष 2022 में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को अर्थात 2 अगस्त 2022 को नाग पंचमी है।
हिंदू धर्म में व्रत-त्यौहारों की एक सुदीर्घ परंपरा रही है। हिंदू धर्म के व्रत-त्यौहार जीवन की गतिशीलता और हिंदू धर्म की सभ्यता व संस्कृति के प्रतीक हैं। ये व्रत त्यौहार स्वयं के कल्याण से लेकर सामाजिक समन्वय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हिंदू धर्म को मानने वाले वर्ष भर किसी न किसी व्रत-त्यौहार को मनाते रहते हैं। इस आलेख में हिंदू धर्म के व्रत-त्यौहारों की सूची और उसका परिचय दिया गया है।
हिंदू पंचांगों में प्रत्येक माह की किसी एक तिथि को पूर्णिमा पड़ता है जिसका अपना महत्व है लेकिन वैशाख माह में पड़ने वाली पूर्णिमा का विशिष्ट महत्व है। गौतम बुद्ध का जन्म नेपाल के लुंबिनी नामक स्थान पर वैशाख पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसी कारण वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा या बुद्ध जयंती भी कहा जाता है।
हिंदू धर्म ग्रंथों में पुराणों का विशेष महत्व है। छांदोग्य उपनिषद में पुराणों को पंचम वेद कहा गया है। वस्तुतः वेद, उपनिषद, दर्शन आदि अन्य धर्म शास्त्रों में वर्णित गूढ़ तथ्यों को सरल रूप में व्याख्यायित करने के लिए पुराणों की रचना की गई है जिससे साधारण मनुष्य धर्म व अध्यात्म संबंधी विषयों को सरलता से समझ सके। इस आलेख में 18 पुराणों के नाम और उनका संक्षिप्त परिचय दिया गया है।
हिंदू धर्म में 18 महापुराण हैं। पुराणों को विशिष्टता प्रदान करने के लिए उसके स्वरूप को लक्षणों के द्वारा अभिव्यक्त किया गया है। पुराण के 5 लक्षणों का वर्णन विभिन्न पुराणों में किया गया है। ये 5 लक्षण सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वंतर, वंशानुचरित हैं। जिन लौकिक और पारलौकिक ज्ञान की बातों का बीजरूप में समावेश वेद आदि ग्रंथों में किया गया है उसको पुराणों में विस्तार से समझाया गया है।
भारतीय धर्म परंपरा में मनुष्यों के लिए चार पुरुषार्थों का उल्लेख किया गया है। ये चार पुरुषार्थ हैं – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। मनुष्य जीवन का उद्देश्य इन पुरुषार्थों से अपने को युक्त करना है। मनुष्य अपने दोषों को दूर कर इन पुरुषार्थों को धारण कर सके इसके लिए संस्कारों का विधान किया गया है। पुरुषार्थों को धारण करने का उद्देश्य जीवन मूल्यों को सुरक्षित रखना है जिससे समाज में सभी लोगों का कल्याण हो सके। इन पुरुषार्थों की प्राप्ति का माध्यम संस्कार ही हैं।
गौतम ऋषि ने आंखें मूंदकर और गहरे उतर कर बोले – बेटा! जिस निडरता के साथ और जैसी निर्दोष रीति से तुमने सारी बातें कही हैं उससे मुझे तो तुम सत्यकाम मालूम होते हो। तुम्हारे पिता कोई भी क्यों ना रहे हों, तुम्हारे आचरण की शुद्धता, तुम्हारे स्वभाव की सरलता यह बताती है कि तुम ब्राह्मण ही हो। मैं तुम्हें ब्राह्मण प्रमाणित करता हूं। जाबाला के पुत्र सत्यकाम! आओ, आज से मैं तुम्हें अपने शिष्य मंडल में स्वीकार करता हूं।